खेड़ा सार्वजनिक पिटाई: गुजरात हाईकोर्ट ने चार पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए

बीते साल अक्टूबर में नवरात्रि उत्सव के दौरान गुजरात के खेड़ा ज़िले के उंधेला गांव में एक गरबा कार्यक्रम पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की भीड़ ने कथित तौर पर पथराव किया था. इसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को खंबे से बांधकर लाठियों से पीटते दिखे थे.

गरबा कार्यक्रम को लेकर खेड़ा जिले के उंधेला गांव में हुए विवाद के बाद पुलिस ने मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर सार्वजनिक तौर पर पीटा था.

बीते साल अक्टूबर में नवरात्रि उत्सव के दौरान गुजरात के खेड़ा ज़िले के उंधेला गांव में एक गरबा कार्यक्रम पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की भीड़ ने कथित तौर पर पथराव किया था. इसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को खंबे से बांधकर लाठियों से पीटते दिखे थे.

गरबा कार्यक्रम को लेकर खेड़ा जिले के उंधेला गांव में हुए विवाद के बाद पुलिस ने मुस्लिम युवकों को पोल से बांधकर सार्वजनिक तौर पर पीटा था.

नई दिल्ली: गुजरात उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2022 में खेड़ा जिले में एक नवरात्रि समारोह में पथराव करने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार करने से पहले सार्वजनिक रूप से पिटाई करने और अदालत की अवमानना ​​के लिए चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

मालूम हो कि खेड़ा जिले के उंधेला गांव की घटना के एक वीडियो में पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में कुछ मुस्लिम युवकों को को खंभे से बांधकर मार रहे थे और भीड़ उनका उत्साह बढ़ा रही थी. बाद में संदिग्धों को पास में खड़ी पुलिस वैन में ले जाया गया.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को जस्टिस एएस सुपेहिया और एमआर मेंगडे की पीठ ने कहा है कि चार पुलिसकर्मियों-   एक इंस्पेक्टर, एक सब-इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबल- ने 4 अक्टूबर, 2022 को सार्वजनिक रूप से व्यक्तियों को पीटने की घटना में सक्रिय रूप से शामिल थे.

अदालत ने कहा कि ऐसा करके पुलिसकर्मियों ने 1996 के डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया. मालूम हो कि इस फैसले में कोर्ट ने गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पुलिस के आचरण के लिए नियम निर्धारित किए थे.

पीठ ने कहा कि नतीजतन, अब उन्हें अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (बी) के तहत आरोपों का सामना करना पड़ेगा.

यह धारा अदालत के निर्णयों, आदेशों या निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना से संबंधित है और इसमें अदालत के प्रति की गई प्रतिबद्धताओं का जानबूझकर उल्लंघन भी शामिल है. इस अपराध में छह महीने तक के साधारण कारावास और/या 2,000 रुपये तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है.

हाईकोर्ट चारों आरोपी पुलिसकर्मियों- इंस्पेक्टर एवी परमार, सब-इंस्पेक्टर (एसआई) डीबी कुमावत, हेड कॉन्स्टेबल केएल डाभी और कॉन्स्टेबल आरआर डाभी को अदालत ने 11 अक्टूबर तक अपने बचाव में एक लिखित बयान पेश करने का निर्देश दिया है.

मामले में कुल 13 पुलिसकर्मी आरोपी थे. अदालत ने कहा कि नौ अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए, क्योंकि वे इसमें शामिल नहीं पाए गए. इन नौ पुलिसकर्मियों को खेड़ा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की रिपोर्ट के अनुसार मामले में प्रतिवादी बनाया गया था.

उच्च न्यायालय ने 12 जुलाई को अपने आदेश में कहा था कि कार्यवाही जारी रखने योग्य है और रिकॉर्ड पर रखे गए वीडियो और तस्वीरों की सामग्री को सत्यापित करने के बाद प्रत्येक प्रतिवादियों की भूमिका के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए खेड़ा में सीजेएम को निर्देश जारी किए.

सीजेएम ने 31 जुलाई को चारों पुलिसकर्मियों की भूमिका का दस्तावेजीकरण किया.

पिछले साल पांच पीड़ितों – जहीरमिया मालेक (62), मक्सुदाबानु मालेक (45), सहादमिया मालेक (23), सकिलमिया मालेक (24) और शाहिदराजा मालेक (25) ने 13 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि इन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए काम किया और कोर्ट की अवमानना की.

पिछले साल तीन अक्टूबर को नवरात्रि उत्सव के दौरान खेड़ा जिले के उंधेला गांव में एक गरबा नृत्य कार्यक्रम पर मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की भीड़ ने कथित तौर पर पथराव किया था, जिसमें कुछ ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हो गए थे. इसके एक दिन बाद सोशल मीडिया पर वीडियो प्रसारित हुए जिनमें पुलिसकर्मी कथित तौर पर पथराव करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए तीन लोगों की पिटाई करते दिखे.

इन वीडियो के सामने आने के बाद लोगों ने बड़े पैमाने पर ऑनलाइन आकर आक्रोश जताया था. इसके बाद पुलिस ने 7 अक्टूबर 2022 को इस घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे.

बुधवार की सुनवाई में आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने यह तर्क देने की मांग की कि सब-इंस्पेक्टर कुमावत, जिनके बारे में सीजेएम की रिपोर्ट में घटना के समय बैठे होने की बात कही गई थी, ने स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं किया था. अदालत यह देखते हुए कि वह निष्क्रियता के चलते आरोप में भागीदार थे, इस तर्क से सहमत नहीं हुई.

अदालत ने कहा, ‘लाठियों से मारने की घटना दिनदहाड़े हुई थी. घटना के समय प्रतिवादी कुमावत की उपस्थिति विवाद में नहीं है. उन्होंने यह देखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया कि जिन आवेदकों को अन्य आरोपियों द्वारा सार्वजनिक रूप से बेरहमी से पीटा जा रहा था, उन्हें बचाया जाए. उन्होंने पिटाई रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.’

अदालत ने कहा, ‘इसके विपरीत अन्य हमलावरों के साथ चौक में उनकी उपस्थिति से पता चलता है कि वह अन्य प्रतिवादियों के साथ गए थे और आवेदकों को पुलिस स्टेशन से चौक तक लाने में सक्रिय भूमिका निभाई और उन्हें खंभे से बांध दिया गया और बेरहमी से पीटा गया.’

अदालत के अनुसार, अन्य हमलावरों के साथ उनकी उपस्थिति ने अवैध और अपमानजनक कृत्य के लिए उनकी मौन सहमति का सुझाव दिया, जिससे उन्हें आरोपों से छूट के लिए अयोग्य बना दिया गया.

मालूम हो कि इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट में अपने हलफनामे में खेड़ा ज़िले के पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार गढ़िया ने अक्टूबर 2022 में उंधेला गांव में मुस्लिम युवकों को सार्वजनिक रूप से पीटने वाले पुलिस अधिकारियों के कृत्य को सही ठहराया था.

गौरतलब है कि पुलिस की हिंसा के तुरंत बाद गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने इसे ‘अच्छा कार्य’ बताते हुए पुलिसकर्मियों की प्रशंसा की थी.

जैसा कि द वायर  ने एक रिपोर्ट में बताया था कि उंधेला के मुस्लिम निवासियों ने इस कथित क्रूरता का विरोध करने के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया था. हालांकि, उनका विरोध प्रशासन और राजनीतिक दलों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था.

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