गुजरात राज्य विधि आयोग ने हिरासत में मौत के बढ़ते मामलों को बड़ी चिंता का विषय बताया

गुजरात राज्य विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि यह बड़ी सार्वजनिक चिंता का विषय है कि गुजरात में हिरासत में मौत की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं. यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह बड़े पैमाने पर उठाया जा रहा है, क्योंकि कई पुलिसकर्मी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

गुजरात राज्य विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि यह बड़ी सार्वजनिक चिंता का विषय है कि गुजरात में हिरासत में मौत की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं. यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह बड़े पैमाने पर उठाया जा रहा है, क्योंकि कई पुलिसकर्मी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@GujaratPolice)

नई दिल्ली: गुजरात में हिरासत में मौत की बढ़ती घटनाओं को ‘बड़ी सार्वजनिक चिंता का विषय’ बताते हुए गुजरात राज्य विधि आयोग (एसएलसी) ने हाल ही में राज्य सरकार को कई सुझाव देते हुए एक रिपोर्ट सौंपी है. इसमें यह भी बताया गया है कि 2021 में पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज एक भी मामले में सजा नहीं हुई है.

जुलाई में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) एमबी शाह ने पुलिस को संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करने के लिए संवेदनशील बनाने के लिए कई तरह सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इन सुझावों में पुलिस स्टेशनों और जेलों में वीडियो-ऑडियो सक्षम सीसीटीवी कैमरे स्थापित करके पारदर्शिता को बढ़ावा देना, अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करना, कैदियों की नियमित स्वास्थ्य जांच करना और हिरासत में लिए गए लोगों से सबूत इकट्ठा करने की प्रक्रिया में विशेषज्ञता वाली विशेष पूछताछ टीमें बनाना आदि शामिल हैं.

‘हिरासत में मौत की अवांछित घटनाओं की रोकथाम के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसी पर उचित नियंत्रण के सुझाव’ शीर्षक वाली रिपोर्ट राज्य विधायी और संसदीय मामलों के विभाग को सौंपी गई है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शाह ने इससे पहले गोवा में अवैध खनन की जांच के लिए एक आयोग और काले धन की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का नेतृत्व किया है.

बीते फरवरी माह में गृह मंत्रालय द्वारा राज्यसभा को सूचित किया गया था कि साल 2017 और 2022 के बीच गुजरात में देश भर में हिरासत में मौतों के सबसे अधिक 80 मामले दर्ज किए गए थे.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विभिन्न प्रकाशनों की रिपोर्ट का हवाला दिया, जो गुजरात में हिरासत में मौत की बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत देती है. इसमें एनसीआरबी डेटा पर आधारित इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट भी शामिल की गई है. इसके अनुसार, गुजरात में 2021 में लगातार दूसरे वर्ष हिरासत में मौत के सबसे अधिक 23 मामले दर्ज किए गए थे. साल 2020 में ऐसे 15 मामले दर्ज किए गए, जिसमें 2021 में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

आयोग ने ‘एनसीआरबी – भारत में अपराध: 2021’ रिपोर्ट से हिरासत में अपराधों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायतों का भी हवाला दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘गुजरात में 2021 में पुलिस हिरासत के दौरान (हालांकि रिमांड पर नहीं) 22 लोगों की कथित तौर पर मौत हुई थी. 9 मामलों में मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए गए, जबकि 11 मामलों में न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे. इसके अलावा चार मामले दर्ज किए गए, जिनमें से दो में आरोप-पत्र दायर किया गया. इसके अतिरिक्त 12 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया और 9 के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया था.’

इसमें कहा गया है कि रिमांड में व्यक्तियों के बीच पुलिस हिरासत/लॉक-अप में मौतों से संबंधित आंकड़ों के अनुसार, 2021 में गुजरात में एक व्यक्ति की कथित तौर पर मौत हो गई थी और मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर 2021 में गुजरात में पुलिस हिरासत या लॉक-अप में 23 लोगों की मौत हुई थी.

पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज मामलों का हवाला देते हुए आयोग ने कहा कि 2021 में राज्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज 209 मामलों में से सात को अदालतों द्वारा रद्द/रोक दिया गया, जबकि पुलिस ने 182 मामलों में आरोप-पत्र दायर किया और 878 मामलों में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई.

आयोग ने कहा, ‘यह बड़ी सार्वजनिक चिंता का विषय है कि गुजरात में हिरासत में मौत की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं, जो काफी नृशंस है. यह स्वीकार करने की जरूरत है कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह बड़े पैमाने पर उठाया जा रहा है, क्योंकि कई पुलिसकर्मी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’