मोरबी पुल हादसा गंभीर तकनीकी ख़ामियों, ओरेवा कंपनी की चूक के कारण हुआ: जांच दल

गुजरात के मोरबी में माच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का केबल पुल अक्टूबर 2022 में ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 135 लोग मारे गए थे. घटना की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में कहा कि ओरेवा कंपनी ने एक ‘अक्षम एजेंसी’ को काम सौंपा और बिना तकनीकी विशेषज्ञों के परामर्श के काम किया गया.

मोरबी में माच्छू नदी पर पुल के टूट जाने के बाद राहत और बचाव कार्य. (फाइल फोटो: पीटीआई)

गुजरात के मोरबी में माच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का केबल पुल अक्टूबर 2022 में ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 135 लोग मारे गए थे. घटना की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में कहा कि ओरेवा कंपनी ने एक ‘अक्षम एजेंसी’ को काम सौंपा और बिना तकनीकी विशेषज्ञों के परामर्श के काम किया गया.

मोरबी में माच्छू नदी पर पुल के टूट जाने के बाद राहत और बचाव कार्य. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुजरात के मोरबी में पिछले साल पुल ढहने की घटना की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि ओरेवा कंपनी के प्रबंधन की ओर से ‘गंभीर परिचालन और तकनीकी खामियों’ के कारण हादसा हुआ था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एसआईटी ने कहा कि ओरेवा कंपनी के प्रबंधन के उदासीन रवैये के कारण गंभीर और भयावह मानवीय आपदा हुई और इस रवैये का समर्थन नहीं किया जा सकता.

इसमें कहा गया है, ‘इसके लिए प्रथमदृष्टया प्रबंध निदेशक और दो प्रबंधकों सहित कंपनी का पूरा प्रबंधन जिम्मेदार प्रतीत होता है.

बता दें कि मोरबी में माच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का केबल पुल 30 अक्टूबर 2022 को ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 135 लोग मारे गए थे और 56 लोग घायल हो गए थे. एक निजी कंपनी द्वारा मरम्मत किए जाने के बाद पुल को 26 अक्टूबर 2022 को लोगों के लिए फिर से खोला गया था.

एसआईटी ने कहा कि मोरबी नगर पालिका ने पुल की मरम्मत का काम ओरेवा कंपनी को दिया था जिसने उसे एक ‘अक्षम एजेंसी’ को सौंप दिया और बिना तकनीकी विशेषज्ञों के परामर्श के काम किया गया. इसमें पुल के नवीनीकरण के बाद के कामों में कई डिजाइन भी दोषपूर्ण पाए गए, जिसके कारण यह ढहा.

एसआईटी ने पहले सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह त्रासदी सरकारी मानदंडों के अनुसार उचित प्रक्रिया का पालन करने में प्रशासनिक स्तर पर चूक का परिणाम थी और पुल की मरम्मत करने और इसे जनता के लिए खोलने से पहले इसका परीक्षण करने में तकनीकी अक्षमता के कारण भी यह घटना घटी.

गुजरात हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी. मायी की खंडपीठ इस त्रासदी पर स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका पर सुन रही है.

एसआईटी रिपोर्ट में कहा गया, ‘अगर कंपनी ने क्षेत्र में एक पेशेवर विशेषज्ञ एजेंसी की मदद ली होती तो पुल के मरम्मत कार्यों को पूरा करने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों की जगह बेहतर कदम उठाए जा सकते थे.’

एसआईटी ने महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी द्वारा पेश रिपोर्ट में कहा कि मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद और पुल को आम जनता के लिए खोलने से पहले भी ओरेवा कंपनी को इसकी फिटनेस रिपोर्ट प्राप्त करनी चाहिए थी और इस संबंध में नगर पालिका से परामर्श करना चाहिए था.

इसमें कहा कि पुल के रखरखाव और संचालन के संबंध में ओरेवा समूह और मोरबी नगर पालिका के बीच अनुबंध नवीनीकृत होने के बाद, कंपनी मरम्मत संबंधी प्रमुख कार्य करने के लिए देव प्रकाश सॉल्यूशन्स को अनुबंध देने से पहले एक विशेषज्ञ एजेंसी की तकनीकी राय लेने या नगर पालिका से परामर्श करने में विफल रही.

