नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा गुजरात विधानसभा में रखी गई एक ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि इसरो ने 2014 और 2017 में अपने अध्ययन में 12 वन्यजीव गलियारों की पहचान की थी और इसे संभावित गलियारों में आवास सुधार की सिफ़ारिश के साथ वन विभाग के साथ साझा किया था, लेकिन उसने अध्ययन के निष्कर्षों का संज्ञान नहीं लिया.
नई दिल्ली: गुजरात विधानसभा में शनिवार (16 सितंबर) को पटल पर रखी गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात वन विभाग ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा किए गए एक वैज्ञानिक अध्ययन के निष्कर्षों का संज्ञान नहीं लिया, जिनमें राज्य के संभावित वन्यजीव गलियारों में आवास (हैबीटेट) सुधार की सिफारिश की गई थी.
समाचार वेबसाइट एनडीटीवी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, कैग के ‘गुजरात में वन्यजीव अभयारण्यों की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन के परफॉरमेंस ऑडिट’ में कहा गया है कि इसरो ने 2014 और 2017 में अपने अध्ययन में 12 वन्यजीव गलियारों (Wildlife Corridors) की पहचान की थी और संभावित गलियारों में आवास सुधार की सिफारिश के साथ इसे वन विभाग के साथ साझा किया था.
इसमें कहा गया है कि वन विभाग ने सटीक गलियारों की पहचान करने के लिए न तो स्वयं कोई अध्ययन किया और न ही इसरो अध्ययन के निष्कर्षों का संज्ञान लिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रकार बलराम अंबाजी और जेसोर अभयारण्यों के अधिसूचित पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में पहचाने गए गलियारों को पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया था.
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में कोई राज्य-विशिष्ट वन नीति नहीं है और संबंधित विभाग ने अभी तक राष्ट्रीय वन नीति और राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र स्थापित नहीं किया है.
इसमें कहा गया है कि वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के 14 साल बाद भी राज्य ने अभी तक अभयारण्यों में महत्वपूर्ण वन्यजीव आवास (सीडब्ल्यूएच) घोषित नहीं किया है और गुजरात भालू संरक्षण और कल्याण कार्य योजना के तहत परिकल्पित कुछ गतिविधियां अभी तक पूरी नहीं हुई हैं.
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में अभयारण्यों का प्रबंधन एड-हॉक (अनौपचारिक) आधार पर किया जा रहा है और मध्यावधि मूल्यांकन आदि के मामले में योजनाओं में एकरूपता का अभाव है.
इसमें कहा गया है, ‘ऑडिट में पाया गया है कि राष्ट्रीय वन आयोग की रिपोर्ट के 15 साल बाद और कैग द्वारा बताए जाने के बाद भी गुजरात ने (नवंबर 2022 तक) अपनी वन नीति तैयार नहीं की है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में राष्ट्रीय वन नीति को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है.
इसने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मौजूदा नीति के अनुसार राज्य की ईको-टूरिज्म नीति को अपडेट और संशोधित करने का भी आह्वान किया.
भालू संरक्षण के संबंध में इसमें कहा गया है कि हालांकि गुजरात में स्लॉथ बीयर के पांच संरक्षित क्षेत्र हैं, लेकिन उपलब्ध आवासों को पशुधन चराई, पर्यटन और सड़क निर्माण एवं विस्तार, खनन जैसी विकासात्मक गतिविधियों के रूप में दबाव का सामना करना पड़ता है.
इसमें आगे कहा गया है कि सरकार ने संबंधित अभयारण्यों की प्रबंधन योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन के दौरान भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट का उपयोग नहीं किया.
रिपोर्ट के अनुसार, आवंटित धन और प्रबंधन योजना के तहत परिकल्पित गतिविधियों के बीच कोई संबंध नहीं है.
इसने अभयारण्यों के सीमांकन में ‘कमियों’ को भी उजागर किया और कहा कि ऐसे रिकॉर्ड ठीक से नहीं रखे गए हैं और अभयारण्य क्षेत्रों के अतिक्रमण से बचने के लिए निरीक्षण पर्याप्त नहीं हैं.
इसमें कहा गया है, ‘वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद, जो यह निर्धारित करते हैं कि 2005 के बाद किसी भी नई भूमि को (खेती समेत) उपयोग में नहीं लाया जा सकता है, लेकिन खेती के लिए नए क्षेत्रों को साफ किया जा रहा है.’
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि जोनल मास्टर प्लान (जेडएमपी) को समय पर तैयार करने के व्यवस्थित दृष्टिकोण के अभाव में यह पांच अभायरण्यों के संबंध में उनके गठन की निर्धारित तिथियों के 12 महीने से 94 महीने बीत जाने के बाद भी अधूरा रहा.