2016 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राज्य में ‘आनंद विभाग’ के गठन को मंज़ूरी दी थी. दावा किया गया था कि लोगों का जीवन खुशहाल बनाने के लिए एक विशेष विभाग बना है. हालांकि, अब हाल यह है कि विभाग के काम के बारे में आम लोगों को तो छोड़ें, भाजपा के नेताओं को ही नहीं पता है.
भोपाल: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश आत्महत्याओं के मामले में देश भर में तीसरे स्थान पर रहा था. कुल 14,965 लोगों ने उस साल आत्महत्या की थी, जो देश में सामने आए आत्महत्या के कुल मामलों का 9.1 फीसदी था. आत्महत्या की दर (17.8) राष्ट्रीय औसत (12) से भी अधिक थी.
सितंबर 2022 में राज्य सरकार ने आत्महत्या के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए टास्क फोर्स समिति का भी गठन किया, जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कहा था, ‘सरकार ने पूर्व में ‘आनंद विभाग’ खोलने की नौटंकी करके उसमें कई अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति की थी, लेकिन इसकी असफलता का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के लोगों को आनंद की अनुभूति तो हुई नहीं, उलटा आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है.’
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने आनंद विभाग (Ministry of Happiness) के गठन को मंजूरी दी थी. मोटे तौर पर इसका मूल मकसद राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर मापकर उनका जीवन खुशहाल बनाने का प्रयास करना था.
बताया गया था कि इसकी प्रेरणा मुख्यमंत्री चौहान को भूटान के राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक (National Happiness Index) से मिली थी. इसलिए मध्य प्रदेश का एक ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ जारी करने की भी बात कही गई थी, जो राज्य की जनता में खुशहाली का स्तर बताता. (विभाग की स्थापना के उद्देश्य और उसके कार्य नीचे तस्वीर में पढ़े जा सकते हैं)
प्रदेश की जनता में आनंद के प्रसार के इस प्रयोजन से ईशा फाउंडेशन के जग्गी वासुदेव, योग गुरु और कारोबारी बाबा रामदेव, अवधेशानंद और श्रीश्री रविशंकर आदि को भी जोड़ने की बात कही गई थी. इस तरह जोर-शोर के प्रचार-प्रसार के साथ शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश को देश का पहला ऐसा राज्य बताया था, जहां लोगों का जीवन खुशहाल बनाने के लिए आनंद विभाग का गठन किया गया हो.
मुख्यमंत्री चौहान स्वयं इसके अध्यक्ष बने. उनकी ही नाक के नीच काम कर रहे इस विभाग की आज 7 वर्षों बाद क्या प्रगति है, विभाग में पदस्थ अधिकारियों के अलावा शायद ही राज्य में किसी और को इसकी जानकारी हो. इस दौरान एक बार भी राज्य का ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ जारी नहीं किया गया है.
आनंद के प्रसार के विभागीय प्रयास
विभाग राज्य आनंद संस्थान के माध्यम से काम करता है, जो पूरी तरह से अपने ‘आनंदकों’ पर निर्भर है. कुल 84 हजार से अधिक आनंदक इसके साथ पंजीकृत हैं. ‘आनंदक’ संस्थान के कार्यों में सहयोग करने वाले ऐसे स्वयंसेवी कार्यकर्ता होते हैं जो निशुल्क एवं स्वैच्छिक रूप से अपने अन्य सामान्य कार्यकलापों के अतिरिक्त राज्य आनंद संस्थान की गतिविधियां करने के लिए स्वप्रेरणा से तैयार हों.
आनंदकों से संस्थान अपेक्षा करता है कि वे अपने कर्तव्य तथा विचारों से दूसरों के लिए सकारात्मक उदाहरण बनें और उन्हें भी आनंद संस्थान की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें.
