सुप्रीम कोर्ट ने डार्विन और आइंस्टीन के सिद्धांतों को चुनौती देने वाली याचिका ख़ारिज की

एक जनहित याचिका में चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के सिद्धांत, जो द्रव्यमान और ऊर्जा (E=MC²) की समानता को व्यक्त करता है, को चुनौती दी गई थी. अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि आप ख़ुद को फिर से शिक्षित करें.

चार्ल्स डार्विन (बाएं) और एल्बर्ट आइंस्टीन. (फोटो साभार: विकिमीडिया/विकिपीडिया)

एक जनहित याचिका में चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के सिद्धांत, जो द्रव्यमान और ऊर्जा (E=MC²) की समानता को व्यक्त करता है, को चुनौती दी गई थी. अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि आप ख़ुद को फिर से शिक्षित करें.

(फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार (13 अक्टूबर) को चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के सिद्धांत, जो द्रव्यमान और ऊर्जा (E=MC²) की समानता को व्यक्त करता है, को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भगवा कपड़े पहनकर अदालत पहुंचे जनहित याचिका दाखिल करने वाले राज कुमार ने कहा कि उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज में डार्विन के सिद्धांत और आइंस्टीन के बारे में अध्ययन किया था, लेकिन उन्हें गलत पाया और इसलिए उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता के तर्क का जवाब देते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, ‘फिर आप खुद को फिर से शिक्षित करें या अपना खुद का सिद्धांत बनाएं. हम किसी को भी कुछ हटाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. याचिका खारिज की जाती है.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि वैज्ञानिक मान्यताओं को चुनौती देने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह रिट याचिका नहीं हो सकती है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, ‘याचिकाकर्ता यह साबित करना चाहता है कि विकास का डार्विनियन सिद्धांत और आइंस्टीन के समीकरण गलत हैं और वह उक्त उद्देश्य के लिए एक मंच चाहता है. अगर यह उसका विश्वास है, तो वह अपने विश्वास का प्रचार कर सकता है. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका नहीं हो सकती है, जिसे मौलिक अधिकारों के मुद्दों से निपटना है.’

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा, ‘मैंने अपने स्कूल के समय और कॉलेज के समय में पढ़ाई की है और आज मैं कहता हूं कि मैंने जो कुछ भी पढ़ा वह गलत था.’

इस पर जस्टिस कौल ने जवाब दिया, ‘तो फिर आप अपने सिद्धांत में सुधार करें. सुप्रीम कोर्ट को इसमें क्या करना चाहिए? आप कहते हैं कि आपने स्कूल में कुछ पढ़ा, आप विज्ञान के छात्र थे. अब आप कहते हैं कि वे सिद्धांत गलत हैं. अगर आप मानते हैं कि वे सिद्धांत गलत थे, तो सुप्रीम कोर्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है. इसमें अनुच्छेद 32 के तहत आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन क्या है?’

अंग्रेजी प्रकृतिवादी डार्विन द्वारा प्रस्तावित विकास का सिद्धांत बताता है कि सभी जीवित प्राणी प्राकृतिक चयन के माध्यम से विकसित हुए हैं. आइंस्टीन का प्रसिद्ध समीकरण E=MC² कहता है कि ऊर्जा और द्रव्यमान (पदार्थ) विनिमेय (Interchangeable) हैं.