इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विभिन्न मांगों को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह पर एक दलित छात्र पर हमला करने का आरोप है. छात्रों का कहना है कि उन्होंने चीफ प्रॉक्टर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनकी नहीं सुनी.
इलाहाबाद: पिछले हफ्ते इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह द्वारा दलित समुदाय से आने वाले छात्र विवेक कुमार पर कथित तौर पर हिंसक हमला करने के बाद उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में छात्रों के नेतृत्व में कई विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.
सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में आरोपी चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह को एक पुलिसकर्मी से लाठी छीनते और उनके खिलाफ नारे लगाते हुए छात्र को मारते हुए देखा जा सकता है. विवेक खुद को बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन चीफ प्रॉक्टर उन्हें मारना जारी रखते हैं और तभी रुकते हैं, जब पुलिसकर्मी हस्तक्षेप करते हैं.
पूर्व एमए छात्र और ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (एआईएसए) इकाई के अध्यक्ष विवेक कुमार का मानना है कि बीते 17 अक्टूबर को उन पर हुआ हमला हाशिये पर रहने वाले समुदायों के प्रति भेदभाव और पूर्वाग्रह से उपजा है.
वे कहते हैं, ‘दुर्भाग्य से चीफ प्रॉक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जैसा कि अतीत में ऐसी सभी घटनाओं के मामले में हुआ है.’
उन्होंने कहा, ‘हम विभिन्न कारणों से विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे. हमारी कुछ मांगें थीं, जो मेरी राय में काफी उचित थीं, लेकिन चीफ प्रॉक्टर बिल्कुल उग्र हो गए और उन्होंने मुझे मारना शुरू कर दिया. मैं हैरान था, मैंने इसकी उम्मीद नहीं की थी.’
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दलित छात्र विवेक कुमार ने "जातिवादी चीफ़ प्रॉक्टर मुर्दाबाद" का नारा लगाया तो चीफ़ प्रॉक्टर "राकेश सिंह" बिफर पड़े और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के सामने दलित छात्र पर लाठियां भांज दी, वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है #UttarPradesh #allahabaduniversity… pic.twitter.com/IyyiNtB1EN
— Dalit Times | दलित टाइम्स (@DalitTime) October 18, 2023
घटना के बाद विवेक के साथ कई छात्रों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन तक मार्च किया और पुलिस से चीफ प्रॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश में आठ घंटे बिताए, लेकिन असफल रहे. विवेक कहते हैं, ‘पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर सर भी हमारे साथ थे, लेकिन उनकी मदद से भी हम थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करा सके.’
जिस विरोध प्रदर्शन से चीफ प्रॉक्टर भड़क गए, वह उस आंदोलन का हिस्सा था जिसने तब गति पकड़ी थी, जब विश्वविद्यालय ने पिछले साल 400 प्रतिशत की आश्चर्यजनक फीस वृद्धि लागू की.
विवेक ने कहा, ‘फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले तीन छात्रों अजय यादव सम्राट, सत्यम कुशवाहा और जीतेंद्र धनराज को लगभग तीन महीने पहले निलंबित कर और जेल में डाल दिया गया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘दो अन्य छात्रों हरेंद्र यादव और मनीष कुमार को अन्य कारणों से निलंबित कर दिया गया था. हरेंद्र को अब परीक्षा में भी नहीं बैठने दिया जा रहा है, जो छात्रों के बुनियादी अधिकारों के खिलाफ है. इस संस्था के इतिहास में, भले ही कोई जेल में रहा हो, उसे परीक्षा में बैठने के लिए पैरोल पर रिहा किया गया है.’
विवेक ने कहा कि नवीनतम विरोध प्रदर्शन में अन्य मांगों में तीन छात्रों को जेल से रिहा करना, सभी छात्रों का निलंबन हटाना और हरेंद्र यादव को परीक्षा में बैठने की अनुमति देना शामिल था.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन मुझ पर किए गए हमले के बाद एक और मांग जुड़ गई है और वह है चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह का निलंबन.’
उन्होंने बताया, ‘जब मैं हॉस्टल में रहता था तो अधीक्षक राकेश सिंह थे. पहले सप्ताह के दौरान जब बिस्तर आवंटित किए गए और सूची सामने आई, तो इसमें दिखाया गया कि 112 में से केवल नौ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के थे. जब मैंने इस पर सवाल उठाया और कहा कि आरक्षण के अनुसार कम से कम 25-26 छात्र होने चाहिए, तो वह बहुत क्रोधित हो गए और मुझे चेतावनी दी कि मैं अपनी चिंताओं को अपने तक ही सीमित रखूं, अन्यथा वह मुझे हॉस्टल से निकाल देंगे.’
