मध्य प्रदेश: कांग्रेस ने दलबदलुओं पर दिखाया भरोसा, पार्टी में ही उठ रहे हैं बग़ावती सुर

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए गुरुवार को कांग्रेस की दूसरी सूची जारी होने के साथ 230 विधानसभा सीटों में से 229 पर इसके प्रत्याशियों के नाम साफ़ हो गए हैं. हालांकि, टिकट वितरण को लेकर विरोधी स्वरों के बीच पार्टी द्वारा 'सर्वे कर टिकट बांटने' के दावे पर भी सवाल उठ रहे हैं.

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मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/INCMadhyaPradesh)

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए गुरुवार को कांग्रेस की दूसरी सूची जारी होने के साथ 230 विधानसभा सीटों में से 229 पर इसके प्रत्याशियों के नाम साफ़ हो गए हैं. हालांकि, टिकट वितरण को लेकर विरोधी स्वरों के बीच पार्टी द्वारा ‘सर्वे कर टिकट बांटने’ के दावे पर भी सवाल उठ रहे हैं.

मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/INCMadhyaPradesh)

भोपाल: गुरुवार देर रात कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 88 उम्मीदवारों की अपनी दूसरी सूची जारी कर दी. इससे पहले 15 अक्टूबर को उसने 144 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी. खास बात यह है कि पहली सूची में जारी किए गए तीन नामों को दूसरी सूची में बदला गया है. इस तरह कांग्रेस ने अब तक राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 229 पर अपने उम्मीदवारों के चेहरे साफ कर दिए हैं. केवल बैतूल ज़िले की आमला सीट पर अभी उम्मीदवार के नाम की घोषणा होना बाकी है.

आमला सीट को लेकर पेंच फंसा हुआ है क्योंकि छतरपुर में पदस्थ डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं, लेकिन सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर किया है, जिसके बाद मामला अदालत में है.

33 फीसदी महिला आरक्षण की चर्चाओं के बीच कांग्रेस ने 229 में से केवल 29 सीट पर महिलाओं को टिकट दिया है (निशा बांगरे का इस्तीफा मंजूर होने पर यह संख्या 30 हो सकती है), यानी केवल करीब 13 फीसदी महिलाओं को कांग्रेस ने टिकट दिया है.

2018 से तुलना करें तो इस बार 94 सीटों पर कांग्रेस ने नए प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि 135 सीट पर पुरानों पर ही भरोसा जताया गया है. 12 विधायकों के टिकट भी काटे हैं, जबकि कम से कम 15 दलबदलुओं पर भी भरोसा जताया गया है.

जिन 12 विधायकों के टिकट काटे गए हैं, उनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जगह उनके बेटे विक्रांत भूरिया को झाबुआ से और आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील को भोपाल उत्तर से उम्मीदवार बनाया गया है. जबकि, कटंगी टामलाल सहारे उम्र का हवाला देते हुए काफी पहले चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके थे.

देखा जाए तो कुल मिलाकर 9 विधायकों को टिकट से हाथ धोना पड़ा है जिनमें गुन्नौर से विधायक शिवदयाल बागरी, गोहद से मेवाराम जाटव, विजयराघवगढ़ से पद्मा शुक्ला, ब्यावरा से रामचंद्र दांगी, सेंधवा से ग्यासी लाल रावत, मुरैना से राकेश मावई, सुमावली से अजब सिंह कुशवाह, बड़नगर से मुरली मोरवाल, घोड़ाडोंगरी से ब्रह्म भलावी के नाम शामिल हैं.

यहां कटंगी और सेंधवा सीट का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. कटंगी से कांग्रेस ने पूर्व भाजपा सांसद बोध सिंह भगत को उम्मीदवार बनाया है. वह कुछ समय पहले ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. वहीं, सेंधवा में पार्टी ने आदिवासी वर्ग के बीच लोकप्रिय क्षेत्रीय संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के पदाधिकारी मोंटू सोलंकी को मैदान में उतारा है.

गौरतलब है कि ऐसी चर्चाएं थीं कि कांग्रेस और जयस के बीच सीट बंटवारे को लेकर असहमति की स्थिति है, इसी लिए उम्मीदवारों की पहली सूची में पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर से मौजूदा विधायक हीरालाल अलावा का नाम नहीं था.

