केंद्र सरकार ने बीते 29 सितंबर को चुनावी बॉन्ड की 28वीं किश्त की जारी करने को मंज़ूरी दे दी, जो 4 अक्टूबर से 10 दिनों के लिए बिक्री के लिए उपलब्ध रहेगी. यह फैसला राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आया है. इन राज्यों में जल्द ही चुनाव की घोषणा होने की संभावना है.
नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने बीते शनिवार (30 सितंबर) को चुनावी बॉन्ड को ‘वैध रिश्वतखोरी’ बताया और दावा किया कि जैसे ही 4 अक्टूबर को इनकी नई किस्त की बिक्री शुरू होगी, यह भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘सुनहरी फसल’ साबित होगी.
केंद्र सरकार ने बीते 29 सितंबर को चुनावी बॉन्ड की 28वीं किश्त जारी करने को मंजूरी दे दी, जो 4 अक्टूबर से 10 दिनों के लिए बिक्री के लिए खुलेगी.
यह फैसला राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव से पहले आया है. इन राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द होने की संभावना है.
सोशल साइट एक्स पर एक पोस्ट में पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने कहा कि चुनावी बांड की 28वीं किश्त की बिक्री 4 अक्टूबर को शुरू होगी.
उन्होंने आगे कहा, ‘यह भाजपा के लिए एक सुनहरी फसल होगी. पिछले रिकॉर्ड के अनुसार, 90 प्रतिशत तथाकथित गुमनाम चंदा भाजपा को जाएगा. क्रोनी कैपटलिस्ट (सरकार से साठगांठ रखने वाले पूंजीपति) दिल्ली में मालिकों को के लिए अपनी चेकबुक खोलेंगे.’
उन्होंने आगे कहा कि चुनावी बॉन्ड ‘वैध रिश्वतखोरी’ हैं.
The 28th tranche of Electoral Bonds will open on October 4.
It will be a golden harvest for the BJP
Going by the past records, 90 per cent of the so-called anonymous donations will go to the BJP
The crony capitalists will open their cheque books to write out their
'tribute' to…— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) September 30, 2023
राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया है.
चुनावी बॉन्ड के पहले बैच की बिक्री मार्च 2018 में हुई थी. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) इन्हें जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक है.
चुनावी बॉन्ड भारतीय नागरिकों या देश में निगमित या स्थापित संस्थाओं द्वारा खरीदे जा सकते हैं.
पंजीकृत राजनीतिक दल जिन्होंने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं, वे चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन प्राप्त करने के पात्र होते हैं.
इससे पहले बीते मंगलवार 26 सितंबर को कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि चुनावी बॉन्ड योजना नरेंद्र मोदी सरकार के सबसे ‘शैतानी कृत्यों’ में से एक है, क्योंकि यह देश में चुनावी प्रणाली और लोकतंत्र को कमजोर करती है.
मालूम हो कि बीते जुलाई महीने में चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2016-17 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त सभी दान में से आधे से अधिक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त हुए थे और भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में अधिक धन प्राप्त हुआ.
भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में तीन गुना अधिक चंदा मिला, जिसमें से 52 प्रतिशत से अधिक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिला. भाजपा को लगभग 32 प्रतिशत चंदा कॉरपोरेट घरानों से आया.
रिपोर्ट के अनुसार, सात राष्ट्रीय पार्टियों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉन्ड से कुल 9,188.35 करोड़ रुपये का दान मिला, जिसमें से भाजपा का हिस्सा 5,271.9751 करोड़ रुपये था, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय दलों ने मिलकर 1,783.9331 करोड़ रुपये एकत्र किए थे.
चुनावी बॉन्ड को लेकर विवाद
चुनाव नियमों के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति या संस्थान 2,000 रुपये या इससे अधिक का चंदा किसी पार्टी को देता है तो राजनीतिक दल को दानकर्ता के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ती है.
हालांकि चुनावी बॉन्ड ने इस बाधा को समाप्त कर दिया है. अब कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को चंदा दे सकता है और उसकी पहचान बिल्कुल गोपनीय रहेगी.
इस माध्यम से चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को सिर्फ ये बताना होता है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये उन्हें कितना चंदा प्राप्त हुआ. इसलिए चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है.
इस योजना के आने के बाद से बड़े राजनीतिक दलों को अन्य माध्यमों (जैसे चेक इत्यादि) से मिलने वाले चंदे में गिरावट आई है और चुनावी बॉन्ड के जरिये मिल रहे चंदे में बढ़ोतरी हो रही है.
चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. एडीआर ने इन्हीं संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.