विवेक का मानना है कि हॉस्टल की घटना के कारण चीफ प्रॉक्टर उनके प्रति द्वेष रखते हैं, जिसने आग में घी डालने का काम किया है. वे कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि विभिन्न मुद्दों पर स्टैंड लेने के कारण वह मुझे नापसंद करते हैं.’
उनका कहना है कि उन्होंने न केवल दलितों के प्रति बल्कि अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों छात्रों और छात्राओं के प्रति भी भेदभाव का पैटर्न देखा है.
उन्होंने कहा, ‘महिलाओं को सप्ताहांत पर विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया जाता है, जो उनके लिए बेहद असुविधाजनक है, वे सिर्फ पढ़ना चाहती हैं. अधिकारी सुरक्षा के मुद्दे का हवाला देते हैं, लेकिन अगर ऐसा है तो इसके बारे में कुछ किया जाना चाहिए.’
विवेक कहते हैं, ‘लाइब्रेरी तक पहुंच भी विरोध का एक बड़ा मुद्दा रहा है. छात्र लाइब्रेरी को 24 घंटे खुला और सुलभ बनाने की मांग कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘फिलहाल लाइब्रेरी शाम 6 बजे बंद हो जाती है, जिसका मतलब है कि कुछ छात्रों के पास उस समय के बाद पढ़ने के लिए उचित जगह नहीं है. हम काम के घंटे बढ़वाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन किसी ने हमारी गुहार नहीं सुनी.’
बुनियादी ढांचे की बिगड़ती स्थिति, अस्वच्छ शौचालय और अशुद्ध पेयजल कुछ अन्य मुद्दे हैं, जो अक्सर संबंधित छात्रों द्वारा उठाए गए हैं, लेकिन विवेक कहते हैं, सभी अनुरोधों पर ध्यान नहीं दिया गया.
वे कहते हैं, ‘इस विश्वविद्यालय के इतिहास में हमेशा कोई न कोई मुद्दा रहा है, जिससे छात्र असंतुष्ट रहे हैं और उन्होंने विरोध किया है. तब अधिकारियों ने उनकी मांगों को सुना भी है और अक्सर उन्हें हल करने की कोशिश की है. लेकिन हाल-फिलहाल में विरोध प्रदर्शनों के प्रति असहिष्णुता बढ़ रही है.’
इस बीच लखनऊ विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों ने विवेक कुमार के साथ एकजुटता दिखाई है और चीफ प्रॉक्टर राकेश सिंह के निलंबन की मांग करते हुए सामने आए हैं.
लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के छात्र प्रतिनिधि विशाल सिंह ने कहा कि एआईएसए, एनएसयूआई और अन्य यूनियनों के कई छात्र राकेश सिंह के ‘घृणित हमले’ की निंदा करने के लिए 18 अक्टूबर को परिसर में एकत्र हुए थे.
उन्होंने कहा, ‘हम कुछ कार्रवाई होते देखना चाहते हैं, अधिकारियों को सिर्फ इसलिए मामले को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह दलित हैं.’
उनका मानना है कि हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय दो अलग-अलग संस्थान हैं, लेकिन छात्रों के सामने आने वाली समस्याएं बिल्कुल एक जैसी हैं.
वे कहते हैं, ‘स्थिति ऐसी है कि अब आप किसी भी चीज के खिलाफ बोल नहीं सकते. उदाहरण के लिए गर्ल्स हॉस्टल में रहने वालों से कहा गया कि अगर उन्होंने सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट किया, जो विश्वविद्यालय को खराब रोशनी में दिखाता है तो उन्हें जुर्माना देना होगा और हॉस्टल खाली करने के लिए कहा जाएगा.’
उनका कहना है कि छात्रों को हमेशा विभिन्न कारणों से नोटिस जारी किया जाता है. हमें अब अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं है.
विशाल सिंह बीते 19 अक्टूबर को विवेक कुमार और अन्य छात्रों के साथ इलाहाबाद में उनके विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए शहर में रहने की योजना बना रहे हैं.
द वायर ने इस मामले को लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति संगीता श्रीवास्तव के कार्यालय और रजिस्ट्रार एनके शुक्ला से संपर्क किया है. उनकी ओर से प्रतिक्रिया का इंतजार है.
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