दलबदलुओं पर भी जताया भरोसा

पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने कई दलबदलुओं पर भरोसा जताया था, हालांकि उनमें से अधिकांश की हार हुई थी. इस बार कांग्रेस ने कम से कम 15 दलबदल करने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाया है.

पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे, जो कुछ महीने पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए थे, उन्हें खातेगांव से उम्मीदवार बनाया गया है.

भाजपा के पूर्व सांसद बोध सिंह भगत को टिकट देने के लिए पार्टी ने कटंगी सीट पर अपने मौजूदा विधायक की बलि दे दी है.

इसी तरह, प्रदेश में तख्तापलट के समय ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में जाने वाले और कुछ समय पहले ही कांग्रेस में लौटने वाले बैजनाथ यादव को भी पार्टी ने कोलारस सीट से उम्मीदवार बनाया है.  हालांकि, इसी सीट पर भाजपा के एक और बागी मौजूदा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी को भी टिकट की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी और भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आने का कोई लाभ नहीं हुआ.

जावद सीट पर भी सिंधिया के करीबी रहे समंदर पटेल को टिकट दिया गया है. उन्होंने भी सिंधिया के साथ भाजपा का रुख किया, लेकिन कुछ ही दिनों पहले चुनावी महत्वाकांक्षा के साथ कांग्रेस में लौट आए थे.

मुंगावली सीट पर कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह यादव को उतारा है. वह भाजपा से तीन बार विधायक रहे दिवंगत नेता देशराज सिंह के बेटे हैं और इसी साल मार्च में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे.

होशंगाबाद से गिरिजा शंकर शर्मा उम्मीदवार बनाए गए हैं. वह पूर्व में भाजपा विधायक रह चुके हैं और इसी सीट से मौजूदा भाजपा विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीतासरण शर्मा के बड़े भाई हैं. गौरतलब है कि पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने इस सीट पर भाजपा के एक बागी नेता (सरताज सिंह) को ही उतारा था, हालांकि पार्टी को सफलता हाथ नहीं लगी थी.

सेमरिया के कांग्रेस प्रत्याशी अभय मिश्रा का वाकया तो बड़ा ही दिलचस्प है. 2008 में वह भाजपा के टिकट पर विधायक बने. 2013 में उनकी पत्नी भाजपा के टिकट पर जीतीं. 2018 के चुनाव से ठीक पहले अभय कांग्रेस में चले गए. कांग्रेस ने उन्हें रीवा सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह हार गए. दो महीने पहले अगस्त माह में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में ‘घर वापसी’ करते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए खुद को भाजपा को समर्पित बताया था, लेकिन दो महीने बाद फिर भाजपा छोड़ दी और फिर से कांग्रेस में आ गए, अगले ही दिन उन्हें सेमरिया से कांग्रेस ने टिकट भी दे दिया.

बदनावर सीट पर पूर्व भाजपा विधायक भंवर सिंह शेखावत कांग्रेस उम्मीदवार हैं, जो थोड़े समय पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं.

सुरखी में भी दो महीने पहले ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए नीरज शर्मा उम्मीदवार हैं.

हाल ही में भाजपा के उपाध्यक्ष पद पर काम कर रहे अमित राय निवाड़ी से अब कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. खबर है कि उन्होंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा तक नहीं दिया था, लेकिन कांग्रेस ने उम्मीदवार बना दिया. वह भितरघात के चलते बीते वर्ष भाजपा से निष्काषित किए गए थे, लेकिन कुछ महीने पहले ही मुख्यमंत्री ने उन्हें पार्टी में वापस ले लिया था.

नागौद सीट पर भी भाजपा से आईं रश्मि पटेल उम्मीदवार बनाई गई हैं. बीते माह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए रामकिशोर शुक्ला भी महू से प्रत्याशी बनाए गए हैं.

सिर्फ भाजपा ही नहीं, कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के भी दो बागियों को मैदान में उतारा है. एक कपिध्वज सिंह हैं जिन्हें गुढ़ विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है और दूसरे हैं चरण सिंह यादव. झांसी के रहने वाले, यूपी पुलिस द्वारा गैंगस्टर घोषित और पूर्व में भी एमपी-यूपी में चुनाव लड़ चुके चरण सिंह को बिजावर से उम्मीदवार बनाया गया है.

नेपानगर से कांग्रेस ने तीन महीने पहले ही पार्टी में आईं गेंदू बाई चौहान को उतारा है. वह भाजपा की सदस्य तो नहीं रहीं, लेकिन भाजपा से जुड़ाव जरूर रहा है.

