अयोध्या: फिर विवादों में क्यों है श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट?

अयोध्या में ज़मीन खरीद-फ़रोख़्त में भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में रह चुकी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर अब हनुमानगढ़ी के नागा साधुओं ने गढ़ी की अंगद टीले की भूमि हड़पने के प्रयास करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है.

/
अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर. (फोटो साभार: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र)

अयोध्या में ज़मीन खरीद-फ़रोख़्त में भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में रह चुकी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर अब हनुमानगढ़ी के नागा साधुओं ने गढ़ी की अंगद टीले की भूमि हड़पने के प्रयास करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है.

अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर. (फोटो साभार: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र)

दो साल पहले भूमि की खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार के कई आरोपों के घेरे में रह चुके अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर अब ‘धोखाधड़ी करके जमीन हड़पने की कोशिश करने’ के आरोप में उंगलियां उठ रही हैं. इस बार उस पर उंगली उठाने वाला कोई राजनीतिक दल, उसका नेता या कार्यकर्ता नहीं बल्कि स्थानीय हनुमानगढ़ी है.

गढ़ी के नागा साधुओं ने गढ़ी की अंगद टीले की भूमि हड़पने के लिए ट्रस्ट की कथित कोशिश व धोखाधड़ी को लेकर न सिर्फ उसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, बल्कि बड़े आंदोलन की धमकी भी दी है. इन साधुओं का कहना है कि गढ़ी पर दबाव बनाकर उक्त भूमि पाने की ट्रस्ट की कोशिश विफल हो गई तो उसने स्थानीय प्रशासन पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उक्त भूमि को नजूल घोषित करा दिया है, जबकि वह तेरहवीं शताब्दी से गढ़ी के स्वामित्व में है और इसके दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध है.

इस आरोप की सफाई में ट्रस्ट का कहना है कि प्रशासन की कार्रवाई उसके नियंत्रण से बाहर है, इसलिए उसके लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन गढ़ी के साधुओं का कहना है कि उक्त भूमि को नजूल घोषित करने के पीछे एकमात्र उद्देश्य उसका ट्रस्ट को हस्तांतरण आसान करना है और इसमें प्रशासन और ट्रस्ट की मिलीभगत है.

ज्ञातव्य है कि ट्रस्ट का जून, 2021 में भूमि की खरीद-फरोख्त में भ्रष्टाचार के विपक्षी दलों के आरोपों और जांच की मांगों से ऐसा सामना हुआ था कि एकबारगी उससे सफाई देते नहीं बनी थी. आरोप लगाने वालों के अनुसार ट्रस्ट ने कथित भ्रष्टाचार में सत्तातंत्र में अपने प्रभाव का भी कुछ कम इस्तेमाल नहीं किया था. तब इस सिलसिले में भाजपा के एक विधायक, अयोध्या के महापौर के भतीजे व एक सरकारी अधिकारी के नाम भी उछले थे, जबकि एक पत्रकार ने अपनी एक रिपोर्ट में एक प्रॉपर्टी डीलर को यह कहते हुए उद्धृत किया था कि अयोध्या के (तत्कालीन) जिलाधिकारी अनुज कुमार झा एक भूमि सौदे के सिलसिले में उसके घर आकर तीन-चार बार उससे मिले थे.

लेकिन लगता है कि ट्रस्ट ने इस समूचे प्रकरण से कोई सबक लेना गवारा नहीं किया. इसलिए अब जब वह नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारियां कर रहा है, मंदिर के परिसर से सटी अंगद टीले की 1.6 एकड़ भूमि हड़पने को लेकर विवाद में उलझकर सफाई देने को विवश है. नागा साधुओं के मुताबिक वह राम मंदिर परिसर के विस्तार की अपनी योजना के तहत जैसे भी संभव हो, अंगद टीले की भूमि हासिल करने के फेर में है.

अभी जो स्थिति है, उसमें अंगद टीले का एक हिस्सा राम मंदिर परिसर के भीतर, जबकि दूसरा हिस्सा उसकी बैरीकेडिंग के बाहर है. नागा साधुओं का दावा है कि गढ़ी की हरद्वारी पट्टी अपनी इस भूमि पर अरसे तक फूलों की खेती कराती रही है. जानकारों के अनुसार, पिछले दिनों ट्रस्ट जहां इस भूमि को प्राप्त करने के लिए हनुमानगढ़ी के दावेदारों से वार्ता करके दबाव बनाता रहा, वहीं उसकी दिशा में कुछ निर्माण वगैरह भी कराता रहा. उसने मंदिर परिसर की डबल बैरीकेडिंग के बीच से उस ओर गेट खोलने की भी कोशिश की थी.