‘आनंदक’ शासकीय सेवक और अशासकीय व्यक्ति, दोनों तरह के लोग हो सकते हैं. इन्हें पहले वेबसाइट पर स्वयं का पंजीयन कराना होता है. उसके बाद राज्य आनंद संस्थान उन्हें ‘आनंदमयी जीवन जीने’ का प्रशिक्षण प्रदान करता है. इस प्रशिक्षण से ‘अपने जीवन को आनंदमयी बनाने’ के बाद इन लोगों का कार्य ‘आनंदम सहयोगी’ के रूप में समाज के अन्य लोगों के जीवन में आनंद की अनुभूति कराना, उन्हें विभाग की आनंद गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना और उनका भी ‘आनंदक’ के रूप में पंजीकरण कराना शामिल होता है. एक आनंदक चार और लोगों को जोड़कर ‘आनंद क्लब’ का गठन कर सकता है.
इसकी रूपरेखा कुछ इस तरह है कि ये सभी लोग ‘चेन मार्केटिंग’ की तर्ज पर काम करते हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में राज्य आनंद संस्थान द्वारा मिले दिशानिर्देशों के तहत कार्यक्रम आयोजित कराते हैं. इसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार की सहयोग राशि या मानदेय प्राप्त नहीं होता है. उन्हें अपनी नौकरी, व्यवसाय, पेशे आदि से समय निकालकर यह काम करना होता है.
विभाग प्रतिवर्ष 14 जनवरी से 28 जनवरी के बीच ‘आनंद उत्सव’ का आयोजन करता है. विभाग के मुताबिक, इस दौरान लोक संगीत, नृत्य, गायन, भजन-कीर्तन, नाटक और खेल-कूद की गतिविधियां लोगों को कराई जाती हैं.
स्कूली छात्रोंं के लिए स्कूलों में ‘आनंद सभा’ का आयोजन कराया जाता है. इसका आयोजन भी संस्थान द्वारा बतौर ‘आनंदक’ प्रशिक्षित शिक्षक, आनंदम सहयोगी और प्रशिक्षक करते हैं.
साथ ही, विभाग का दावा है कि उसने 52 ज़िलों में 172 ‘आनंदम केंद्र’ स्थापित किए हैं- जिन्हें ‘नेकी की दीवार’ भी कहा जाता है- जहां लोग उनके इस्तेमाल में न आने वाला सामान छोड़ देते हैं, जिसे ज़रूरतमंद लोग निशुल्क ले सकते हैं. इसका संचालन भी ‘आनंदक’ ही करते हैं, लेकिन उन्हें नाम ‘ज़िला संपर्क व्यक्ति’ दिया गया है, वह शासकीय सेवक और अशासकीय व्यक्ति हो सकते हैं.
शासकीय एवं अशासकीय आनंदकों को परिपूर्ण जीवन जीने की विधा सिखाने के लिए एवं उनमें सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए ‘आनंद शिविर’ आयोजित किए जाते हैं, जो तीन संस्थाओं – आर्ट ऑफ लिविंग, बेंगलुरू; इनिशिएटिव ऑफ चेंज, पुणे; ईशा फाउंडेशन, कोयंबटूर- में आयोजित होते हैं.
‘सिर्फ वेबसाइट तक ही सिमटा है कामकाज’
वेबसाइट पर उपलब्ध विभागीय कामकाज की उपरोक्त जानकारी किसी को भी बेहद आकर्षक लग सकती है लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और है. ‘द वायर’ ने इस दौरान कई ‘आनंदम सहयोगी’ से बात की. इनमें एक डॉ. सत्य प्रकाश शर्मा भी थे. उनका नाम वेबसाइट पर ग्वालियर के ‘आनंदम सहयोगी’ के रूप में दर्ज है.
द वायर से बातचीत में उन्होंने बताया, ‘जो भी दिख रहा है वो केवल कागजों में है, धरातल पर शून्य है. आपको केवल संस्थान के ईमेल मिलेंगे, वेबसाइट पर सब कुछ मिलेगा, ज़मीन पर कुछ भी नहीं है. विभाग की सक्रियता केवल फोटो खिंचवाकर अपलोड करने तक है. थोड़ी-बहुत गतिविधियां कर देते हैं, जिससे फोटो बन जाते हैं और वेबसाइट पर अपलोड हो जाते हैं. कुल मिलाकर यह केवल एक वेबसाइट के अलावा और कुछ नहीं है. वेबसाइट देखकर भ्रमित न हों.’
