अलग रह रही पत्नी को दिया गया भरण-पोषण पति पर बोझ नहीं बनना चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद में गुज़ारा-भत्ता राशि में संशोधन को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एक संतुलन बनाने पर ज़ोर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्नी को दिया जाने वाला गुज़ारा भत्ता बहुत अधिक न हो, जिससे पति को कठिनाई हो, न ही कम हो, जो पत्नी को ग़रीबी में धकेल दे.

झारखंड हाईकोर्ट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

झारखंड हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद में गुज़ारा-भत्ता राशि में संशोधन को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एक संतुलन बनाने पर ज़ोर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्नी को दिया जाने वाला गुज़ारा भत्ता बहुत अधिक न हो, जिससे पति को कठिनाई हो, न ही कम हो, जो पत्नी को ग़रीबी में धकेल दे.

झारखंड हाईकोर्ट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: झारखंड हाईकोर्ट ने अपने हालिया आदेश में कहा है कि यह पति का नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करे, यह सुनिश्चित करे कि वह अपने वैवाहिक घर के समान जीवन शैली बनाए रख सके, लेकिन इससे पुरुष पर इस हद तक बोझ डालना उचित नहीं है कि विवाह उसके लिए एक सजा बन जाए.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने यह टिप्पणी धनबाद निवासी एक वैवाहिक विवाद में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसने अपनी पत्नी को दी गई गुजारा-भत्ता राशि में संशोधन की प्रार्थना की थी.

जस्टिस सुभाष चंद की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘निश्चित रूप से यह पति का नैतिक कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को गुजारा-भत्ता दे ताकि वह भी उसी स्थिति में रह सके, जैसे अपने वैवाहिक घर में होती; लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे इतना निचोड़ लिया जाए कि शादी उसके लिए अपराध बन जाए.’

अदालत ने धनबाद परिवार अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसमें याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी को 40,000 रुपये का मासिक भत्ता देने का निर्देश दिया गया था.

मामले के विवरण के अनुसार, याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी ने 2018 में हिंदू रीति-रिवाजों के साथ शादी की थी. हालांकि, शादी के तुरंत बाद घरेलू विवादों के कारण वे अलग हो गए.

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के संज्ञान में यह लाया गया कि पत्नी ने कोई आय नहीं होने का दावा करने के बावजूद पिछले चार वर्षों से आयकर रिटर्न दाखिल किया है. हालांकि, पीठ ने कहा कि भले ही महिला कमा रही हो, वह अपने वैवाहिक घर के अनुरूप जीवन स्तर बनाए रखने के लिए अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है.

याचिकाकर्ता ने पीठ को यह भी बताया कि उसे अपनी बीमार मां की देखभाल करनी है. अदालत ने दलील पर ध्यान दिया और गुजारा-भत्ता राशि पर निर्णय लेते समय इस पर विचार नहीं करने के लिए पारिवारिक अदालत की खिंचाई की.

रिपोर्ट के अनुसार, अपने आदेश में अदालत ने मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गुजारा-भत्ता राशि को संशोधित कर 25,000 रुपये प्रति माह कर दिया.

उचित और यथार्थवादी भरण-पोषण राशि निर्धारित करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अदालत ने एक संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा-भत्ता बहुत अधिक न हो, जिससे पति को कठिनाई हो, न ही कम हो, जो पत्नी को गरीबी में धकेल दे.