कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार के सांठगांठ वाले पूंजीवाद की वजह से छोटे व्यवसायों को नुकसान हो रहा है. आर्थिक लाभ कुछ कंपनियों तक सीमित हो गए हैं और लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का उनसे मुक़ाबला करना असंभव-सा हो गया है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि आम परिवार और छोटे व्यवसाय उच्च बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई के कारण भारी दबाव में हैं और केंद्र सरकार इसे ठीक करने में असमर्थ है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम बुलेटिन और अन्य स्रोतों से विभिन्न डेटा बिंदुओं का हवाला देते हुए कांग्रेस के संचार मामलों के प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र में ‘कुप्रबंधन’ किया है और चूंकि यह बेरोजगारी व मंहगाई जैसे मुद्दों का समाधान करने में असमर्थ है, इसलिए आंकड़ों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है.
सरकार के इस दावे का खंडन करते हुए कि बचत में गिरावट आई है क्योंकि लोग कारें और घर खरीद रहे हैं, रमेश ने आरबीआई के आंकड़ों की ओर इशारा करते हुए कहा कि पिछले एक साल में सोने के ऋण में 23 प्रतिशत तक बढ़ गया और पर्सनल लोन 29 प्रतिशत तक बढ़ा है – जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि लोग अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए कर्ज में डूब रहे हैं.
ट्विटर पर बयान पोस्ट करते हुए रमेश ने लिखा, ‘मोदी सरकार डेटा को कितना भी छुपाए, वास्तविकता यह है कि अधिकांश लोग पीड़ित हैं. हमारा बयान पिछले सप्ताह रिपोर्ट किए गए कुछ तथ्यों पर प्रकाश डालता है – मुख्य रूप से सितंबर के आरबीआई बुलेटिन से – जिन्हें दबा दिया गया है.
संसद का विशेष सत्र समाप्त हो चुका है। इस सत्र को लेकर एक बात बिल्कुल साफ़ है। मोदी सरकार देश को कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों — अडानी घोटाला, जाति जनगणना और विशेष रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, बढ़ती असमानता और आर्थिक संकट आदि से भटकाने की कोशिश कर रही थी।
सरकार आंकड़ों को चाहे कितना भी छिपा… pic.twitter.com/K2npGRaWxn
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 24, 2023
बयान में रमेश ने कहा कि आरबीआई के नवीनतम बुलेटिन ने ‘कोविड-19 महामारी से उबरने में मोदी सरकार की पूर्ण विफलता’ को दर्शाया है. उन्होंने बताया कि फरवरी 2020 तक लगभग 43% आबादी श्रम बल में थी और 3.5 साल बाद श्रम बल में भागीदारी लगभग 40% थी.
रमेश ने यह भी कहा कि 2022 में महिलाएं अभी भी महामारी से पहले की तुलना में केवल 85 प्रतिशत कमा रही थीं और अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक हालिया रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें दिखाया गया है कि साल 2021-22 में 25 वर्ष से कम आयु के 42 प्रतिशत से अधिक स्नातक में बेरोजगार थे.
रमेश ने दाल, चीनी, आटा, बेसन और गुड़ जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि पर भी प्रकाश डाला, जो आम परिवारों के घरेलू बजट को प्रभावित कर रहा है.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में 16 प्रतिशत की गिरावट का हवाला देते हुए रमेश ने कहा कि मोदी सरकार के क्रोनी पूंजीवाद, विफल आर्थिक नीतियों और सांप्रदायिक तनाव भड़काने के कारण विदेशी निवेशकों के भारत पर दांव लगाने की संभावना कम हो गई है.
रमेश ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के साठगांठ वाले पूंजीवाद की वजह से छोटे व्यवसायों को नुकसान हो रहा है. आर्थिक लाभ कुछ कंपनियों तक सीमित हो गए हैं और लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का उनसे मुकाबला करना असंभव सा हो गया है.
उन्होंने मार्सेलस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2022 में कंपनियों के कुल मुनाफे का 80 प्रतिशत हिस्सा केवल 20 कंपनियों के पास गया था. इसके विपरीत छोटे व्यवसाय की बाजार हिस्सेदारी भारत के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. 2014 से पहले छोटे व्यवसायों की बिक्री कुल बिक्री की लगभग सात प्रतिशत थी जो 2023 की पहली तिमाही में घटकर चार प्रतिशत से कम हो गई.
रमेश ने कहा, ‘बढ़ती बेरोजगारी, घरेलू आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, एमएसएमई की बिक्री में कमी, धीमी घरेलू ऋण वृद्धि, घरेलू वित्तीय देनदारियों में वृद्धि, बचत में कमी और एफडीआई में गिरावट से लेकर, मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को कुप्रबंधित किया है. केंद्र सरकार इसे ठीक करने में असमर्थ है.’