डॉ. शर्मा के दावों की ज़मीनी पड़ताल की और राज्य के विभिन्न तबकों से जुड़े लोगों से बात करके जाना कि वह ‘आनंद विभाग’ या ‘राज्य आनंद संस्थान’ के कामकाज को किस तरह देखते हैं या उसके कामकाज के बारे में कितना जानते हैं.
शिवपुरी और श्योपुर ज़िलों में आदिवासी समुदाय के बीच पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि समस्यों पर सक्रियता से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव को तो पता ही नहीं है कि ऐसा कोई विभाग भी है जो लोगों का जीवन खुशहाल बनाने के लिए कार्य करता है.
वे कहते हैं, ‘मैं करीब दशकभर से वंचित तबकों के बीच काम कर रहा हूं, लेकिन मैंने आज तक आनंद विभाग या राज्य आनंद संस्थान का नाम ही नहीं सुना और न ही कभी इसके द्वारा किया गया कोई आयोजन देखा.’
सिवनी ज़िले के केवलारी खेड़ा गांव के किसान सतीश राय, जो किसान संबंधी समस्याओं पर भी मुखर रहते हैं, को भी नहीं पता कि लोगों के जीवन में आनंद का प्रसार करने के लिए भी कोई विभाग काम कर रहा है. उन्हें विभाग के गठन की पूरी कहानी याद कराने पर वे बोलते हैं, ‘अच्छा, याद आया… आनंद मंत्रालय! बहुत साल पहले सुना था कि ये बनेगा, क्या बन चुका है ये?’
जब उन्हें विभाग के कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा तो कोई भी कार्यक्रम यहां नहीं हुआ है. वह कहते हैं, ‘आप स्कूलों में ‘आनंद सभा’ की बात कर रहे हैं, हमारे तो गांव का स्कूल ही बंद हो गया. बच्चे परेशान और तनाव में हैं.
वे आगे कहते हैं, ‘किसान तो सालभर विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करता है, उसे तो ऐसी किसी पहल की सख़्त ज़रूरत है जो उसे तनावमुक्त कर आनंदित कर सके, लेकिन आम किसान तो छोड़िए, मेरे जैसे सक्रिय किसान को भी ऐसे किसी विभाग या उसके कार्यक्रमों और आयोजनों की जानकारी नहीं है. कोई भी ग्रामीण इस विभाग की गतिविधियों के बारे में नहीं बता पाएगा कि इसके कार्यक्रम कब और कहां होते हैं.’
गौरतलब है कि विभाग का दावा 10 हजार ग्राम पंचायतों में ‘आनंद उत्सव’ आयोजित करने का है, साथ ही ‘आनंद ग्राम’ नामक भी एक कार्यक्रम वह चलाता है.
पूरे राज्य में पोषण, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल अधिकार और नागरिक अधिकारों पर काम करने वाली भोपाल की एनजीओ विकास संवाद के राकेश मालवीय को विभाग के गठन का तो पता है लेकिन ज़मीन पर उसकी सक्रियता उन्होंने कभी नहीं देखी. विभाग के संबंध में सवाल करते ही उन्होंने कहा, ‘विभाग अस्तित्व में हो, तब तो उस पर बात की जाए. बस खानापूर्ति के लिए कागजों में बना दिया है, लेकिन आज तक ज़मीन पर उसका कहीं काम नहीं देखा. समझ ही नहीं आता कि यह अस्तित्व में है भी या नहीं?’
आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं, ‘आम आदमी को इसकी जानकारी इसलिए नहीं है क्योंकि न तो उसके जीवन में आनंद बढ़ा है और न उसे इस पर भरोसा है. इस विभाग की उसके शब्दकोष में जगह ही नहीं है.’
राजधानी भोपाल स्थित राज्य के एक बड़े मीडिया हाउस के वरिष्ठ संवाददाता बताते हैं, ‘शुरुआती एक साल तो लगा था कि कुछ हो रहा है. हैप्पीनेस इंडेक्स के लिए आईआईटी (खड़गपुर) के साथ एमओयू किया गया. भूटान, अमेरिका, यूएई से लोग बुलाकर कार्यशाला आयोजित की गई. उसके बाद सब ठंडा पड़ गया. विभाग के लोग क्या कर रहे हैं, कब कर रहे हैं, कहां कर रहे हैं, कुछ नहीं पता.’
