कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 राज्यों को हर ज़िले में एक अधिकारी नियुक्त करने का आदेश देता है, जो अधिनियम के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह पाया गया है कि कई राज्यों ने इन वर्षों में ज़िला अधिकारियों को नियुक्त करने की जहमत नहीं उठाई.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (19 अक्टूबर) को पाया कि घरेलू कामगारों से लेकर छोटे प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तक महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून के तहत सुरक्षा मिली है, लेकिन यह उनकी पहुंच से परे है, क्योंकि उनकी शिकायतें लेकर जाने वाला कोई नहीं है.
भारत सरकार ने 2013 में यह कानून लागू किया था, ताकि कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर ध्यान दिया जा सके. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013, या पीओएसएच अधिनियम – राज्यों को हर जिले में एक अधिकारी नियुक्त करने का आदेश देता है, जो अधिनियम के कार्यान्वयन में ‘महत्वपूर्ण’ भूमिका निभाएगा.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिनियम की धारा 5 और 6 में विस्तार से बताया गया है कि जिला अधिकारी (District Officers) 10 से कम श्रमिकों वाले छोटे प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिलाओं या ऐसे मामलों में जहां हमलावर स्वयं नियोक्ता है, से शिकायतें प्राप्त करने के लिए स्थानीय शिकायत समितियों (एलसीसी) का गठन करेंगे. एक जिला अधिकारी की जिम्मेदारियों में ग्रामीण, आदिवासी और शहरी क्षेत्रों में अधिनियम के तहत नोडल अधिकारी नियुक्त करना भी शामिल है.
अपने 20 पन्नों के फैसले में जस्टिस एसआर भट्ट की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह पाया गया है कि कई राज्यों ने इन वर्षों में जिला अधिकारियों को नियुक्त करने की जहमत नहीं उठाई.
जस्टिस भट्ट ने कहा, ‘ज्यादातर राज्यों में जिला अधिकारियों का पद इस रिट याचिका का नोटिस दिए जाने के बाद अधिसूचित किया गया था. यहां तक कि जिन राज्यों ने कार्रवाई की है, उन्होंने अधिकारियों का कोई विशिष्ट विवरण, उनसे संपर्क की जानकारी आदि प्रदान किए बिना केवल जिला अधिकारी के रूप में एक पद अधिसूचित किया है. अधिकांश राज्य स्थानीय शिकायत समितियों के गठन और यहां तक कि उन पर दस्तावेज प्रदान करने में विफल रहे हैं. जिनके पास है, उनमें से कई ने प्रत्येक जिले में एक का गठन नहीं किया है.’
अदालत ने कहा कि पीओएसएच अधिनियम का दावा करना पर्याप्त नहीं है, निवारण के लिए रूपरेखा वास्तव में अस्तित्व में होनी चाहिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘यदि कोई महिला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न झेलती है, तो निवारण की रूपरेखा वास्तव में मौजूद होनी चाहिए. जिला अधिकारियों को विशेष रूप से नियुक्त करने में विफलता का अन्य पहलुओं के अलावा स्थानीय शिकायत समितियों और नोडल अधिकारियों की नियुक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. शिकायत तंत्र और बड़ा ढांचा – चाहे कितना भी प्रभावी क्यों न हो, अपर्याप्त रहेगा यदि अधिनियम में निर्धारित अधिकारियों को उचित रूप से नियुक्त/अधिसूचित नहीं किया जाता है. इसलिए, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर जिले में हर समय एक अधिसूचित जिला अधिकारी हो.’
अदालत ने राज्यों में महिला और बाल मंत्रालय के प्रधान सचिवों को आदेश दिया कि वे इस फैसले की तारीख से चार सप्ताह के भीतर धारा 5 के तहत विचार के अनुसार, अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के प्रत्येक जिले में एक जिला अधिकारी की नियुक्ति व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें.