उत्तर प्रदेश: अस्पताल में खून चढ़ाने के बाद 14 बच्चे हेपेटाइटिस और एचआईवी से संक्रमित

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में सरकार द्वारा संचालित लाला लाजपत राय अस्पताल का मामला. अस्पताल के बाल रोग विभाग के प्रमुख और नोडल अधिकारी डॉ. अरुण आर्य ने कहा कि संक्रमित बच्चों में से सात में हेपेटाइटिस बी, पांच में हेपेटाइटिस सी और दो में एचआईवी की पुष्टि हुई है. उन्होंने कहा कि बच्चों में एचआईवी संक्रमण विशेष रूप से चिंताजनक है.

(प्रतीकात्मक फोटो: pixabay)

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में सरकार द्वारा संचालित लाला लाजपत राय अस्पताल का मामला. अस्पताल के बाल रोग विभाग के प्रमुख और नोडल अधिकारी डॉ. अरुण आर्य ने कहा कि संक्रमित बच्चों में से सात में हेपेटाइटिस बी, पांच में हेपेटाइटिस सी और दो में एचआईवी की पुष्टि हुई है. उन्होंने कहा कि बच्चों में एचआईवी संक्रमण विशेष रूप से चिंताजनक है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित एक अस्पताल के खून चढ़ाए जाने के बाद 14 बच्चों में हेपेटाइटिस बी, सी और एचआईवी जैसे संक्रमण की पुष्टि हुई है. डॉक्टरों ने सोमवार को स्वीकार किया कि थैलेसीमिया, जिसके लिए सबसे पहले खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है, के अलावा अब बच्चों को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है.

इन 14 बच्चों की उम्र 6 से 16 साल के बीच है.

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला एक ब्लड डिसऑर्डर है. इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया बाधित होती है, जिसके कारण एनीमिया के लक्षण दिखाई देते हैं. इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है. इसमें रोगी बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहर से खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना सरकार द्वारा संचालित लाला लाजपत राय (एलएलआर) अस्पताल में हुई, जहां अधिकारियों ने संकेत दिया कि दोष वायरस के लिए अप्रभावी परीक्षणों का हो सकता है, जो रक्तदान में दिए गए खून पर प्रक्रियात्मक रूप से किए जाने हैं, हालांकि संक्रमण के स्रोत का पता लगा पाना मुश्किल हो सकता है.

एलएलआर में बाल रोग विभाग के प्रमुख और इस केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरुण आर्य ने कहा कि यह चिंता का कारण है और खून चढ़ाने (Blood Transfusion) से जुड़े जोखिमों को दर्शाता है.

उन्होंने कहा, ‘हमने हेपेटाइटिस के मरीजों को गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग और एचआईवी मरीजों को कानपुर के रेफरल सेंटर में रेफर किया है.’ उन्होंने कहा कि एचआईवी संक्रमण विशेष रूप से चिंताजनक है.

वर्तमान में इस अस्पताल में 180 थैलेसीमिया रोगियों को खून चढ़ाया जाता है, जो किसी भी वायरल बीमारी के लिए हर छह महीने में उनमें से प्रत्येक की जांच करता है. 14 बच्चों को निजी और जिला अस्पतालों में और कुछ मामलों में स्थानीय स्तर पर खून चढ़ाया गया था, जब उन्हें इसकी तत्काल आवश्यकता थी.

आर्य ने कहा कि विंडो पीरियड के दौरान खून चढ़ाया गया. उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि बच्चे पहले से ही एक गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और अब उनके स्वास्थ्य पर और अधिक खतरा है.’

उनके अनुसार, जब कोई रक्तदान करता है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए खून का परीक्षण किया जाता है कि यह उपयोग के लिए सुरक्षित है या नहीं. हालांकि, किसी के संक्रमित होने के बाद एक समयावधि होती है, जब परीक्षणों द्वारा वायरस का पता नहीं लगाया जा सकता है, इसे ‘विंडो पीरियड’ कहा जाता है.

उन्होंने कहा, ‘खून चढ़ाने के समय डॉक्टरों द्वारा बच्चों को हेपेटाइटिस बी का टीका भी लगाना चाहिए था.’

आर्य ने कहा कि संक्रमित बच्चों में से सात में हेपेटाइटिस बी, पांच में हेपेटाइटिस सी और दो में एचआईवी की पुष्टि हुई. बच्चे कानपुर शहर, देहात, फर्रुखाबाद, औरैया, इटावा और कन्नौज सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों से हैं.

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘जिला स्तर के अधिकारी वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के तहत संक्रमण की जड़ का पता लगाएंगे. टीम हेपेटाइटिस और एचआईवी दोनों के लिए संक्रमण के स्थान की तलाश करेगी.’