जोशीमठ भू-धंसाव पर रिपोर्ट में केंद्रीय संस्थानों ने उच्च तीव्रता वाले भूकंप की संभावना जताई

जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर आठ सरकारी संस्थानों की रिपोर्ट में एनटीपीसी को क्लीन चिट दे दी गई है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इस संकट के लिए क्षेत्र में अनियोजित और अराजक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, विशेष रूप से एक बिजली संयंत्र जिसमें विस्फोट और पहाड़ों में ड्रिलिंग शामिल थे, को ज़िम्मेदार ठहराया है.

जोशीमठ में जमीन धंसाव के कारण क्षतिग्रस्त मकान. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर आठ सरकारी संस्थानों की रिपोर्ट में एनटीपीसी को क्लीन चिट दे दी गई है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इस संकट के लिए क्षेत्र में अनियोजित और अराजक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, विशेष रूप से एक बिजली संयंत्र जिसमें विस्फोट और पहाड़ों में ड्रिलिंग शामिल थे, को ज़िम्मेदार ठहराया है.

जोशीमठ में जमीन धंसाव के कारण क्षतिग्रस्त मकान. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: आठ सरकारी संस्थानों की एक रिपोर्ट में उत्तराखंड के ‘डूबते शहर’ जोशीमठ की मिट्टी की क्षमता के बारे में कई टिप्पणियां की गई हैं. इसमें कहा गया है कि यह क्षेत्र उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ को भूस्खलन या जमीन की सतह बैठने के खतरे की भयावहता के आधार पर चार क्षेत्रों – ‘लाल, काला, पीला और हरा’ में विभाजित किया गया है.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा ने कहा, ‘जोशीमठ में उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में सभी निर्माण ध्वस्त कर दिए जाएंगे.’

इस साल की शुरुआत में आठ संस्थानों – सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट, सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और आईआईटी को जोशीमठ में जमीन की सतह के धंसने का आकलन करने के लिए यह काम सौंपा गया था.

हालिया जानकारी उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा विशेषज्ञों की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने के राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाने के कुछ दिनों बाद आई है.

अदालत ने बीते सप्ताह की कहा था, ‘हमें कोई कारण नहीं दिखता कि राज्य को विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को गुप्त रखना चाहिए और बड़े पैमाने पर जनता के सामने इसका खुलासा नहीं करना चाहिए.’

अब सामने आए रिपोर्ट के हिस्से बताते हैं कि इस संकट में भूमिका होने को लेकर नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को क्लीन चिट दे दी गई है.

उल्लेखनीय है कि जनवरी में दरारें सामने के बाद वहां के निवासियों ने पहले एनटीपीसी परियोजना की सुरंगों में विस्फोटों के बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा था. जोशीमठ में जमीन धंसने की समीक्षा करने के लिए इस साल जनवरी में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने एनटीपीसी के अधिकारियों को तलब  भी किया था, जो इस क्षेत्र में तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रहे हैं.

एनटीपीसी ने अपनी परियोजना और जोशीमठ की स्थिति के बीच किसी भी संबंध से इनकार किया था.

हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ता और जोशीमठ बचाओ समिति एनटीपीसी की 500 मेगावाट तपोवन- विष्णुगढ़ परियोजना को शहर को हुए नुकसान का जिम्मेदार बताते रहे हैं.

रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने इस संकट के लिए क्षेत्र में अनियोजित और अराजक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया है, विशेष रूप से एक बिजली संयंत्र जिसमें विस्फोट और पहाड़ों में ड्रिलिंग शामिल है.

इस साल जनवरी में जोशीमठ में जमीन धंसने से कई घरों में दरारें आ गईं थीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, शहर के नौ वार्डों की 868 इमारतों में दरारें पाई गईं, जबकि 181 इमारतें असुरक्षित क्षेत्र में आ गई थीं. इसके चलते 300 से अधिक परिवार विस्थापित हुए थे.

दरारों की सूचना मिलने के तुरंत बाद आठ केंद्रीय सरकारी संस्थानों ने शहर की भूमि धंसने के कारणों का विश्लेषण करना शुरू किया था.

रिपोर्ट में और क्या लिखा है

नवभारत टाइम्स के अनुसार, रिपोर्ट में पूरे जोशीमठ के धंसने की आशंका गलत बताया गया है.  है. वहीं नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (एनजीआरआई) के अनुसार शहर में आई दरारें कहीं-कहीं 100 फीट से अधिक गहरी हैं. रिपोर्ट में कुछ क्षेत्रों के 3 फीट से अधिक की गहराई तक धंसने और 1.4 मीटर तक खिसकने की बात का भी उल्लेख किया गया है.

अख़बार ने बताया है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा है कि जोशीमठ क्षेत्र को नो-न्यू कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाना चाहिए यानी किसी तरह के नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. सरकारी संस्थानों की रिपोर्ट यह भी कहती है कि जोशीमठ पहले ही अपनी क्षमता से अधिक भार उठा रहा है. ऐसे में यहां नए भारी निर्माण न करना ही उचित होगा. साथ ही प्रभावित क्षेत्र की लगातार निगरानी और विस्तृत भूवैज्ञानिक अध्ययन भी होते रहने चाहिए.