इसमें आगे कहा गया है कि किसी निश्चित समय पर पुल तक पहुंचने वाले व्यक्तियों की संख्या या टिकटों की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ओरेवा समूह के अनुसार, उसने स्थानीय अधिकारियों के साथ इसके रखरखाव और संचालन के लिए हस्ताक्षरित प्रारंभिक समझौता ज्ञापन की समाप्ति के बाद पुल की जर्जर स्थिति के बारे में संबंधित अधिकारियों को कई पत्र भेजे.

कंपनी ने उपयोगकर्ता शुल्क (user charges) बढ़ाने का भी अनुरोध किया था जिसे संबंधित अधिकारियों ने खारिज कर दिया था. इसके विपरीत, संबंधित अधिकारियों ने कंपनी से कहा था कि या तो उसी उपयोगकर्ता शुल्क पर काम जारी रखें या पुल का कब्जा उन्हें वापस कर दें.

इसमें कहा गया, ‘हालांकि, कंपनी पुल को संबंधित अधिकारियों को सौंपने में विफल रही और कंपनी द्वारा पुल की स्थिति में सुधार के लिए कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकी.’

इसमें कहा गया है, ‘उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर यह स्पष्ट है कि ओरेवा कंपनी के प्रबंधन की ओर से गंभीर परिचालन और तकनीकी खामियां थीं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर पालिका के तीन सदस्यों – तत्कालीन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कार्यकारी समिति के अध्यक्ष की ओर से भी गलतियां हुईं – क्योंकि वे पुल के प्रबंधन, रखरखाव और संचालन के लिए कंपनी द्वारा हस्ताक्षरित समझौते को सामान्य बोर्ड के समक्ष लाने में विफल रहे.

इसमें कहा गया है कि वर्ष 1887 में बने पुल की मरम्मत में कई तकनीकी खामियां थीं, क्योंकि मुख्य केबल और सस्पेंडर्स का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया था. नवीकरण कार्य के दौरान मुख्य केबलों और सस्पेंडर्स का जांच नहीं किया गया और मुख्य केबलों का न तो निरीक्षण किया गया और न ही उन्हें बदला गया.

रिपोर्ट में सभी सार्वजनिक संरचनाओं के लिए एक रजिस्टर बनाए रखने और जनता द्वारा उपयोग की जा रही ऐसी किसी भी संरचना का समय-समय पर निरीक्षण करने की भी सिफारिश की गई है.

हाईकोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि नगर पालिका के साथ किए गए रखरखाव अनुबंध का उल्लंघन करने और अपने परिवार के पुरुष सदस्यों की मृत्यु के कारण असहाय महिलाओं को मुआवजा देने के लिए कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई.

इसने सरकार को पीड़ितों के पुनर्वास के संबंध में एक स्वतंत्र रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.

अदालत ने आरोपी कंपनी को भी एक हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया कि वह बताए कि इस त्रासदी में अनाथ हुए बच्चों के पुनर्वास के लिए वह कैसे आगे बढ़ रही है.

ज्ञात हो कि बीते साल पुल ढहने की जांच के लिए राज्य सरकार ने पांच सदस्यीय एसआईटी नियुक्त की थी. इसने पिछले साल दिसंबर में एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें उसे ओरेवा ग्रुप (अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड) द्वारा संरचना की मरम्मत, रखरखाव और संचालन में कई खामियां मिलीं. कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल मामले में मुख्य आरोपी हैं और वर्तमान में जेल में हैं.

मामले में कुल 10 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें पटेल, उनकी फर्म के दो प्रबंधक और पुल की मरम्मत करने वाले दो उप-ठेकेदार, तीन सुरक्षा गार्ड और दो टिकट बुकिंग क्लर्क शामिल थे. उन पर आईपीसी की धाराओं के तहत गैर इरादतन हत्या, मानव जीवन को खतरे में डालने वाला कार्य, जल्दबाजी या लापरवाही से कार्य करना आदि का आरोप लगाया गया है.