सबसे रोचक बात तो यह है कि विभाग के गठन की नींव रखने वाले और उसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पार्टी भाजपा के लोगों को ही विभाग के कामकाज की जानकारी नहीं है. द वायर ने भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजपाल सिसौदिया से जब विभाग के कामकाज और हैप्पीनेस इंडेक्स अब तक जारी न होने के संबंध में प्रश्न किए तो वह पूछने लगे कि क्या आपने विभाग के अधिकारियों से बात की है.
जब उन्हें बताया गया कि अधिकारियों के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है तो वह राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं गिनाते हुए बोले, ‘मध्य प्रदेश के अंदर जिस तरह से गरीब कल्याण के काम हमारी सरकार ने किए हैं, उन कामों की वजह से लोगों के अंदर आनंद की अनुभूति हुई है. उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री आवास योजना का भवन किसी को बनकर मिलता है या लाडली बहना योजना के तहत किसी बहन के खाते में 1,250 रुपये जाते हैं या अतिपिछड़ा आदिवासी समुदाय बैगा, सहरिया, भारिया के विकास की जब बात होती है तो यह आनंद का ही स्तर होता है.’
लेकिन, उनके पास यह जवाब नहीं था कि ‘आनंद विभाग’ क्या काम कर रहा है.
भाजपा की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), जिसके स्वयंसेवक ज़मीन पर सक्रियता से काम करने के लिए जाने जाते हैं, से जुड़े लोगों ने भी विभाग का ज़मीन पर कोई काम देखे जाने से इनकार किया.
हैप्पीनेस इंडेक्स का अंतहीन इंतजार
विभाग के गठन के समय राज्य का हैप्पीनेस इंडेक्स जारी करने को इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य बताया गया था. आईआईटी खड़गपुर के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने के अलावा तत्कालीन अधिकारियों ने सरकारी खर्च पर भूटान के दौरे भी किए थे. लेकिन, तब से अब तक नतीजा ढाक के तीन पात’ ही रहा है. कभी कोरोना, तो कभी किसी अन्य कारण से बार-बार राज्य आनंद संस्थान की ओर से इंडेक्स जल्द ही जारी करने का आश्वासन दिया जाता है.
संस्थान के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) अखिलेश अर्गल ने ‘द वायर’ को भी ऐसा ही आश्वासन दिया और कहा कि हमारी तैयारी पूरी है, अब चुनाव बाद इंडेक्स जारी किया जाएगा.
हालांकि, इंडेक्स को लेकर विभाग कितना गंभीर है उसे राज्य आनंद संस्थान की वेबसाइट पर 21 अगस्त 2023 को अपलोड किए गए विभाग के वर्ष 2022-23 के वार्षिक प्रतिवेदन से समझा जा सकता है. इसमें लिखा है, ‘आईआईटी खड़गपुर के साथ मिलकर संस्थान द्वारा हैप्पीनेस इंडेक्स हेतु आवश्यक प्रश्नावली तैयार कर ली गई है तथा कोरोना संक्रमण के उपरांत स्थिति सामान्य होने पर सर्वेक्षण का कार्य आगे बढ़ाया जाएगा.’
मतलब कि विभाग की नज़र में अभी भी कोरोना संक्रमण के हालात बने हुए हैं.
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले उनके महत्वाकांक्षी इस विभाग के कामकाज की गंभीरता का पता इससे भी चलता है कि संस्थान के कार्यों के निष्पादन हेतु 28 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 13 रिक्त हैं. वहीं, वेबसाइट पर जिन 17 पदाधिकारियों का उल्लेख है, उनमें सामान्य सभा के अध्यक्ष के तौर पर मुख्यमंत्री, कार्यपालन समिति के अध्यक्ष के तौर पर राज्य के प्रमुख सचिव और सीईओ अर्गल के अलावा बाकी 14 पदों में से 7 रिक्त हैं.
