उन्नाव रेप पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के केस में दो पूर्व पुलिसकर्मियों को ज़मानत

2018 में उन्नाव बलात्कार मामले की पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी, जिसके लिए दो पुलिसकर्मियों- अशोक सिंह भदौरिया और कामता प्रसाद को दोषी ठहराते हुए साल 2020 में दिल्ली की तीस हज़ारी अदालत ने दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Youth For Human Rights Documentation)

2018 में उन्नाव बलात्कार मामले की पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी, जिसके लिए दो पुलिसकर्मियों- अशोक सिंह भदौरिया और कामता प्रसाद को दोषी ठहराते हुए साल 2020 में दिल्ली की तीस हज़ारी अदालत ने दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Youth For Human Rights Documentation)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उन्नाव बलात्कार पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत मामले में दोषी ठहराए गए अशोक सिंह भदौरिया और कामता प्रसाद को जमानत दे दी. ये उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिसकर्मी हैं.

इस मामले में पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर भी दोषी हैं. उनकी अपीलें दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित हैं और वे दस साल की जेल की सजा काट रहे हैं.

यह मामला उत्तर प्रदेश के उन्नाव के माखी थाने का है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने अशोक सिंह भदौरिया और कामता प्रसाद सिंह को जमानत बॉन्ड भरने की शर्त पर बेल दे दी. प्रत्येक दोषी को 50,000 रुपये की निजी मुचलके और इतनी ही राशि का जमानत बॉन्ड भरना होगा.

अदालत ने 22 सितंबर को कहा, ‘तथ्यों, परिस्थितियों और कैद की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दोनों अपीलकर्ता – अशोक सिंह भदौरिया और कामता प्रसाद सिंह को ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की एक-एक जमानत राशि देने पर अदालत में जमानत दी जाती है.’

जस्टिस शर्मा ने कहा कि इस स्तर पर आरोपी व्यक्तियों द्वारा पहले ही काटी गई सजा पर लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए यह रिकॉर्ड की बात है कि मामले में एक अपील 31 जुलाई 2020 को स्वीकार की गई थी, हालांकि, अदालत इस पर सुनवाई नहीं कर पा रही है.

शर्मा ने कहा, ‘यह भी रिकॉर्ड की बात है कि अपीलकर्ताओं ने समय-समय पर उन्हें दी गई अंतरिम जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया. नॉमिनल रोल के अनुसार, वर्तमान मामले में अपीलकर्ता संख्या 1 – अशोक सिंह भदौरिया ने लगभग चार साल आठ महीने और सात दिन की सजा काटी है और अपीलकर्ता संख्या 2 – कामता प्रसाद सिंह ने चार साल पांच महीने और 28 दिन की सजा काटी है. बाकी की सजा लगभग चार साल और नौ महीने की है.’

रिपोर्ट के अनुसार, दोनों अपीलकर्ताओं ने 4 मार्च, 2020 के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया था. 13 मार्च, 2020 को तीस हजारी कोर्ट दिल्ली द्वारा सजा का आदेश पारित किया गया था.

उन्होंने अपनी अपीलों के लंबित रहने के दौरान अपनी सजा को निलंबित करने की भी मांग की थी.

अपीलकर्ता अशोक सिंह भदौरिया को भारतीय दंड संहिता की धाराओं – 120बी, 166/167/193/201/203/211/218/323/341 और भारतीय दंड संहिता की 1860 की धारा 304 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 3 के तहत दोषी ठहराया गया था.

वहीं, अपीलकर्ता कामता प्रसाद सिंह को आईपीसी की धारा 120बी, 166, 167, 193, 201, 203, 211, 218, 323, 341 और आईपीसी की धारा 304, शस्त्र अधिनियम की धारा 3, धारा 341, 323, आईपीसी की धारा 304 के साथ धारा 1208 और धारा 193, 201, 203, 211 के तहत दोषी ठहराया गया था.