गुन्नौर में जीवनलाल सिद्धार्थ को उम्मीदवार बनाया है, जो कि बहुजन समाज पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आए थे.

गौर करने वाली बात है कि इनमें से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस कार्यकर्ता उम्मीदवारों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं और इस्तीफे दे रहे हैं.

विधानसभा के भीतर कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपने वाले चौधरी राकेश सिंह को भी टिकट

वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्षी कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी. चौधरी राकेश सिंह तब सदन में उपनेता प्रतिपक्ष थे. दिग्विजय सरकार में मंत्री भी रहे राकेश सिंह सदन के अंदर ही कांग्रेस से बगावत कर ली थी. पिछले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा से ही उम्मीदवार थे. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर कांग्रेस में आ गए. 2020 के उपचुनाव में भी कमलनाथ उन पर दांव खेलना चाहते थे, लेकिन पार्टी के अंदर हुए विरोध के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा था.

इसके साथ ही, कांग्रेस ने पिछला विधानसभा चुनाव निर्दलीय के तौर पर जीते केदार डाबर और सुरेंद्र सिंह शेरा को इस बार पार्टी में शामिल कर अपना उम्मीदवार बना लिया है. मौजूदा विधायक केदार को उनकी सीट भगवानपुरा और सुरेंद्र सिंह शेरा को उनकी सीट बुरहानपुर से टिकट दिया गया है.

कांग्रेस की सूची में एक नाम पूर्व निर्दलीय विधायक और व्यापम घोटाले के ह्विसिलब्लोअर पारस सकलेचा का भी है. उन्हें रतलाम सिटी से टिकट दिया गया है.

तीन सीट पर बदले उम्मीदवार, उठे कांग्रेस के सर्वे पर सवाल

कांग्रेस की पहली सूची में पिछोर सीट से शैलेंद्र सिंह, गोटेगांव से शेखर चौधरी और दतिया से अवधेश नायक को उम्मीदवार बनाया गया था. दूसरी सूची में कांग्रेस ने इन तीनों की इन सीट पर नए नाम दिए हैं. अब पिछोर से अब अरविंद सिंह लोधी, गोटेगांव से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति और दतिया से राजेंद्र भारती को उम्मीदवार बनाया गया है.

इससे पहले की सूची में एनपी प्रजापति का टिकट काट दिया गया था. कांग्रेस की पारंपरिक सीट पिछोर से छह बार विधायक रहे केपी सिंह को शिवपुरी सीट से लड़ाने के चलते नए उम्मीदवार की जरूरत पड़ी थी. वहीं, दतिया में भाजपा से आए अवधेश नायक को उम्मीदवार बनाया गया तो विरोध होने पर पिछला चुनाव हारे और दतिया विधायक एवं गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले भारती को फिर से उम्मीदवार बना दिया गया.

उम्मीदवार बदलने और एक दिन पहले ही पार्टी में शामिल होने वाले अभय मिश्रा को टिकट देने के इन कदमों ने कांग्रेस और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के उन दावों पर सवाल उठाया है, जिनमें वह कहते नजर आते थे कि सारे टिकट सर्वे के आधार पर बांटे गए हैं.

बहरहाल, बड़वाह में पार्टी को उम्मीदवार बदलने की नौबत इसलिए आई क्योंकि उनके मौजूदा विधायक सचिन बिड़ला कुछ दिन पहले भाजपा में चले गए.

वहीं, जिन 94 सीटों पर नए चेहरे उतारे गए हैं, उनमें से कुछ सीटों का जिक्र करना जरूरी हो जाता है.

जोबट में 2020 के उपचुनाव में महेश पटेल उम्मीदवार थे, इस बार उनकी पत्नी सेना पटेल को टिकट दिया है. बमोरी में उपचुनाव में कन्हैयालाल अग्रवाल उम्मीदवार थे, अब उनके बेटे ऋषि अग्रवाल उम्मीदवार हैं.

सिहोरा में डॉ. एकता ठाकुर उम्मीदवार हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के बागी खिलाड़ी सिंह आर्मों उम्मीदवार थे, जो चुनाव हार गए थे. वह कुछ दिन पहले वापस भाजपा में जा चुके हैं.

महिदपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार दिनेश जैन हैं, जो पिछली बार निर्दलीय लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे. कांग्रेस उम्मीदवार तब तीसरे नंबर पर रहे थे.

वहीं, निवास से विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले की सीट बदल दी गई है. उन्हें इस बार मंडला से उतारा गया है.

टिकट वितरण पर नेताओं के बगावती सुर

कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद से ही पार्टी में बगावत भी फूट पड़ी है. एक तरफ पार्टी को तीन टिकट बदलने पड़े हैं तो दूसरी तरफ कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी दी है. कुछ भाजपा से टिकट मिलने की आस में हैं, तो कुछ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और आम आदमी पार्टी (आप) से टिकट ले आए हैं और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने की तैयारी में हैं.

कांग्रेस की कमजोरी बने हुए विंध्य क्षेत्र में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते और कांग्रेस विधायक सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं. उनके समर्थन में और भी कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ दी है.

नागौद से पैराशूट उम्मीदवार को टिकट मिलने के विरोध में पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह बसपा में चले गए और उम्मीदवार बना दिए गए हैं. उज्जैन उत्तर से पूर्व में कांग्रेस प्रत्याशी रहे विवेक यादव ने भी टिकट न मिलने पर बगावत कर दी है और आम आदमी पार्टी में चले गए हैं. कालापीपल विधानसभा से टिकट की उम्मीद लगाए क्षेत्र में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार चतुर्भुज तोमर भी ‘आप’ में चले गए हैं.

कटंगी में प्रशांत भाऊ मेश्राम ने भी ‘आप’ की सदस्यता ले ली है. धार से तीन बार सांसद रहे गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी ने भी टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोड़ दी है.

सांवेर से पूर्व विधायक रहे और 2020 उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे प्रेमचंद गुड्डू ने फिर से कांग्रेस छोड़ दी है और निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बता दें कि गुड्डू पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे, बाद में फिर कांग्रेस में लौट आए थे और उन्हें पार्टी ने उपचुनाव में अपना उम्मीदवार भी बनाया था.

गुन्नौर से पूर्व विधायक फुंदर लाल चौधरी भाजपा में, तो ब्यौहारी से पूर्व विधायक रामपाल सिंह ‘आप’ में चले गए हैं.

ग्वालियर ग्रामीण सीट पर यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी रहे केदार कंसाना ने भी बगावत कर दी है और चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. ग्वालियर सीट पर पिछली बार हारे प्रत्याशी सुनील शर्मा के विरोध में बाकी सभी दावेदार एकजुट हो गए हैं. कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री भानु ठाकुर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है और वह भांडेर से टिकट मांग रहे थे.

मुरैना ज़िले की सुमावली सीट पर अजब सिंह कुशवाह बसपा में चले गए हैं और निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले हैं. टिकट कटने से मुरैना विधायक राकेश मावई घर बैठ गए हैं. दोनों ने ज़िले की सभी छह सीट कांग्रेस को हरवाने की बात कही है.

टिकट कटने से खफा मौजूदा विधायक मुरली मोरवाल ने निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया है.

जैतपुर विधानसभा में पूर्व जनपद अध्यक्ष ललन सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया. बुरहानपुर में निर्दलीय विधायक शेरा को उम्मीदवार बनाने के विरोध में कई कांग्रेस पार्षदों ने इस्तीफा दे दिया. रीवा सीट पर उम्मीदवार की घोषणा से प्रदेश महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष कविता पांडे ने भी पार्टी के सभी पद छोड़ने का ऐलान कर दिया है.

खातेगांव में भाजपा से आए दीपक जोशी को टिकट मिलने का भी भारी विरोध देखा जा रहा है.

जावरा, सिवनी मालवा, सेमरिया, भांडेर, गुना, रतलाम ग्रामीण, शुजालपुर, सेवढ़ा, महू, बैरसिया, बदनावर जैसी करीब दर्जनों सीटों पर घोषित प्रत्याशियों का लगातार विरोध हो रहा है. कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और पार्टी के पुतले जलाए जाने समेत विभिन्न तरीकों से विरोध किया जा रहा है.

नाराजगी उनमें भी है, जिन्हें पहली लिस्ट में टिकट देकर दूसरी लिस्ट में उनका नाम काट दिया गया.  वहीं, जिन 15 सीट पर दलबदलुओं को उतारा गया है, वहां लगभग हर सीट पर भारी विरोध देखा जा रहा है.