महिला कॉन्स्टेबल पर हमले के दो हफ़्ते से अधिक समय बाद भी यूपी पुलिस के पास हमलावर का सुराग़ नहीं

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले के एक थाने में पदस्थ महिला हेड कॉन्स्टेबल 30 और 31 अगस्त की दरमियानी रात अयोध्या के सावन मेले में ड्यूटी के लिए सरयू एक्सप्रेस में सवार हुई थीं. रास्ते में किसी ने हमला कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है.

(फोटो साभार: Engin Akyurt/Unsplash)

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले के एक थाने में पदस्थ महिला हेड कॉन्स्टेबल 30 और 31 अगस्त की दरमियानी रात अयोध्या के सावन मेले में ड्यूटी के लिए सरयू एक्सप्रेस में सवार हुई थीं. रास्ते में किसी ने हमला कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है.

(फोटो साभार: अनस्प्लैश)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस की एक हेड कॉन्स्टेबल के अयोध्या के पास एक ट्रेन की सीट के नीचे खून से लथपथ बेहोश पड़े मिलने की घटना को दो सप्ताह से अधिक का समय बीत गया है, लेकिन यूपी पुलिस अब तक इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाई है.

उनके छोटे भाई राहुल (नाम परिवर्तित) कहते हैं, ‘उन्हें घटना के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं है. वह हमें ठीक से पहचान भी नहीं पा रही थीं.’

इस मामले ने अधिकारियों को उलझन में डाल दिया है, क्योंकि वे अभी भी अपराधियों या हमले के पीछे का मकसद पता नहीं लगा पाए हैं, जिसने भाजपा शासित राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति के साथ-साथ रेलवे द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा पर भी सवाल उठाए हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने घटना का स्वत: संज्ञान लिया और जांच की निगरानी कर रहे हैं. यूपी पुलिस, रेलवे पुलिस और यूपी पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स इस मामले की जांच कर रहे हैं, जो एक हाई-प्रोफाइल मामला बन गया है.

47 वर्षीय महिला हेड कॉन्स्टेबल रोशनी (बदला हुआ नाम) का इलाज लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में चल रहा है, लेकिन सिर पर चोट लगने के कारण वह अभी भी घटना को ठीक से याद नहीं कर पा रही हैं. उनके परिवार और पुलिस ने द वायर से इसकी पुष्टि की है.

राहुल ने बताया, ‘जब मैं उनके होश में आने के बाद उनसे मिला तो उन्होंने कहा कि वह मेरा चेहरा पहचान सकती है लेकिन मेरा नाम याद नहीं कर सकीं.’

16 सितंबर को यूपी पुलिस ने अपराधियों के बारे में जानकारी देने वाले को एक लाख रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की थी.

घटना 30 और 31 अगस्त की दरमियानी रात की है. सुल्तानपुर जिले के एक पुलिस थाने में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात रोशनी अयोध्या के हनुमान गढ़ी सावन मेले में ड्यूटी पर जाने के लिए सरयू एक्सप्रेस में सवार हुई थीं. किन्हीं कारणों से उनका स्टॉप छूट गया और वह ट्रेन के अंतिम गंतव्य मनकापुर रेलवे स्टेशन पहुंच गईं, जहां से उन्होंने वापस अयोध्या के लिए ट्रेन पकड़ी.

हालांकि, इन दो स्टेशनों के बीच उन पर किसी अज्ञात व्यक्ति ने तेज धार वाली चीज से हमला कर दिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गईं और उन्हें खून से लथपथ घायल अवस्था में एक कोच की बर्थ के नीचे बेहोश छोड़ दिया गया. उनके भाई की शिकायत पर अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई, जिसमें हत्या के प्रयास और महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से उस पर हमला करने समेत अन्य आरोप लगाए गए हैं.

पुलिस ने यौन उत्पीड़न किए जाने से इनकार किया है, क्योंकि मेडिको-लीगल परीक्षण और फोरेंसिक जांच में इसकी पुष्टि नहीं हुई है.

