माओवादियों को हथियार आपूर्ति मामले में 20 सुरक्षाकर्मियों समेत 24 को 10 साल की सज़ा

माओवादियों और आतंकवादियों को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति का खुलासा तब हुआ, जब 10 अप्रैल 2010 को रामपुर में यूपी एसटीएफ द्वारा सीआरपीएफ के दो कॉन्स्टेबलों को कई कारतूसों के साथ गिरफ़्तार किया था. उस साल 6 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक घातक माओवादी हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की मौत हो गई थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

माओवादियों और आतंकवादियों को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति का खुलासा तब हुआ, जब 10 अप्रैल 2010 को रामपुर में यूपी एसटीएफ द्वारा सीआरपीएफ के दो कॉन्स्टेबलों को कई कारतूसों के साथ गिरफ़्तार किया था. उस साल 6 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक घातक माओवादी हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की मौत हो गई थी.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: एक दशक तक चली सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश के रामपुर में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश की अदालत ने 24 लोगों – प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 20 जवानों और चार नागरिकों – को माओवादियों को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति से संबंधित मामले में 10 साल की जेल की सजा सुनाई है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने शुक्रवार (13 अक्टूबर) को अपने आदेश में उनमें से प्रत्येक पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया.

जांच दल में शामिल एक पूर्व-एसटीएफ अधिकारी ने बताया कि उनके संबंध उन माओवादियों से थे, जिन्होंने अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी थी.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, माओवादियों और आतंकवादियों को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति का खुलासा तब हुआ जब 10 अप्रैल 2010 को रामपुर में राज्य पुलिस के एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) द्वारा सीआरपीएफ के दो कॉन्स्टेबलों को कई कारतूसों के साथ गिरफ्तार किया था.

रामपुर के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (फौजदारी) प्रताप सिंह मौर्य के अनुसार, एसटीएफ इस इनपुट पर कार्रवाई कर रही थी कि रामपुर में सीआरपीएफ रिजर्व और राज्य भर में विभिन्न पीएसी इकाइयों से इलाहाबाद में एक व्यक्ति के माध्यम से बिहार और झारखंड में माओवादियों और आतंकवादियों को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की जा रही थी.

उन्होंने बताया कि यह सूचना उस साल 6 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक घातक माओवादी हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों के मारे जाने के कुछ दिनों बाद मिली थी.

जांच के दौरान एसटीएफ द्वारा रामपुर, गोरखपुर, इलाहाबाद सहित राज्य भर से पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ और पीएसी जवानों सहित कुल 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

जुलाई 2010 में पुलिस ने मामले के संबंध में 25 लोगों – 21 सीआरपीएफ, पीएसी और पुलिसकर्मियों और चार नागरिकों – के खिलाफ अपनी चार्जशीट दायर की थीं. हालांकि, आरोपियों में से एक यशोदा नंद, जो पीएसी के सेवानिवृत्त आर्मरर थे, की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई.

बीते गुरुवार (12 अक्टूबर) को बाकी सभी 24 आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात), धारा 413 (आदतन चोरी की संपत्ति का सौदा करना), धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था.

20 जवानों में से 14 दोषी ठहराए जाने तक अभी भी सेवा में थे, जबकि छह पिछले 13 वर्षों में सेवानिवृत्त हो गए.

आरोपियों की पहचान – विनोद पासवान, विनेश कुमार, दिनेश कुमार, अमर सिंह, बनवारी लाल, राजेश शाही, राजेश कुमार सिंह, अमरेश कुमार, विनोद कुमार सिंह, वंश लाल, नाथी राम, सुशील कुमार मिश्रा, जितेंद्र सिंह, अखिलेश कुमार, राम कृपाल सिंह, मनीष राय, रजई पाल सिंह, बबुरी, ओम प्रकाश सिंह, राम कृष्ण शुक्ल के रूप में की गई और नागरिकों में दिलीप राय, आकाश उर्फ गुड्डू, मुरली धर शर्मा और शंकर शामिल हैं.

रामपुर के अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (फौजदारी) मौर्य के अनुसार, शुरुआत में यशोदा और दो सीआरपीएफ कॉन्स्टेबल- विनोद पासवान और विनेश कुमार – को गिरफ्तार किया गया था. बाद में गिरफ्तार आरोपियों से मिली जानकारी के आधार पर नाथी राम सैनी नामक व्यक्ति को मुरादाबाद से गिरफ्तार किया गया. यशोदा नंद ने आरोपी लोगों के नाम और बैंक खातों के विवरण के साथ एक डायरी प्रदान की थी, जिसके बाद शेष गिरफ्तारियां की गईं.