नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मुस्लिम विरोधी गाली संस्कृति का क़ायदे से निर्माण कर रही है

भाजपा की संस्कृति बदज़बानी और बदतमीज़ी की संस्कृति है. प्रतिपक्षियों, मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें साबित करना होता है कि वे भाजपा के नेता माने जाने लायक़ हैं. बिधूड़ी सिर्फ़ सबसे ताज़ा उदाहरण हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी. (फोटो साभार: ट्विटर/@rameshbidhuri)

भाजपा की संस्कृति बदज़बानी और बदतमीज़ी की संस्कृति है. प्रतिपक्षियों, मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें साबित करना होता है कि वे भाजपा के नेता माने जाने लायक़ हैं. बिधूड़ी सिर्फ़ सबसे ताज़ा उदाहरण हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी. (फोटो साभार: ट्विटर/@rameshbidhuri)

‘अगर तुम्हें सड़क के लोगों का नेता बनना है तो सड़कछाप ज़बान बोलनी होगी.’ (गॉयबेल्स)

‘किसी राजनेता के भाषण का मूल्य किसी प्रोफ़ेसर पर पड़ने वाले असर से नहीं बल्कि इससे तय होता है कि वह सड़क चलते लोगों पर क्या असर डालता है.’ (हिटलर)

संसद के विशेष सत्र का समापन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रमेश बिधूड़ी द्वारा मुसलमान सांसद कुंवर दानिश अली को दी गई गालियों से हुआ. कई भले लोग भाजपा के गालीबाज़ सांसद का वीडियो देखकर सदमे में हैं. लेकिन हमने 2014 में जो सफ़र शुरू किया था उसमें तो यहां पहुंचना ही था. यह सब सुनना और देखना ही था. और इस सबको सुनना और देखना चाहिए ही.

अपनी सरकार, अपने नेताओं की असली मुसलमान विरोधी तस्वीर हमें बार-बार देखनी चाहिए. कुंवर दानिश अली ने ख़ुद उन गालियों को प्रेस के सामने दुहराया. एक मुसलमान सांसद हमें यह बतला रहा है कि यह ज़बान है भाजपा की. इसे सब सुनें. यह इस देश की असली सूरत है. सब देखें.

यह बहुत आश्चर्य की बात नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो पल-पल ट्वीट करते हैं, अपने सांसद की इस मुसलमान विरोधी गालीबाजी के बाद ख़ामोश हैं. वे इन गालियों का पूरा असर हो जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. यह भी ताज्जुब की बात नहीं कि बात बात में विपक्षी सांसदों को निलंबित कर देने वाले लोकसभा अध्यक्ष ने गालीबाज़ सांसद को मात्र चेतावनी देकर छोड़ दिया है. भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मुसलमान विरोधी गाली की संस्कृति का बड़े क़ायदे से निर्माण कर रही है.

इसलिए इसमें भी कोई अचरज नहीं था कि कई मुसलमानों के घर लुकमा तोड़ चुके भाजपा के सांसद डॉक्टर हर्षवर्धन और वकील रविशंकर प्रसाद अपने मित्र सांसद की मुसलमान विरोधी गालियों से मिले मज़े को छिपा नहीं पाए. उनके मित्र सांसद की ज़बान से जो निकला, वह उनके और भाजपा नेताओं के दिल में जाने कब से है! वरना वे भाजपा में न होते.

जब भारतीय जनता पार्टी और वह भी नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को इस देश के हिंदुओं के एक बड़े हिस्से ने अपनी उम्मीदें पूरी करने के लिए सरकार बनाने का काम दिया तो यह असंभव था कि देश की संसद बदज़बानी और गालियों का मंच न बने. 2002 की मुसलमान विरोधी हिंसा की सदारत के लिए कुख्यात नरेंद्र मोदी को देश के बड़े उद्योगपतियों और बुद्धिजीवियों ने देश की आशा के रूप में पेश किया और अपने कंधे पर बिठाकर संसद और सरकार तक पहुंचाया.

नरेंद्र मोदी ने हिंसा के प्रति अपने लगाव और अपनी बदज़बानी पर कभी पर्दा नहीं डाला है. मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति अपनी नफ़रत को भी नहीं छिपाया है. यह भी बार-बार बतलाया है कि मुसलमान का हित का मतलब हिंदुओं का अहित है. ‘हम पांच हमारे पच्चीस’ या गुजरात में 2002 की हिंसा से विस्थापित मुसलमानों के राहत शिविरों को आतंकवादी पैदा करने का कारखाना कहकर नरेंद्र मोदी ने साफ़ कर दिया था कि मैं यही हूं. इसी रूप में मुझे तुम्हें अपना नेता चुनना होगा. और नरेंद्र मोदी को भारत के भद्र हिंदू समाज ने अपना नेता चुना.

