अमेरिका वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूह पर ‘स्टॉक हेरफेर और ऑडिट धोखाधड़ी’ के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति मई में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप चुकी है. अब समिति सदस्यों पर हितों के टकराव के आरोप लगाते हुए इसके पुनर्गठन की मांग की गई है.
नई दिल्ली: अडानी-हिंडनबर्ग मामले में एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह एक नई विशेषज्ञ समिति बनाए. उनका आरोप है कि मौजूदा समिति हितों के टकराव में शामिल है.
इस साल मार्च की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसे यह देखना था कि क्या हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा धोखाधड़ी और हेरफेर की ओर इशारा करने के बाद नियामक विफलता के कारण निवेशकों को पैसा गंवाना पड़ा था.
समिति में पूर्व बैंकर केवी कामथ और ओपी भट्ट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि, प्रतिभूति वकील सोमशेखर सुंदरेसन और सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज जेपी देवधर भी हैं. इस समिति का गठन तब किया गया था जब शीर्ष अदालत ने समिति के सदस्यों के रूप में केंद्र सरकार द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए नामों को खारिज कर दिया था और एक स्वयं की विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की थी.
छह सदस्यीय समिति ने 8 मई को शीर्ष अदालत को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर कर कहा है कि समिति में कई लोगों के हितों का टकराव हो सकता है.
याचिका में कहा गया है, ‘यह प्रस्तुत किया जाता है कि विशेषज्ञ समिति के सदस्यों में से एक और भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व अध्यक्ष ओपी भट्ट वर्तमान में एक अग्रणी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी ग्रीनको के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं. मार्च 2022 से ग्रीनको और अडानी समूह भारत में अडानी समूह की इकाइयों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए करीबी साझेदारी में काम कर रहे हैं. ग्रीनको ने उनकी साझेदारी के संबंध में 14.03.2022 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी.’
इसके अलावा, याचिका में आरोप लगाया गया है कि भट्ट से मार्च 2018 में पूर्व शराब कारोबारी और भगोड़े आर्थिक अपराधी विजय माल्या को ऋण देने में कथित गड़बड़ी के मामले में पूछताछ की गई थी. माल्या पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समेत कई बैंकों के साथ 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की धोखाधड़ी करने के आरोप हैं.
याचिका में कहा गया है, ‘भट्ट ने 2006 और 2011 के बीच एसबीआई के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था, इसी समय माल्या की कंपनियों को अधिकांश ऋण दिए गए थे. सीबीआई ने आरोप लगाया है कि एसबीआई के नेतृत्व वाले ऋणदाताओं के संघ ने माल्या की कंपनियों की ‘खराब वित्तीय स्थिति’ के बारे में पता होने के बावजूद कोई ‘फॉरेंसिक ऑडिट’ नहीं किया.’
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि समिति के एक अन्य सदस्य- केवी कामथ, जो 1996 से 2009 तक आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष थे, का नाम आईसीआईसीआई बैंक धोखाधड़ी मामले में सीबीआई की एफआईआर में आया था.
याचिकाकर्ता का कहना है, ‘यह मामला चंदा कोचर से संबंधित है, जिन्होंने 2009 से 2018 तक आईसीआईसीआई बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ का पद संभाला था. सीबीआई ने आरोप लगाया कि उन्हें और उनके परिवार को उनके कार्यकाल के दौरान वीडियोकॉन समूह को प्रदान किए गए ऋणों के बदले विभिन्न रिश्वतें मिलीं, इनमें कई ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में तब्दील हो गए. जब उनमें से कुछ ऋण स्वीकृत किए गए थे तब कामथ बैंक के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष थे और उस समिति के सदस्य थे जिसने ऋण स्वीकृत/अनुमोदित किए थे.’
याचिकाकर्ता ने यह भी दोहराया है कि सोमशेखर सुंदरेशन सेबी बोर्ड सहित विभिन्न मंचों पर अडानी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील रहे हैं.
याचिका में अदालत से मांग की गई है कि वह वित्त, कानून और शेयर बाजार के क्षेत्र से ऐसे विशेषज्ञों को नियुक्त करके समिति का पुनर्गठन किया जाए जिनकी ईमानदारी पर अंगुली न उठाई जा सके, और जिनका इस मामले के नतीजों में कोई हितों का टकराव न हो.