अपीलकर्ताओं के वकीलों ने बताया कि 4 मार्च, 2020 के सामान्य निर्णय और 13 मार्च 2020 को सजा पर आदेश द्वारा छह अभियुक्त व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया था.

मुकदमे के दौरान कई दस्तावेजों का प्रदर्शन करने के अलावा अभियोजन पक्ष के कुल 55 गवाहों से पूछताछ की गई.

भदौरिया के वकील ने तर्क दिया कि इसलिए, सभी सबूतों के गुण-दोष जांचने और इस मामले की योग्यता के आधार पर अपील पर निर्णय लेने के लिए काफी समय की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता/दोषी आईपीसी की धारा 304 भाग II के तहत अपराध के लिए अपनी सजा की आधी अवधि पहले ही काट चुका है.

यह भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र अपराध आईपीसी की धारा 304 भाग II है, जिसके लिए अपीलकर्ता/दोषी पहले ही दी गई सजा की आधी सजा काट चुका है और नाममात्र की भूमिका ने उक्त पहलू की पुष्टि की है.

कामता प्रसाद सिंह के वकील अखंड प्रताप सिंह ने कहा कि अपीलकर्ता कुल 10 साल की सजा में से आधे से अधिक (5 साल से अधिक) पहले ही काट चुका है.

उन्होंने यह भी कहा कि अपीलकर्ता की अंतरिम जमानत को अदालत द्वारा स्वीकार किया गया था और उन्होंने निर्धारित समय के भीतर आत्मसमर्पण कर दिया था. इसके अलावा, सजा आदेश के अंतरिम निलंबन में लगाए गए किसी भी नियम और शर्तों के उल्लंघन का कोई आरोप नहीं है. वर्तमान मामले में गिरफ्तारी की तारीख से पिछले 5 वर्षों के दौरान अपीलकर्ता के खिलाफ किसी भी जेल मैनुअल के उल्लंघन के संबंध में एक भी आरोप नहीं है.

अशोक सिंह भदौरिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित और अधिवक्ता राजीव मोहन ने बहस की.

दूसरी ओर, सीबीआई के वकील ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान अपील दो मामलों में सामान्य निर्णय से उत्पन्न हुई है जिसमें विशेष न्यायाधीश ने सभी सात अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 120-बी के साथ 166, 167, 193, 201, 203, 211, 218, 323, आईपीसी की धारा 341 और 304 (भाग II) और शस्त्र अधिनियम की धारा 3 के तहत दोषी ठहराया था और अधिकतम 10 साल की कैद की सजा सुनाई थी.

उल्लेखनीय है कि मामला 4 जून, 2017 का है, जब 17 साल की पीड़िता के साथ यूपी के बांगरमऊ से पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने कथित तौर पर बलात्कार किया था. उस समय पीड़िता की उम्र 17 साल थी.

बांगरमऊ से चार बार भाजपा के विधायक रह चुके सेंगर को अगस्त 2019 में पार्टी से तब निकाल दिया गया जब पीड़िता और उसका परिवार सड़क हादसे का शिकार हो गया. वह 28 जुलाई 2019 को रायबरेली जिले में हुए सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गई थी. पीड़िता की कार को एक तेज रफ्तार ट्रक ने टक्कर मार दिया था, जिसमें उनके दो रिश्तेदारों की मौत हो गई थी और उनका वकील गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

3 अप्रैल, 2018 को उसके पिता को कथित तौर पर अवैध हथियार मामले में फंसाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया. कुछ दिनों बाद 29 अप्रैल, 2018 को न्यायिक हिरासत में उनकी मौत हो गई. सेंगर, उनके भाई एवं पांच अन्य को चार मार्च, 2020 को बलात्कार पीड़िता के पिता की न्यायिक हिरासत में मौत के मामले में भी दोषी ठहराया गया था और उन्हें दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

उच्चतम न्यायालय ने एक अगस्त, 2019 को इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित कर दी थी. 20 दिसंबर, 2019 को सेंगर को 2017 में नाबालिग से बलात्कार करने के एक अलग मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.