नस्ली हिंसा या घृणा और असभ्यता के बीच सीधा रिश्ता है. फूहड़पन और अश्लीलता को उससे अलग नहीं किया जा सकता. यह नहीं किया जा सकता कि आप मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और उनकी हत्या को तो क़बूल करें और उनके ख़िलाफ़ गालियों पर नाक सिकोड़ें. हत्या के पहले या उसके साथ गाली आती है.

गालियां घृणा और हिंसा की शाब्दिक अभिव्यक्ति हैं. यह भारत के दलित अच्छी तरह समझते हैं. गाली देने वाला जानता है कि जिसे गाली दी जा रही है वह उसका जवाब नहीं दे सकता. गाली उसे बार-बार नीचा दिखलाने, उसकी औक़ात बतलाने और उसे कमतर साबित करने का कारगर हथियार है.

यह सड़क पर, स्कूलों में, हर जगह मुसलमानों के साथ किया जाता रहा है. आधुनिक तकनीक के जानकार सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों का इस्तेमाल मुसलमानों को गालियां देने के लिए करते हैं. मुसलमान उलटकर गाली नहीं दे सकते, यह सबको पता है. दलितों को गाली देने वाले सवर्णों को भी मालूम है कि दलित उनकी गालियों का जवाब नहीं दे सकते.

जो गालियां भाजपा सांसद ने एक मुसलमान सांसद को दिन, उनसे हिंदू समाज पल्ला नहीं झाड़ सकता. ये गालियां अब गानों की शक्ल में, नारों में अनेक पर्व त्योहारों में खुलेआम हिंदुओं को पवित्र आनंद देने के लिए सुनाई जाती हैं. इसका कोई सबूत नहीं कि ऐसे लाउडस्पीकर पर ऐसे गाली गलौज को किसी हिंदू ने बंद किया हो. ज़्यादा से ज़्यादा हिंदू अब ऐसे ‘बाबाओं’ और ‘साध्वियों’ के भक्त होते जा रहे हैं जिनके प्रवचन का मतलब है मुसलमानों को गाली देना, उनके ख़िलाफ़ हिंसा भड़काना.

गाली सुनकर ख़ामोश रहने की मजबूरी के अपमान को समझना मुश्किल नहीं है. जब यह मजबूरी पूरे समुदाय की हो तो इसका अर्थ उस समुदाय की आत्मछवि के लिए क्या है, क्या हम यह नहीं जानते? जब उस समुदाय के प्रतिनिधियों, उसके अभिजन को भी सरेआम गाली दी जाती है तो यह पूरे समुदाय को बेचारगी की अवस्था में धकेल देना होता है.

‘ये गालियां नई नहीं हैं, मुसलमान तो रोज़ इन्हें साधारण हिंदुओं के मुंह से सुनते ही हैं इसलिए इतना सदमा क्यों?’, यह कहकर हम भाजपा सांसद की हिमाक़त और उसके कृत्य की गंभीरता को कम कर रहे हैं. जो सड़क पर किया जाता है, वह संसद में भी किया जा सकता है. मुसलमान विरोधी गाली-गलौज का विशेषाधिकार सांसद के पास है. संसद को मुसलमानों को अपमानित करने की जगह बनाया जा सकता है. संसद में हिंदू शक्ति के प्रतीक सेंगोल स्थापना का पूरा अर्थ भाजपा सांसद की मुसलमान विरोधी गालियों से ही खुल सकता था.

गाली देने वाले की असलियत, उसके सभ्य, सुसंस्कृत होने के दावे को पोल भी इससे खुलती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा जिसकी राजनीतिक शाखा है, में गाली की इस संस्कृति का निर्माण होता है, उसे मुसलमान विरोधी खाद-पानी से पुष्ट किया जाता है, यह बार-बार भाजपा के नेता अपने बयानों और कृत्यों से साबित करते रहे हैं. बिधूड़ी सिर्फ़ सबसे ताज़ा उदाहरण हैं.

भाजपा की संस्कृति बदज़बानी और बदतमीज़ी की संस्कृति है, यह इससे भी मालूम होता है कि दूसरे दलों से उसमें शामिल होने वाले नेता गाली-गलौज करने में उनसे प्रतियोगिता करने लगते हैं.

प्रतिपक्षियों, मुसलमानों को अपमानित करके उन्हें साबित करना होता है कि वे भाजपा के नेता माने जाने लायक़ हैं. हिमंता बिस्वा शर्मा इसका उदाहरण हैं. मुसलमानों को अपमानित करने, उनके प्रति घृणा और हिंसा का प्रचार करने में वे नरेंद्र मोदी से प्रतियोगिता कर रहे हैं. और इसमें उन्हें मज़ा भी आ रहा है.

यह सब कुछ होता आया है, कहने से काम नहीं चलेगा. जो चल रहा है, वह और चलने नहीं देना चाहिए. अगर हिंदू इस सभ्य विश्व के नागरिक के रूप में जगह चाहते हैं तो यह नहीं हो सकता कि वे गालीबाज सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को वोट दें.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)

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