इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सचिवालय भर्ती मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालयों के लिए कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नहीं, बल्कि निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करते हुए बाहरी एजेंसियों द्वारा की गई थी. आरोप है कि बाहरी एजेंसियों के क़रीबी लोगों को चयन प्रक्रिया में ‘तरजीह’ दी गई.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालयों के लिए कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नहीं, बल्कि निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करते हुए बाहरी एजेंसियों द्वारा की गई थी. आरोप है कि बाहरी एजेंसियों के क़रीबी लोगों को चयन प्रक्रिया में ‘तरजीह’ दी गई.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2022-23 में उत्तर प्रदेश विधानसभा और परिषद के सचिवालयों में कर्मचारियों की नियुक्तियों में कथित अनियमितताओं की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच का आदेश दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भर्ती प्रक्रिया में कई अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए निजी व्यक्तियों द्वारा दायर एक विशेष अपील और रिट सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सोमवार (18 सितंबर) को अपना आदेश सुनाया.

आरोपों की सीबीआई जांच का आदेश देते हुए जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने केंद्रीय एजेंसी को छह सप्ताह के भीतर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.

आरोपों की गंभीर प्रकृति का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने का भी निर्देश दिया.

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वकील अनु प्रताप सिंह ने कहा कि बाद में अदालत ने याचिकाकर्ताओं द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों को जांच लंबित रहने तक सील करके रख दिया.

सिंह ने कहा, ‘विधानसभा और विधान परिषद सचिवालयों में बड़े पैमाने पर नियुक्तियों के संबंध में अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं. हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और स्वत: संज्ञान जनहित याचिका दर्ज करने का भी आदेश दिया है.’

सिंह ने कहा कि यह आरोप लगाया गया है कि विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालयों के लिए कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नहीं, बल्कि बाहरी एजेंसियों द्वारा की गई थी. एक याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि बाहरी एजेंसियों के करीबी लोगों को चयन प्रक्रिया में ‘तरजीह’ दी गई.

अधिवक्ता ने कहा कि पिछले साल 7 दिसंबर, 2020 को विज्ञापन जारी होने के बाद विधानसभा सचिवालय में कुल 87 नियुक्तियां की गईं. 87 नियुक्तियों में से 56 उम्मीदवारों को सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ) के पद के लिए भी चुना गया था. हालांकि केवल 53 रिक्तियों के लिए ही विज्ञापन जारी किया गया था.

इसी तरह, विधान परिषद सचिवालय में 75 नियुक्तियां की गईं, जिसके लिए 17 सितंबर, 2020 को एक विज्ञापन जारी किया गया था. सिंह ने कहा, ‘कर्मचारियों के चयन के लिए लिखित और टाइपिंग परीक्षण लखनऊ स्थित दो एजेंसियों द्वारा आयोजित किए गए थे.’

हाईकोर्ट ने मामले में अदालत की सहायता के लिए वकील एलपी मिश्रा को न्याय-मित्र नियुक्त किया है. खंडपीठ ने मामले को नवंबर के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

इससे पहले राज्य विधानमंडल में नियुक्तियों में भारी विसंगतियों का आरोप लगाते हुए अदालत की एकल पीठ के समक्ष दायर एक रिट याचिका इस साल 12 अप्रैल को खारिज कर दी गई थी. अप्रैल के आदेश के खिलाफ दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष एक विशेष अपील की गई थी.

https://blog.ecoflow.com/jp/wp-includes/js/pkv-games/ https://blog.ecoflow.com/jp/wp-includes/js/bandarqq/ https://blog.ecoflow.com/jp/wp-includes/js/dominoqq/