इन 7 पदों में हैप्पीनेस इंडेक्स की कवायद से जुड़े 3 में से 2 पद रिक्त हैं. यहां तक कि हैप्पीनेस इंडेक्स के निदेशक तक का पद खाली है. आनंद के प्रसार की अवधारणा में अनुसंधान पर सर्वाधिक जोर था, लेकिन अनुसंधान निदेशक का ही पद खाली है.
संस्थान की ओर से आनंद के विषय पर शोध/अनुसंधान के लिए ‘आनंद रिसर्च फेलोशिप’ भी जारी की जाती है, लेकिन आज तक कोई शोध प्रकाशित नहीं हुआ है.
लोगों के जीवन में आनंद घोलने का बजट 10 पैसा प्रति व्यक्ति है
आनंद विभाग का गठन एक स्वतंत्र विभाग के रूप में हुआ था. वर्ष 2018 में सरकार बदलने पर इसका विलय अध्यात्म विभाग में कर दिया गया. वापस भाजपा की सरकार आने पर इसे फिर से स्वतंत्र कर दिया गया.
वर्ष 2022-23 में इसको 5 करोड़ का बजट आवंटित हुआ था, जिसमें 2 करोड़ वेतन भुगतान, कार्यालय किराया, बिजली-पानी व्यय, प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार के लिए थे. 3 करोड़ का पोषण अनुदान था, जिससे विभाग को आनंद के प्रसार के कार्यक्रमों का संचालन करना था. विभाग केवल 4.22 करोड़ की राशि खर्च कर सका.
उल्लेखनीय है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं मुख्यमंत्री के इस महत्वाकांक्षी विभाग द्वारा आनंद के प्रसार के लिए चलाए जाने वाले सभी कार्यक्रमों पर केवल 79 लाख रुपये खर्च किए गए, जो राज्य की लगभग 8 करोड़ आबादी के लिहाज से लगभग 0.10 पैसा प्रति व्यक्ति होता है.
हालांकि, अर्गल इस बजट को पर्याप्त मानते हैं. उनका कहना है, ‘हम वालंटियर (स्वयंसेवी) के जरिये काम करते हैं. यह एक नई अवधारणा लाने की शुरुआत है, समय तो निश्चित तौर पर लगेगा. बजट हमारे लिए पर्याप्त है, कोई समस्या नहीं है.’
‘आनंद विभाग’ या ‘सरकारी अधिकारी/कर्मचारी आनंद विभाग?’
स्वयंसेवी आनंदकों (84 हजार से अधिक) में बड़ी संख्या में शासकीय सेवक शामिल हैं (दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 40 फीसदी से अधिक), उनमें भी शिक्षा विभाग के कर्मियों की संख्या इनमें अधिक है. अशासकीय व्यक्तियों में समाजसेवी, पत्रकार जैसे ज़मीनी सक्रियता वाले पेशों के लोग शामिल हैं. वहीं, वेबसाइट पर उपलब्ध 268 आनंदम सहयोगियों की सूची में 60 फीसदी से अधिक शासकीय कर्मचारी हैं.
आनंदम सहयोगियों को दिशानिर्देशित करने वाले सभी प्रोग्राम लीडर शासकीय सेवक हैं, 52 ज़िला संपर्क व्यक्तियों में भी 48 शासकीय सेवक हैं. भास्कर के मुताबिक, कुल आनंदकों में से केवल 10 फीसदी ही ज़मीन पर सक्रिय हैं. द वायर ने भी जब आनंद सहयोगियों की सूची में दर्ज नामों से बात की तो किसी का फोन नंबर नहीं लगा, तो किसी ने अब विभाग से जुड़े न होने की बात कही.
अर्गल भले ही पूरी योजना को वॉलंटियर रूप से सफल बनाने का ख्वाब देखते हों लेकिन द वायर से बातचीत में ‘अशासकीय आनंदम सहयोगी’ कहते हैं कि हम काम-धाम छोड़कर अपने मन की संतुष्टि के लिए लोगों में खुशियों बांटने के प्रयास करते हैं, तो कम से कम विभाग को हमारे पानी-पेट्रोल का खर्च तो देना ही चाहिए.