लेकिन वार्ता से बात बनने के बजाय उलझ गई और गढ़ी ने उक्त भूमि पर साधुओं के कई आश्रयस्थलों के रामपथ, भक्ति पथ और जन्मभूमि पथ की जद में आ जाने से बेघर हुए 45 साधुओं के लिए आश्रय बनाने का इरादा जताया तो पता चला कि स्थानीय प्रशासन ने सरकारी कागजात में उक्त भूमि को नजूल-भूमि घोषित कर दिया है. इससे खफा गढ़ी के नागा साधुओं ने उक्त भूमि पर जाकर वहां भजन-कीर्तन और लंगर तो शुरू किया ही, ट्रस्ट ने वहां जो भी काम कराया था, उसको ध्वस्त करा दिया.

ये पंक्तियां लिखने तक ये साधु वहीं धूनी रमाए हुए हैं. गत 23 सितंबर से जारी उनके इस एक्शन के चलते ट्रस्ट की अंगद टीले की ओर की गतिविधियां ठप हैं, जबकि प्रशासन की ओर से एक मजिस्ट्रेट द्वारा नागा साधुओं को समझाने-बुझाने की कोशिश बेनतीजा रही है.

हनुमानगढ़ी से संबद्ध संकटमोचन सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत संजय दास ट्रस्ट के इस दावे से इत्तेफाक नहीं रखते कि अंगद टीले की भूमि की बाबत गढ़ी से वार्ता में गतिरोध के बाद वह मामले से अलग हो गया है और उक्त भूमि को नजूल करार दिए जाने से उसका कोई लेना-देना नहीं है. वे कहते हैं कि हर कोई जानता है कि प्रशासन को टीले की भूमि को अचानक नजूल भूमि घोषित करने के लिए किसने प्रेरित किया.

जन्मभूमि पथ पर लगी बेंचों पर सवाल

दूसरी ओर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की भवन निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने गत दिनों अयोध्या की बिड़ला धर्मशाला से राम जन्मभूमि तक जाने वाले जन्मभूमि पथ पर यात्रियों की सुविधा के लिए लोक निर्माण विभाग द्वारा लगाई जा रही बेंचों को घटिया बताकर सनसनी फैला दी. हालांकि यह सनसनी बहुत कमउम्र सिद्ध हुई.

प्रसंगवश, 600 मीटर के इस मार्ग का निर्माण भी लोक निर्माण विभाग ही करा रहा है और उसकी गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते और कार्रवाइयां की जाती रही हैं.

बहरहाल, प्राप्त विवरण के अनुसार नृपेंद्र मिश्र ने अपने एक निरीक्षण के दौरान जन्मभूमि पथ के किनारे-किनारे लगाई गई पिंक सैंड स्टोन बेंचों को अपेक्षा से ज्यादा ‘दुबली-पतली’ पाया तो संबंधित आर्किटेक्ट को तलब कर उससे पूछा कि यहां कितनी मोटाई के पत्थर से बनी बेंचें लगाने का अप्रूवल दिया गया था? बताया गया कि छह से साढ़े चार इंच मोटे पत्थरों की बेंचों को अप्रूवल मिला था, तो उन्होंने पूछा कि बेंचों की सीटों पर तीन इंच से कम मोटाई के पत्थर क्यों लगाए गए हैं? अगर मोटाई या डिजाइन में बदलाव संबंधी कोई निर्णय हुआ है तो किस स्तर पर?

आर्किटेक्ट के जवाब से संतुष्ट न होने पर उन्होंने लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता धर्मवीर सिंह से पूरी पत्रावली तलब की और इसकी जवाबदेही सुनिश्चित करने को कहा. साथ ही जानकारी मांगी कि ऐसी कुल कितनी बेंचें लगाई गई हैं? उन्हें बताया गया कि दोनों किनारों पर कुल 70 बेंचें लगाई जानी हैं, जिनमें आधी लगाई जा चुकी हैं.

