सरकार का टीबी दवाओं की कमी से इनकार, सिविल समूह बोले- यह पीड़ितों के संघर्ष की उपेक्षा है

टीबी रोग के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कमी संबंधी ख़बरों के सामने आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक बयान जारी करके इन्हें भ्रामक क़रार दिया है. इसकी आलोचना करते हुए सिविल सोसायटी समूहों ने कहा है कि उनके पास टीबी की दवाएं प्राप्त करने में कठिनाइयों से जूझ रहे रोगियों, रिश्तेदारों और डॉक्टरों की अपीलों की बाढ़ आ गई है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ILO/Flickr CC BY NC ND 2.0)

टीबी रोग के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं की कमी संबंधी ख़बरों के सामने आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक बयान जारी करके इन्हें भ्रामक क़रार दिया है. इसकी आलोचना करते हुए सिविल सोसायटी समूहों ने कहा है कि उनके पास टीबी की दवाएं प्राप्त करने में कठिनाइयों से जूझ रहे रोगियों, रिश्तेदारों और डॉक्टरों की अपीलों की बाढ़ आ गई है.

प्रतीकात्मक फोटो. (फोटो साभार: फ्लिकर)

नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बीते मंगलवार (26 सितंबर) को दवा-प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित रोगियों के लिए दवाओं की किसी भी कमी से इनकार किया है. इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए टीबी प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाले सिविल सोसायटी समूहों ने जमीनी स्तर पर लोगों के ‘वास्तविक संघर्षों और पीड़ाओं’ की अनदेखी करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने मीडिया रिपोर्टों को ‘अस्पष्ट’, ‘गलत जानकारी’ और ‘भ्रामक’ बताते हुए एक बयान में कहा था, ‘ये सभी दवाएं छह महीने और उससे अधिक समय तक के लिए पर्याप्त स्टॉक में उपलब्ध हैं.’

पूरा बयान यहां देखा जा सकता है.

द वायर ने 22 सितंबर 2023 को एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें टीबी रोगियों के परिजनों और छह राज्यों में बीमारी के प्रबंधन का काम कर रहे लोगों का हवाला देते हुए कहा गया था कि दवाओं की भारी कमी ने दवा-प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित रोगियों को बहुत प्रभावित किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के टीबी योजना प्रमुख ने द वायर को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसी भारत के हालात से अवगत और चिंतित है.

द वायर ने जिन दो डॉक्टरों से बात की, उन्होंने भी चिंता व्यक्त की और कहा कि दवाओं की कमी से मरीजों पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ सकते हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने द वायर द्वारा भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया था.

मंत्रालय के इनकार पर प्रतिक्रिया देते हुए पांच सिविल सोसायटी समूहों ने एक संयुक्त बयान में कहा है:

‘भारत में टीबी समुदाय जिसमें टीबी सर्वाइवर, टीबी रक्षक, टीबी प्रभावित समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सीसीएम सदस्य, टीबी रोगियों का इलाज करने वाले चिकित्सक और टीबी चैंपियन शामिल हैं- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के आज के नोटिस से बहुत चिंतित हैं, जिसमें कहा गया है कि टीबी दवाओं के स्टॉक खत्म होने की स्थिति एक मिथक और मीडिया का प्रचार है.’

संगठनों ने कहा कि उनके पास ‘अब तक’ टीबी की दवाएं प्राप्त करने में कठिनाइयों से जूझ रहे रोगियों, रिश्तेदारों और डॉक्टरों की चिंतित करने वाली अपीलों की बाढ़ आ गई है.

इस बयान का समर्थन टीबी मुक्ति वाहिनी (बिहार), एआरके फाउंडेशन (नगालैंड), सिविल सोसायटी समूहों का एक वैश्विक निकाय ग्लोबल कोअलाएंस ऑफ टीबी एडवोकेट्स, रेनबो टीबी फोरम (तमिलनाडु) और भारत में टीबी से प्रभावित लोगों के राष्ट्रीय गठबंधन ‘टच्ड बाय टीबी’ द्वारा किया गया है.

मंत्रालय ने महाराष्ट्र और राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध विभिन्न दवाओं के स्टॉक के बारे में जानकारी जारी की, जिसमें दावा किया गया कि स्टॉक छह महीने तक चलेंगे.

हालांकि, एक सिविल सोसायटी समूह की सदस्य वैष्णवी जयकुमार द्वारा ऑनलाइन उपलब्ध निविदाओं के आंकड़ों का उपयोग करके की गई गणना से पता चलता है कि एक दवा सिर्फ एक महीने के लिए उपलब्ध है, दूसरी एक महीने से भी कम समय के लिए उपलब्ध है, यही हाल दूसरी दवाओं का भी है.

जयकुमार ने इन दवाओं की वार्षिक आवश्यकता को समझने के लिए निविदाओं (Tenders) को देखा और इस प्रकार मासिक आवश्यकता का अनुमान लगाया. निविदाएं सेंट्रल मेडिकल सर्विसेज सोसाइटी (सीएमएसएस) की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. सीएमएसएस भारत सरकार का उपक्रम है जिसका काम दवाओं की खरीद का है.

जयकुमार ने द वायर को बताया, ‘हमारी गणना स्पष्ट तौर पर दिखाती है कि एक भी दवा का स्टॉक छह महीने तक नहीं चलेगा. अधिकांश मामलों में यह तीन महीने से भी कम और कुछ मामलों में एक महीने से भी कम समय के लिए उपलब्ध है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘आरामदायक स्थिति में रहने के लिए सरकार जानती है कि राज्यों के पास कम से कम तीन महीने का स्टॉक होना चाहिए.’

स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि दवा की उपलब्धता का डेटा टीबी रोगियों के लिए बने निक्षय औषधि डिजिटल प्लेटफॉर्म से लिया गया है. सिविल सोसायटी समूहों ने कहा कि निक्षय औषधि के आंकड़ों की जांच करने का कोई तरीका नहीं है और पूछा कि अगर सरकार के दावे सही हैं तो फिर देश भर में इतनी गंभीर स्थिति क्यों है.

बयान के निष्कर्ष में कहा गया है, ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के हालिया संचार को देखना निराशाजनक है, जो जमीन पर लोगों द्वारा सहे जा रहे वास्तविक संघर्ष और पीड़ाओं की उपेक्षा करता प्रतीत होता है. मंत्रालय के बयान और टीबी रोगियों के जीवंत अनुभवों के बीच इस तरह का विरोधाभास प्रधानमंत्री के 2025 तक टीबी का खात्मा करने के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चिंताजनक और प्रतिकूल है.’

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