बीते 4 सितंबर को यूपी डीजीपी विजय कुमार और स्पेशल डीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार दोनों ने कहा था कि मामला जल्द सुलझा लिया जाएगा और असली दोषियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

हालांकि, पुलिस अभी तक गुत्थी नहीं सुलझा पाई है. रोशनी इलाहाबाद जिले की मूल निवासी हैं. राहुल का कहना है कि उनकी बहन की किसी से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसी कोई जानकारी या संदेह नहीं था कि ऐसा हो सकता है. उनकी कोई दुश्मनी नहीं थी और न ही उन्हें कोई धमकी मिली थी.’

हालांकि, राहुल संभावना व्यक्त करते हैं कि उनके किसी जानने वाले ने उनकी दिनचर्या पर नजर रखी होगी और हमले की योजना बनाई होगी.

बीते 3 सितंबर को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने इस ‘भीषण घटना’ का स्वत: संज्ञान लिया और अदालत की रजिस्ट्री को मामले को आपराधिक जनहित याचिका के रूप में दर्ज करने का निर्देश दिया. अदालत ने केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य को भी नोटिस जारी किया.

3 सितंबर की दोपहर लगभग 3:35 बजे एक वकील राम कौशिक से मिले एक वॉट्सऐप संदेश द्वारा मामला मुख्य न्यायाधीश दिवाकर के ध्यान में लाया गया, जिसके बाद उन्होंने सुनवाई के लिए रात 8 बजे अपने आवास पर एक पीठ का गठन किया था.

अपनी पत्र याचिका में वकील कौशिक ने कहा था, ‘रेलवे अधिकारी महिलाओं के मौलिक अधिकारों से जुड़े विभिन्न सुरक्षा उपायों को लागू करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. वर्तमान घटना स्पष्ट रूप से भारतीय रेलवे अधिनियम के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन को दर्शाती है.’

दिवाकर ने रेलवे सुरक्षा बल के कामकाज पर भी सवाल उठाए थे, जो यात्रियों को सुरक्षा देने के अपनी कर्तव्य में पूरी तरह विफल रहा.

अदालत ने मामले के जांच अधिकारी को केस डायरी के साथ 4 सितंबर को पेश होने के लिए बुलाया था. पुलिस अधीक्षक (जीआरपी) पूजा यादव अदालत में पेश हुईं और न्यायाधीशों को बताया कि मामले को सुलझाने के लिए सर्कल अधिकारी और डिप्टी-एसपी रैंक के अधिकारियों की पांच टीमें बनाई गई हैं.

अदालत ने जांच में प्रगति पर ध्यान दिया और कहा कि इसमें ‘कोई संदेह नहीं है कि जांच सही रास्ते पर आगे बढ़ रही है और तेजी से परिणाम सामने आएंगे.’

हाईकोर्ट ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 या 164 के तहत महिला कॉन्स्टेबल का बयान अभी तक दर्ज नहीं किया गया है, क्योंकि वह संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने की स्थिति में नहीं थीं.

इसके बाद अदालत ने संबंधित मजिस्ट्रेट को अस्पताल में महिला कॉन्स्टेबल से मिलकर उनका बयान दर्ज करने और अगली तारीख तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था. न्यायाधीशों ने यह भी निर्देश दिया था कि तीन वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञों सहित पांच डॉक्टरों की एक टीम घायल हेड कॉन्स्टेबल की जांच करेगी और रिपोर्ट सौंपेगी.

हमले की जांच कर रहे एसटीएफ अधिकारी वेद प्रकाश श्रीवास्तव ने 17 सितंबर को द वायर को बताया कि महिला कॉन्स्टेबल का बयान अभी तक दर्ज नहीं किया जा सका है, क्योंकि सिर में चोट लगने के कारण वह स्पष्ट रूप से विवरण देने में असमर्थ है.

श्रीवास्तव ने कहा कि यह अभी भी एक ​‘ब्लाइंड केस​’ है. एसटीएफ सभी पहलुओं की जांच कर रहा है: क्या उसकी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी, क्या हमलावरों को किसी ने काम पर रखा था या क्या यह एक आकस्मिक अपराध था. श्रीवास्तव ने कहा, ​‘हम सभी संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं.​’

पुलिस संभावित संदिग्धों की पुष्टि कर रही है, लेकिन अभी तक किसी का पता नहीं चल सका है. महिला हेड कॉन्स्टेबल इस मामले में अब तक एकमात्र गवाह है.

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