उच्च न्यायालय ने अंतरधार्मिक विवाह के मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि यह आदेश नहीं बल्कि सुझाव है.
नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विवाह के उद्देश्य के लिए धर्म परिवर्तन करने की प्रथा पर रोक लगाने को कहा है. हालांकि, इस संबंध में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह आदेश नहीं बल्कि एक सुझाव है.
अंतरधर्मीय विवाह से संबंधित एक याचिका का बीते सोमवार को निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने कहा कि अदालत के पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जहां अंतरधर्मीय विवाह आयोजित होते हैं.
उन्होंने कहा कि कभी-कभी एक धर्म से दूसरे में परिवर्तन केवल विवाह करने के लिए किया जाता है.
इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए अदालत राज्य सरकार से मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 और हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2006 की तर्ज पर स्वतंत्रता अधिनियम बनाने की अपेक्षा करती है.
अदालत द्वारा उल्लिखित दोनों अधिनियम जबरन धर्मांतरण को रोकते हैं जिनसे समाज के कई वर्गों में विरोध होता है और धार्मिक भावनाएं भड़कती हैं.
न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि ऐसा अधिनियम बनाए जाते समय नागरिकों की धार्मिक भावनाओं पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए. उन्होंने हालांकि कहा कि यह आदेश न होकर एक सुझाव है.
यह मामला एक धर्म की लड़की के दूसरे धर्म के लड़के के साथ भाग जाने के बाद सामने आया जिसमें लड़के ने लड़की से शादी करने के लिए कथित तौर पर अपना धर्म बदल लिया था.
धमसिंह नगर ज़िले के रुद्रपुर निवासी याचिकाकर्ता गिरीश कुमार शर्मा ने पूर्व में अदालत से 18 सितंबर से गुमशुदा अपनी पुत्री को ढूंढने की गुहार लगई थी.
पुलिस ने जब लड़की को ढूंढा तो उसने उसे बताया कि लड़के ने धर्म परिवर्तन कर उससे शादी कर ली है. हालांकि, बाद में लड़की ने अदालत में अपने माता-पिता के साथ जाने की इच्छा जताई.
लड़की के पिता की तरफ से अदालत में पेश वकील ललित शर्मा ने कहा, राज्य सरकार को कानून बनाने का निर्देश देने में न्यायपालिका की कोई भूमिका न होने के तथ्य से भलीभांति अवगत होने के बाद भी अदालत ने तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश और उसके दुष्परिणामों के मद्देनज़र यह सुझाव दिया है.