अदालत के फैसले में यह भी कहा गया कि पीएमएलए की धारा 19 के तहत ईडी की गिरफ़्तार करने की शक्तियां ‘बेरोक-टोक नहीं’ हैं. अधिकारी इन्हें अपनी ‘मर्ज़ी’ के हिसाब से किसी को गिरफ़्तार करने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार (19 अक्टूबर) को कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) की धारा 50 के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी किए गए किसी भी समन के चलते स्वाभाविक रूप से किसी को गिरफ्तार करने की शक्ति नहीं मिलती है.
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की एकल-न्यायाधीश पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी को गिरफ्तार करने की ईडी की शक्ति पीएमएलए की एक अलग धारा के अंतर्गत आती है.
उन्होंने कहा, ‘पीएमएलए की धारा 50 के तहत किसी व्यक्ति को समन जारी करने और दस्तावेज पेश करने और बयान दर्ज करने की शक्ति, जो एक सिविल अदालत की शक्तियों के समान है, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की धारा 19 के तहत मिलने वाली शक्ति से अलग है. यह स्पष्ट है कि गिरफ्तारी की शक्ति धारा 50 में निहित नहीं है और न ही यह धारा 50 के तहत जारी किए गए समन का स्वाभाविक नतीजा हो सकती है.’
अदालत ने कहा कि ईडी को इस आशंका पर समन जारी करने की अपनी शक्ति का प्रयोग करने से नहीं रोका जा सकता है कि ऐसा करने से उसे किसी को गिरफ्तार करना पड़ सकता है या इसके उलट किया जा सकता है.
अदालत ने कहा, ‘अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो पीएमएलए की धारा 50 के तहत दस्तावेज पेश करने या शपथ पर बयान देने के लिए बुलाया गया कोई भी व्यक्ति, केवल यह आशंका व्यक्त करते हुए ऐसे समन का विरोध कर सकता है कि उसे पीएमएलए की धारा 19 के तहत मिलने वाली शक्तियों के चलते ईडी के हाथों गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है. ऐसी स्थिति वैधानिक प्रावधान के विपरीत होगी.’
हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि अधिकारी ‘अपनी मर्ज़ी के आधार पर’ किसी को गिरफ्तार करने के लिए पीएमएलए की धारा 19 का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं और गिरफ्तारी से पहले तीन शर्तों को पूरा करना होगा:
‘सबसे पहले, निदेशक को एक उचित विश्वसनीय धारणा बतानी चाहिए कि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति पीएमएलए के तहत अपराध का दोषी है, न कि किसी अन्य अधिनियम के तहत; दूसरे, इसकी वजह को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए; और तीसरा, यह धारणा उस सामग्री पर आधारित होनी चाहिए जो निदेशक के पास है.’
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि पीएमएलए की धारा 19 के तहत ईडी को आरोपी को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित में सूचित करना जरूरी है.
इसका अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी रद्द हो जाती है और आरोपी को बिना शर्त रिहा करने का अधिकार मिल जाता है.
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस भंभानी ने गुरुवार के फैसले में यह भी कहा कि पीएमएलए की धारा 19 (1) का अनुपालन न करने पर गिरफ्तारी हो सकती है और धारा 19 (2) का अनुपालन ‘एक महत्वपूर्ण काम है जिसमें कोई अपवाद नहीं है.’
हाईकोर्ट एडुकॉम्प सॉल्यूशंस नाम की एक कंपनी के मामलों से संबंधित 2020 ईसीआईआर (ईडी की एफआईआर का संस्करण) को रद्द करने के लिए एक आशीष मित्तल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
मित्तल ने कहा कि उन्हें डर है कि ईडी उन्हें ‘अवैध रूप से गिरफ्तार’ करेगी और इस मामले में उन्हें बलि का बकरा बनाया जाएगा.’ लेकिन अदालत ने कहा कि चूंकि मित्तल इस मामले में आरोपी नहीं हैं इसलिए ईडी उन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकती है.
ईडी केंद्र सरकार की वित्तीय अपराध जांच एजेंसी है. नरेंद्र मोदी सरकार में पीएमएलए में संशोधन के जरिये ईडी को असाधारण शक्तियां मिली हैं. आलोचकों के अनुसार, इनसे भाजपा के राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए एजेंसी का दुरुपयोग हो रहा है.