शिक्षाविदों और छात्र संगठनों ने कहा कि बच्चों में वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करने के बजाय केंद्र सरकार एनसीईआरटी के ज़रिये पौराणिक कथाओं और विज्ञान को मिलाकर ‘अपनी भगवा विचारधारा थोपने’ की कोशिश कर रही है. चंद्रयान-3 मिशन पर एनसीईआरटी द्वारा जारी एक रीडिंग मॉड्यूल में इसरो और वैज्ञानिकों के योगदान के बजाय प्रधानमंत्री का महिमामंडन किया गया है.
नई दिल्ली: स्कूली बच्चों के लिए चंद्रयान-3 पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा सुझाई गई पठन सामग्री (Reading Module) में विज्ञान को पौराणिक कथाओं के साथ मिला देने के मामले ने तर्कवादियों और शिक्षाविदों को नाराज कर दिया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, उनका यह भी तर्क है कि पठन सामग्री में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और वैज्ञानिकों के योगदान के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महिमामंडन किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि 17 पन्नों की पाठ्य सामग्री में हर जगह इंडिया को ‘भारत’ कहा गया है.
मालूम हो कि छात्रों में जागरूकता पैदा करने के लिए एनसीईआरटी द्वारा चंद्रयान मिशन पर लाए गए विशेष पूरक पाठ मॉड्यूल में इसकी सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय दिया गया है और अंतरिक्ष विज्ञान को पौराणिक कथाओं से जोड़ा गया है. बीते 17 अक्टूबर को दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा इसरो अध्यक्ष एसपी सोमनाथ की उपस्थिति में इसे जारी किया गया था.
इसके अलावा पठन सामग्री पौराणिक कहानी भी बताती है. इसमें उल्लेख किया गया है, ‘वेद, जो कि भारतीय ग्रंथों में सबसे पुराना है, में उल्लेख मिलता है कि विभिन्न देवताओं को जानवरों, आमतौर पर घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले पहियों वाले रथों पर ले जाया जाता था, लेकिन ये रथ उड़ भी सकते थे. ऋग्वेद (श्लोक 1.16.47-48) में विशेष रूप से ‘यांत्रिक पक्षियों’ का उल्लेख है. उड़ने वाले रथों और उड़ने वाले वाहनों (विमान) के विभिन्न उल्लेख हैं, जिनका उपयोग लड़ाई और युद्धों में किया जाता था.
पठन सामग्री में पुष्पक विमान का भी उल्लेख है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया था.
इसमें बताया गया है, ‘सभी देवताओं के पास एक जानवर के रूप में अपना वाहन था, जिसका उपयोग वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करने के लिए करते थे. इन स्थानों में पृथ्वी, स्वर्ग, ग्रह और ‘लोक’ नामक ब्रह्मांडीय गंतव्य शामिल थे. कहा जाता है कि ऐसे वाहन अंतरिक्ष में बिना किसी शोर के आसानी से यात्रा करते थे. ऐसा ही एक विमान रामायण में वर्णित पौराणिक पुष्पक विमान (शाब्दिक रूप से पुष्प रथ) है. इसका निर्माण भगवान के मुख्य वास्तुकार विश्वकर्मा ने ब्रह्मा के लिए सूर्य की धूल से किया था. ब्रह्मा ने इसे कुबेर को दे दिया. जब रावण ने कुबेर से लंका पर कब्जा कर लिया, तो रावण ने इसे अपने निजी वाहन के रूप में इस्तेमाल किया.’
विरोध क्यों?
शिक्षाविदों और छात्र संगठनों ने इस पठन सामग्री की आलोचना की है और राय दी है कि स्कूली बच्चों में वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करने के बजाय केंद्र सरकार एनसीईआरटी के माध्यम से पौराणिक कथाओं और विज्ञान को मिलाकर ‘अपनी भगवा विचारधारा थोपने’ की कोशिश कर रही है.
द हिंदू से बात करते हुए, विकासात्मक शिक्षाविद् निरंजनराध्य वीपी ने कहा, ‘पठन सामग्री में प्रधानमंत्री ने आज की उपलब्धि के लिए वेदों और विमान शास्त्र का उल्लेख किया है. अगर प्राचीन युग में भारतीय वेदों और पौराणिक कथाओं का वास्तव में वैज्ञानिक आधार और तकनीक थी, तो हम उस विमान शास्त्र का संदर्भ क्यों नहीं लेते और उस प्राचीन ज्ञान का उपयोग करके एक अंतरिक्ष यान का निर्माण क्यों नहीं करते?’
उन्होंने कहा कि हमें भविष्य की ओर बढ़ने और तर्कसंगत तथा वैज्ञानिक स्वभाव व आलोचनात्मक सोच का प्रचार करने की आवश्यकता है. उन्होंने आगे कहा कि विमानिका शास्त्र ग्रंथ विद्वान पंडित सुब्बाराय शास्त्री द्वारा 1918 से 1923 के बीच लिखा गया था.
उन्होंने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि हमारे प्रधानमंत्री शैक्षणिक वर्ष के मध्य में एनसीईआरटी पर एक विशेष पठन सामग्री बनाने के लिए दबाव डालने की इतनी जल्दी में क्यों थे. क्या यह चंद्रयान मिशन के लिए दशकों तक मेहनत करने वाले समर्पित वैज्ञानिक समुदाय की कीमत पर उनकी छवि को महिमामंडित करने और बढ़ावा देने के लिए था?.’
वैज्ञानिक अध्ययन का अभिशाप
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एआईडीएसओ) के कर्नाटक राज्य सचिव अजय कामत ने कहा, ‘इस प्रकार के अवैज्ञानिक तर्क वास्तव में हमारे देश में चल रहे वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए अभिशाप हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह छात्रों की वैज्ञानिक भावना और तार्किक सोच को नष्ट कर देता है. इसलिए, हम एनसीईआरटी से इस पठन सामग्री को तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘शिक्षाविदों और विज्ञान-प्रेमी लोगों को ऐसे अवैज्ञानिक और कट्टर विचारों के प्रचार से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि वे सभी वैज्ञानिक भावना और सच्चे ज्ञान के विपरीत हैं.’