भोपाल संभाग की एक आनंदम सहयोगी बरखा दांगी कहती हैं, ‘हमें आनंद संस्थान द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन पहले यह निशुल्क था, अब भुगतान करना होता है. ऊपर से भोपाल आने-जाने का भी खर्चा होता है और चार दिन प्रशिक्षण के लिए रुकने का खर्च अलग. पैसे लगने के बाद से लोगों की जुड़ने में रुचि कम होने लगी है. हमारे साथ और भी लोग जुड़े थे, लेकिन जब से इन्होंने पैसे लेना शुरू किया तो उन्होंने दूरी बना ली.’
हालांकि, अर्गल इन आरोप को निराधार बताते हैं और किसी भी प्रकार का शुल्क लेने की बात से इनकार करते हैं.
एक अन्य आनंद सहयोगी विकास यादव, जो कटनी के सामाजिक कार्यकर्ता हैं, भी कुछ ऐसा ही कहते हैं. उनका कहना है, ‘यह पहल अच्छी थी लेकिन इससे जुड़े शासकीय लोग (आनंदक) इसका महत्व समझते नहीं हैं. उनको यही लगता है कि ये प्रशिक्षण है बस.’
अजय दुबे आरोप लगाते हैं कि विभाग में सरकारी अधिकारियों के रिश्तेदार काम कर रहे हैं. वे कहते हैं कि वास्तव में इसका नाम ‘सरकारी तंत्र आनंद विभाग’ होना चाहिए था, जिसकी पात्रता केवल शासकीय लोगों को है.’
डॉ. शर्मा आरोप लगाते हैं, ‘वर्ष 2016-17 में जब विभाग बना तब बहुत अच्छा था. स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस पर ध्यान केंद्रित किया. आम लोगों में भी उत्साह दिखा. सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम लोगों को भी बराबर महत्व दिया गया और उन्हें नोडल ऑफिसर, ज़िला समन्वयक या आनंदम सहयोगी बनाया गया. बाद में इसमें राजनीतिक जुड़ाव रखने वाले लोग घुस आए और उन्होंने इसे अपनी ऐशगाह बना लिया.’
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना आरोप लगाते हैं, ‘आनंद विभाग भाजपा के आनुषांगिक संगठन आरएसएस के लोगों को आनंदित करने के लिए बनाया गया था. आज भी इसमें वही लोग आनंद ले रहे हैं, प्रदेश के किसी व्यक्ति को तो आनंद मिला नहीं. जनता की खुशहाली के लिए यह कोई काम नहीं करता. इसके अध्यक्ष से लेकर कार्यकारिणी में बैठे लोगों का संघ से जुड़ाव है और वे शासकीय सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं. मैं तो कहूंगा कि यह आरएसएस का ही एक आनुषांगिक संगठन है जो उसकी विचारधारा के प्रचार-प्रसार का काम कर रहा है.’
आंकड़े भी कहते हैं ‘आनंद विभाग’ की विफलता की कहानी
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल दर साल राज्य में आत्महत्या की घटनाओं में इजाफा हो रहा है.
विभाग के गठन से पहले वर्ष 2015 में राज्य में आत्महत्या की दर 7.7 फीसदी थी, जो 2021 में बढ़कर 9.1 फीसदी हो गई. विभाग सरकारी कर्मचारियों और छात्रों के बीच सर्वाधिक सक्रियता का दावा करता है, लेकिन छात्र आत्महत्या के मामले में 2021 में मध्य प्रदेश देश में दूसरे पायदान पर रहा और सरकारी कर्मचारियों की आत्महत्या के मामले में चौथे पायदान पर. वहीं, 2016 में राज्य में 2,170 दैनिक वेतनभोगियों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2021 में यह संख्या दोगुने से भी अधिक 4,657 हो गई.
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2020-21 में मध्य प्रदेश 19 राज्यों में 17वें पायदान पर है. आयोग के मुताबिक मध्य प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में सातवां सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है, जबकि विभाग से शिक्षक और छात्र ही अधिक जुड़े हैं.
उपरोक्त आंकड़े पर्याप्त हैं यह बताने के लिए कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नाक के नीचे ही काम कर रहा उनका महत्वाकांक्षी ‘आनंद विभाग’ प्रदेशवासियों को आनंद की कितनी अनुभूति करा पाया है.