इसी महीने में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध का पानी ओवरफ्लो हो गया था, जिससे भरूच, नर्मदा, वडोदरा, पंचमहल और दाहोद जिलों में बाढ़ आ गई थी. आरोप है कि बीते 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 73वें जन्मदिन पर उन्हें ‘खुश’ करने के लिए बांध में पानी को दो दिन तक रोककर रखा गया था, जिसे एक साथ छोड़े जाने के कारण बाढ़ आ गई.
नई दिल्ली: गुजरात के बाढ़ प्रभावित पीड़ितों ने मुआवजे को राज्य सरकार द्वारा उनके साथ किया गया ‘एक क्रूर मजाक’ करार दिया है, क्योंकि यह सहायता किसी भी तरह से उनकी क्षति के अनुरूप नहीं है.
इस महीने की शुरुआत में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध का पानी ओवरफ्लो हो गया था, जिससे भरूच, नर्मदा, वडोदरा, पंचमहल और दाहोद जिलों में बाढ़ आ गई थी.
ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि बाढ़ वास्तव में एक ‘मानव निर्मित’ आपदा थी, क्योंकि अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को ‘खुश’ करने के लिए 17 सितंबर को भारी मात्रा में पानी (18 लाख क्यूसेक) छोड़ने से पहले दो दिनों के लिए बांध में पानी को रोक दिया गया था. नरेंद्र मोदी ने उस दिन अपना 73वां जन्मदिन मनाया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 22 सितंबर को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, प्रत्येक प्रभावित परिवार को राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से कुल 7,000 रुपये की सहायता मिलेगी, कपड़ों के लिए 2,500 रुपये और घरेलू सामान के लिए 2,500 रुपये. सरकार ने कहा कि उसने वास्तव में प्रभावित परिवारों को राज्य के बजट से अतिरिक्त 2,000 रुपये प्रदान करने के लिए एक विशेष प्रावधान किया है, जिससे मुआवजे की कुल राशि 7,000 रुपये प्रति परिवार हो जाएगी.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने दक्षिण गुजरात के भरूच जिले के जूना बोरभाटा गांव के सुरेश पटेल के हवाले से कहा, ‘आज के महंगाई के समय में मुझे बताएं कि पूरे परिवार के लिए 2,500 रुपये में किस तरह का घरेलू सामान खरीदा जा सकता है, अगर परिवार में 10 लोग हैं तो 2,500 में किस तरह के कपड़े खरीदे जा सकते हैं.’
बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान भरूच जिले को हुआ है.
सुरेश ने आगे कहा, ‘कितने लोग कपड़े पहन पाएंगे? अगर प्रत्येक जोड़ी की कीमत 100 रुपये हो तो आपको 10 व्यक्तियों के लिए कितनी जोड़ी चप्पल खरीदने की आवश्यकता होगी और क्या आप परिवार के बाकी सदस्यों के लिए कपड़े खरीद पाएंगे?’
अधिसूचना में उन लोगों को एसडीआरएफ से 20,000 रुपये देने की भी पेशकश की गई है, जिनके घर पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं या गंभीर क्षति हुई है. आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त आवासीय कच्चे/पक्के आवासों को अतिरिक्त 10,000 रुपये दिए जाएंगे, जिनमें कम से कम 15 प्रतिशत क्षति हुई है. पूरी तरह से नष्ट या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त झोपड़ियों के लिए 10,000 रुपये दिए जाएंगे.
पीड़ितों का कहना है कि मुआवजा बेहद अपर्याप्त है. जूना बोरभाठा गांव के दलपत पटेल ने कहा, ‘सरकार ने घाव दिया और अब मरहम लगाने का प्रयास कर रही है. सरकार का दावा है कि अगर पूरी इमारत गिरा दी जाए तो उन्हें 1,20,000 रुपये की सहायता मिलेगी. सरकार से पूछिए कि इतने पैसे में घर कैसे बनेगा. क्या सीमेंट, ईंट और कंक्रीट की कीमत सरकार को पता नहीं है?’
उन्होंने आगे सवाल किया, ‘जैसा कि सरकार का दावा है, आज के महंगाई के समय में 5,000 रुपये में शेड कौन बनाएगा?’
यहां तक कि किसानों ने भी अपनी बर्बाद हुई फसल के लिए सरकार द्वारा घोषित मुआवजे और मानदंडों पर निराशा व्यक्त की है. सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि केवल वे लोग ही मुआवजे के पात्र होंगे, जिनकी खड़ी फसल को 33 प्रतिशत या उससे अधिक नुकसान हुआ है.
अधिसूचना में कहा गया है, ‘विशेष राहत पैकेज के तहत जिन किसानों को गैर-सिंचित खरीफ फसलों में 33 प्रतिशत या उससे अधिक नुकसान हुआ है, उन्हें अधिकतम 2 हेक्टेयर तक 8,500 रुपये प्रति हेक्टेयर का मुआवजा मिलेगा, जबकि जिन सिंचित खेतों में खरीफ फसलें बोई गई थीं, उन्हें प्रति हेक्टेयर 17,000 रुपये का मुआवज़ा मिलेगा और राज्य के खजाने से 8,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का अतिरिक्त मुआवजा दिया जाएगा. इस तरह अधिकतम 2 हेक्टेयर के लिए कुल 25,000 रुपये का प्रति हेक्टेयर का मुआवजा प्रदान किया जाएगा.’
गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने मुआवजे को ‘मजाक’ करार दिया. उन्होंने कहा, ‘इस मानव निर्मित आपदा के कारण भरूच, नर्मदा और वडोदरा जिलों में किसानों को भारी नुकसान हुआ है. क्षेत्र में लगभग चार लाख किसानों को नुकसान हुआ है और इसलिए सरकार द्वारा घोषित मुआवजा पैकेज एक मजाक है.’
राज्य कांग्रेस पार्टी ने कहा कि अगर भाजपा सरकार मोदी को ‘खुश’ करने की कोशिश करने के बजाय लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखती तो बाढ़ को रोका जा सकता था.
राज्य कांग्रेस अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल ने कहा, ‘यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि 17 सितंबर को प्रधानमंत्री का जन्मदिन था और उस अवसर के लिए बांध का पानी रोक दिया गया था. मुख्यमंत्री वहां पूजा करने गए थे. इस नाटक को अंजाम देने के लिए पिछले सप्ताह से बढ़ रहे पानी को नहीं छोड़ा गया और टर्बाइनों को बंद कर दिया गया. इसके बजाय अगर पानी छोटी किश्तों में छोड़ा गया होता, तो यह विनाश नहीं होता और लोगों को इतना नुकसान नहीं होता.’
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