मशहूर हेपेटोलॉजिस्ट (यकृत, पित्ताशय और अग्न्याशय रोग विशेषज्ञ) डॉ. सिरिएक एबी फिलिप्स आयुष दवाओं से जुड़े कुछ तरीकों पर सवाल उठाने के लिए जाने जाते हैं. उनके अनुसार, इनसे कुछ मरीज़ों को लिवर संबंधी समस्याएं हुई हैं.
नई दिल्ली: बेंगलुरु की सिविल अदालत द्वारा हिमालया वेलनेस कॉरपोरेशन द्वारा दायर एक मुकदमे में एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा आदेश पारित करने के बाद ‘द लिवर डॉक’ के नाम से मशहूर हेपेटोलॉजिस्ट (यकृत, पित्ताशय, पित्त नलिकाएं और अग्न्याशय रोग विशेषज्ञ) डॉ. सिरिएक एबी फिलिप्स का ट्विटर अकाउंट निलंबित कर दिया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने दावा किया है कि उन्होंने कंपनी के उत्पादों के खिलाफ मानहानिकारक आरोप लगाए हैं.
डॉ. फिलिप्स का व्यापक रूप से लोकप्रिय हैंडल ‘@theliverdr‘ अब भारत में एक्सेस नहीं किया जा सकता है. ट्विटर पर दिख रहे मैसेज में कहा गया है कि @theliverdr हैंडल को को कानूनी मांग के जवाब में वैश्विक तौर पर रोक लगाई गई है.हालांकि, द वायर ने पुष्टि की है कि यह हैंडल भारत के बाहर एक्सेस किया जा सकता है.
लाइव लॉ के अनुसार, हिमालया वेलनेस कॉरपोरशन का दावा है कि डॉ. फिलिप्स ‘कंपनी के उत्पादों के खिलाफ अपमानजनक बयान पोस्ट कर रहे हैं, जिसके कारण उन्हें काफी कारोबारी नुकसान हुआ है.’ कंपनी ने यह कहते हुए कि फिलिप्स के बयान झूठे और अनुचित हैं, यह दावा भी किया है कि डॉ फिलिप्स का इरादा ‘सिप्ला और अल्केम जैसी अन्य कंपनियों के उत्पादों को बढ़ावा देना है.’
बेंगलुरु की सिविल अदालत ने ट्विटर को उनका एकाउंट निलंबित करने का निर्देश दिया है और और डॉ. फिलिप्स के कंपनी के खिलाफ कोई भी अपमानजनक टिप्पणी ट्वीट या प्रकाशित करने पर भी रोक लगा दी है.
अदालत ने कहा कि ‘प्रतिष्ठा और धन की हानि सहित कंपनी को हुए नुकसान को कम करने के लिए’ एकपक्षीय निषेधाज्ञा जरूरी थी. इसमें कहा गया है कि डॉ. फिलिप्स के बयानों के कारण लिव-52 जैसे हिमालया उत्पादों से फायदा पाने वाले उपभोक्ताओं का ‘नुकसान’ हो रहा है.
अदालत ने डॉ. फिलिप्स को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी, 2024 को तय की है.
संपर्क किए जाने पर डॉ. फिलिप्स ने कहा, ‘यह बिल्कुल अप्रत्याशित था. मुझे कभी भी [अदालत के आदेश के बारे में] सूचित नहीं किया गया. मुझे अदालत या हिमालया से कोई दस्तावेज़ या नोटिस नहीं मोला. असल में मुझे यह आदेश ट्विटर से ही मिला, जिसने इसे अपने ईमेल के साथ यह कहते हुए भेजा था कि मेरे एकाउंट पर रोक लगाई जा रही है. किसी ने मेरी बात नहीं सुनी या मुझे जवाब देने का मौका नहीं दिया.’
उन्होंने जोड़ा, ‘मेरे सभी पोस्ट [मिथकों का खंडन करने वाले] वास्तव में पूरी तरह से विज्ञान और साक्ष्यों पर आधारित हैं. मैंने सारा विश्लेषण [लैब एनालिसिस सहित] खुद ही किया है. वो सब सार्वजनिक समीक्षा के लिए उपलब्ध है… कुछ भी अफवाह या मनमाने ढंग से नहीं कहा गया है. मैं अपने वकीलों से बात कर रहा हूं, और जितनी जल्दी संभव हो, मैं इस एकतरफा आदेश को रद्द कराने के लिए आगे बढ़ूंगा.’
डॉ. फिलिप्स ने यह भी कहा, ‘बल्कि यह मैं तो इस आदेश को ही मानहानिकारक मानता हूं. हिमालया ने आरोप लगाया है कि मैं कुछ कंपनियों की ओर से और उनके उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए ट्विटर पोस्ट [कुछ आयुर्वेद उत्पादों के मिथकों को खारिज करते हुए] लिख रहा था. उन्होंने कंपनियों के नाम भी बता दिए हैं. लेकिन हिमालया इस दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत देने में नाकाम रहा. अदालत के आदेश में भी सबूत नहीं हैं… मैं इस पहलू पर वकीलों की राय भी मांग रहा हूं क्योंकि यह मेरे लिए मानहानिकारक है.’
उल्लेखनीय है कि डॉ. फिलिप्स को आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्ध और यूनानी (आयुष) जैसी वैकल्पिक दवाओं से जुड़ी कुछ प्रैक्टिस पर सवाल उठाने के लिए जाना जाता है, जिनके बारे में उनका कहना है कि इससे कुछ मरीजों के लिवर को नुकसान पहुंचा है. अतीत में, गिलोय जड़ी बूटी पर उनके विचारों को लेकर आयुष मंत्रालय द्वारा उन्हें मानहानि की धमकी दी गई थी और फरवरी 2022 में केरल स्टेट मेडिकल काउंसिल फॉर इंडियन सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन से उन्हें नोटिस दिया गया था- हालांकि अक्टूबर में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था.
उन्हें नियमित रूप से धमकियों का भी सामना करना पड़ा है. उनकी लैब में कुछ होम्योपैथ द्वारा घुसपैठ करते हुए उनके कर्मचारियों को परेशान किया गया था और फेसबुक पर तस्वीरें पोस्ट की गई थीं, जिनमें हिंसा का आह्वान किया गया था.
द वायर ने इस बारे में प्रतिक्रिया के लिए हिमालया वेलनेस से संपर्क किया है. उनका जवाब आने पर खबर में जोड़ा जाएगा.