देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति में सरकार द्वारा की जा रही कथित देरी पर अवमानना की कार्यवाही की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1 नवंबर 2022 से कॉलेजियम द्वारा की गईं 70 सिफारिशें वर्तमान में सरकार के पास लंबित हैं. जब तक इनका समाधान नहीं हो जाता, हर 10 से 12 दिन में सुनवाई होगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण की सिफारिशें सरकार के पास लंबित होने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि वह इस मुद्दे की बारीकी से निगरानी करेगा और इसके समाधान तक कम से कम 10-12 दिनों में एक बार इसे उठाएगा. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम द्वारा की गईं 70 सिफारिशों वर्तमान में सरकार के पास लंबित हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, दो सदस्यीय पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एसके कौल ने कहा, ‘कुछ मायनों में हमने इन चीजों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है. अब हम इसकी बारीकी से निगरानी करना चाहते हैं.’
पीठ, जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया भी शामिल थे, बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में सरकार की ओर से कथित देरी के लिए अदालत की अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई थी.
याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी से कहा कि 11 नवंबर 2022 से सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम द्वारा की गईं 70 सिफारिशें वर्तमान में सरकार के पास लंबित हैं.
जस्टिस कौल ने कहा, ‘दोहराए गए नामों की संख्या 7 है, जबकि 9 नाम पहली बार प्रस्तावित किए गए हैं.’ उन्होंने कहा कि एक मुख्य न्यायाधीश की पदोन्नति और 26 स्थानांतरण संबंधी मामले हैं.
जस्टिस कौल ने कहा कि चार दिन पहले तक लंबित फाइल की संख्या 80 थी, लेकिन तब से सरकार ने 10 नामों को मंजूरी दे दी है. इसलिए वर्तमान आंकड़ा 70 है.
पीठ ने बताया कि लंबित फाइल में से एक फाइल एक ‘संवेदनशील हाईकोर्ट’ के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यह संदर्भ स्पष्ट रूप से मणिपुर हाईकोर्ट के संबंध में था, जहां सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने 5 जुलाई 2023 को दिल्ली हाईकोर्ट के जज सिद्धार्थ मृदुल को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी.
अदालत ने एजी वेंकटरमणी को मामले में निर्देश लेने के लिए कहा. एजी ने आश्वासन दिया कि वह ऐसा करेंगे और एक हफ्ते का समय मांगा.
एनजीओ कॉमन कॉज, जो इस मामले में एक पक्ष है, की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण की दलीलों का जवाब देते हुए जस्टिस कौल ने कहा कि देरी के कारण कुछ लोगों को अपना नाम वापस लेना पड़ा है.
एजी के आश्वासन का जिक्र करते हुए जस्टिस कौल ने कहा, ‘जब तक इसका समाधान नहीं हो जाता, हर 10 से 12 दिन में मैं इस मामले पर सुनवाई करूंगा. मैंने बहुत कुछ कहने के बारे में सोचा, लेकिन चूंकि अटॉर्नी 7 दिन का समय मांग रहे हैं, इसलिए मैं खुद को रोक रहा हूं.’
जस्टिस कौल ने कहा, ‘यदि वह सब कुछ करवा सकते हैं तो मुझे कुछ नहीं करना है, मुझे बहुत खुशी होगी.’
भूषण ने कहा कि देरी के चलते देश में न्याय के प्रशासन में बाधा पहुंचती है और कहा कि ‘इसलिए मैं इस अदालत से कड़ा रुख अपनाने के लिए कह रहा हूं.’
जस्टिस कौल ने प्रतिक्रिया दी कि वह आज चुप हैं, क्योंकि एजी एक सप्ताह मांग रहे हैं, लेकिन अगले दिन में शायद चुप न रहें.
पीठ मामले परअगली सुनवाई 9 अक्टूबर को करेगी.