इस बीच बेंच लगाने में भ्रष्टाचार को लेकर खूब सनसनी फैली, थोड़ा हड़कंप भी मचा लेकिन बाद में मुख्य अभियंता धर्मवीर सिंह ने यह जानकारी देकर सारी सनसनी खत्म कर दी कि नृपेंद्र मिश्र को उनकी मांग के अनुसार बेंचों की अप्रूव्ड डिजाइन के साथ पूरी टेस्ट रिपोर्ट दे दी गई है और उसे देखकर वे ‘संतुष्ट’ हो गए हैं. जानकारों के अनुसार, इस संतुष्टि पर नृपेंद्र मिश्र की अध्यक्षता वाली भवन निर्माण समिति ने भी मोहर लगा दी है.

और लोकल पत्रकारों का क्या?

जो भी हो, अयोध्या में इन दिनों आगामी जनवरी में प्रस्तावित रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों की खबरों की धूम गई है. इस धूम के बीच कई पत्रकारों ने गत दिनों श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के हवाले से बताया कि जिस उिन प्राण प्रतिष्ठा होगी, संत-महंत दंड, छत्र, चंवर व पादुका वगैरह के साथ राम मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे.

खबरों के अनुसार, चंपत राय ने कहा कि समारोह में आने वाले वीवीआईपी की पुख्ता सुरक्षा के लिए यह फैसला किया गया हैं. उन्होंने इसमें यह भी जोड़ा कि सुरक्षा मानकों के पालन के क्रम में अतिथियों को एक-दो किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ सकता है. इसके मद्देनजर उन्होंने पैदल चलने और उठने-बैठने की क्षमता खो चुके बुजुर्गों से यह अपील भी की कि वे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में न आएं क्योंकि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण कार्यक्रम स्थल पर 3 से 4 घंटे तक बैठना होगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जाने के बाद ही अंदर बैठे लोग रामलला का दर्शन कर सकेंगे.

उम्मीद की जा रही थी कि दंड, क्षत्र, चंवर व पादुका वगैरह के साथ समारोह में न जा पाने की खबर पर पहली औपचारिक या अनौपचारिक प्रतिक्रिया साधु-संतों की ओर से ही आएगी, क्योंकि दंड, छत्र, चंवर और पादुका उनकी पहचान से जुड़ी हुई हैं. लेकिन यह प्रतिक्रिया उनके बजाय पत्रकारों की ओर से आई.

तब जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने स्थानीय प्रेस क्लब के वॉट्सऐप ग्रुप में उक्त खबर का संदर्भ देकर पूछ लिया- ‘और लोकल पत्रकार? उन्होंने जाने की कोशिश की तो?’ इस पत्रकार के पूछने का आशय यह था कि स्थानीय पत्रकारों को किन शर्तों के तहत प्रवेश मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं?

सवाल की पृष्ठभूमि में गत दिनों अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम में स्थानीय पत्रकारों को प्रवेश न देने का मामला भी था. समझा जाता था कि प्रेस क्लब के पदाधिकारी इसे लेकर कोई जवाब देंगे या इस मामले को प्रशासन के साथ उठाने की बात कहेंगे. लेकिन बात एक अंग्रेजी अखबार से जुड़े पत्रकार की इस प्रतिक्रिया तक ही रह गई कि ‘यहां कुछ पत्रकार बाबू जी के बहुत प्रिय हैं. ये पत्रकार बाबू जी को दंडवत करते हैं.’ पूछने वाले पत्रकार के अनुसार उससे बातचीत में कई पत्रकारों ने उसके सवाल को प्रासंगिक बताया लेकिन उसे लेकर कोई सार्वजनिक स्टैंड लेने से मना कर दिया.

दूसरी ओर जानकारों के अनुसार, अब भाजपा अयोध्या में अपने प्रचार के लिए लोकल पत्रकारों पर निर्भर नहीं करती. क्योंकि उसके कार्यक्रमों के लिए मीडिया ऊपर ऊपर ही मैनेज रहता है और उसमें लोकल पत्रकारों की कोई भूमिका नहीं होती. इसलिए न वह उन्हें ज्यादा भाव देती है, न ही उसके इंगित पर काम करने वाला प्रशासन.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq