लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश, पारित हो गया तब भी 2029 के लोकसभा चुनाव में होगा लागू

नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा और सभी विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33%आरक्षण लाने के लिए 128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया है. विधेयक कहता है कि इसके पारित होने के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को लोकसभा को संबोधित करते हुए. (फोटो: वीडियो से स्क्रीनग्रैब)

नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकसभा और सभी विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33%आरक्षण लाने के लिए 128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया है. विधेयक कहता है कि इसके पारित होने के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को लोकसभा को संबोधित करते हुए. (फोटो: वीडियो से स्क्रीनग्रैब)

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने मंगलवार को लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण लाने के लिए 128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक, 2023 पेश किया. इसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करना और ‘यथासंभव’ कुल सीटों में से एक-तिहाई सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित करना शामिल होगा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विधेयक पारित होने के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद सीटें आरक्षित की जाएंगी. यह अधिनियम के प्रारंभ से 15 वर्षों के लिए महिला आरक्षण को अनिवार्य करता है, संसद को इसे आगे बढ़ाने का अधिकार है.

विधेयक के अनुसार, महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का रोटेशन बाद में होने वाली हर परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही होगा, जिसे संसद कानून द्वारा निर्धारित करेगी.

विधेयक को पेश करते हुए, जिसे बुधवार को सदन में रखा जाएगा, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि एक बार पारित होने के बाद, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या संसद की मौजूदा शक्ति 543 के मुताबिक 181 हो जाएगी. वर्तमान सदन में 82 महिला सांसद हैं.

विधेयक, जो महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए अनुच्छेद 330ए में खंड (1) सम्मिलित करता है, एक अन्य खंड में कहता है कि लोकसभा में एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें इन श्रेणियों की महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी, और तीसरा खंड लोकसभा में सीधे चुनाव द्वारा भरी जाने वाली कुल सीटों में से एक-तिहाई, यथासंभव, महिलाओं के लिए अलग रखने पर है.

इसी सिद्धांत का विस्तार करते हुए विधेयक विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण को अनिवार्य करने के लिए अनुच्छेद 332ए में संशोधन करता है, साथ ही एससी/एसटी श्रेणी की सीटों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों और सभी सीटों में से 33 फीसदी -यथासंभव- महिलाओं द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरे जाने के लिए रखता है.

विधेयक अनुच्छेद 239 एए के खंड 2 में, उप-खंड (बी) के बाद, निम्नलिखित खंड सम्मिलित करता है: ‘(बीए) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी’, और (बीबी), जो कहता है कि दिल्ली विधानसभा में एससी और एसटी के लिए आरक्षित एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.

विधेयक पेश होने से ठीक पहले, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश कर रही है, इसे ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया गया है. सभी महिलाओं को बधाई देते हुए मोदी ने सदन के सदस्यों से संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने का आग्रह किया.

पीएम के बाद बोलते हुए, लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह राजीव गांधी सरकार थी जिसने 1989 में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण प्रदान किया था. उन्होंने कहा कि बाद की कांग्रेस सरकारों ने महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की कोशिश की थी, लेकिन ‘या तो यह लोकसभा में पास हो जाता था या फिर राज्यसभा में’ लेकिन दूसरे सदन में पारित होने में विफल हो जाता था.

उनके इस बयान पर गृहमंत्री अमित शाह ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विधेयक लोकसभा में कभी पारित ही नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के समय यह राज्यसभा में पारित हो गया था, लेकिन 2014 में यह रद्द हो गया क्योंकि लोकसभा में पारित नहीं हो सका.

शाह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से कहा कि या तो चौधरी के बयान को हटा दें या उनसे अपने दावे का तथ्यात्मक सबूत दिखाने को कहें.

बाद में मेघवाल ने विधेयक का इतिहास बताया. उन्होंने कहा कि इसे पहली बार सितंबर 1996 में एचडी देवेगौड़ा सरकार द्वारा पेश किया गया था, और फिर दिसंबर 1998 और दिसंबर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पेश किया गया था. उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने 2008 में इसे राज्यसभा में पेश किया था, जहां से इसे विभाग से संबंधित स्थायी समिति को भेजा गया था. इसके बाद इसे राज्यसभा से पारित कर लोकसभा में भेजा गया था, जहां पास नहीं हो सका.

विधेयक यह स्पष्ट करता है कि 2029 से लोकसभा की एक तिहाई सीटों पर महिला सांसद होंगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि विधेयक कहता है कि ‘विधेयक पारित होने के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद सीटें आरक्षित की जाएंगी.’

नए सिरे से जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया करके आरक्षण देने की बात करने वाला यह प्रावधान 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित महिला आरक्षण विधेयक का हिस्सा नहीं था.

उल्लेखनीय है 2021 में होने वाली जनगणना का काम 2020 में कोविड महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था और इसके शुरू होने की कोई नई तारीख अभी तक घोषित नहीं की गई है.

यह मानते हुए कि जनगणना 2024 के चुनाव के कुछ समय बाद होती है, इसके परिणामों को संकलित करने और प्रकाशित करने में एक वर्ष लगेगा, जिसके बाद परिसीमन प्रक्रिया होगी. भले ही यह काम 2024 के लोकसभा चुनाव के एक साल के भीतर पूरा हो सकता है, लेकिन आरक्षण मौजूदा सदन के भंग होने के बाद ही लागू होगा – संभवतः इसका पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद.

हालांकि, कुछ विधानसभा चुनाव नए प्रावधानों के तहत कराए जा सकते हैं.