पसंद से विवाह का अधिकार संविधान के तहत संरक्षित, परिवार आपत्ति नहीं जता सकता: हाईकोर्ट

शादी के बाद परिवार की धमकियों का सामना कर रहे एक दंपत्ति को पुलिस सुरक्षा देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है. यहां तक कि परिवार के सदस्य भी ऐसे वैवाहिक संबंधों पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

शादी के बाद परिवार की धमकियों का सामना कर रहे एक दंपत्ति को पुलिस सुरक्षा देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है. यहां तक कि परिवार के सदस्य भी ऐसे वैवाहिक संबंधों पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं.

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नई दिल्ली: शादी के बाद अपने परिवार से धमकियों का सामना कर रहे एक जोड़े को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार अमिट और संवैधानिक रूप से संरक्षित है और यहां तक कि परिवार के सदस्य भी ऐसे वैवाहिक संबंधों पर आपत्ति नहीं कर सकते हैं.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के एक आदेश में जस्टिस तुषार राव गेडेला ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य होती है और हाईकोर्ट, एक संवैधानिक न्यायालय होने के नाते दंपत्ति के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा की उम्मीद करता है.

अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं का अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के तहत अमिट और संरक्षित है, जिसे किसी भी तरह से कमजोर नहीं किया जा सकता है.’

पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाली दंपत्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं के बीच विवाह और उनके बालिग होने के तथ्य के बारे में कोई संदेह नहीं है. कोई भी, यहां तक कि परिवार के सदस्य भी ऐसे संबंध या याचिकाकर्ताओं के बीच वैवाहिक संबंधों पर आपत्ति नहीं कर सकते.’

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध अप्रैल में शादी की थी और परिवार के सदस्यों, विशेषकर महिला की मां की धमकियों के बावजूद साथ रह रहे थे.

अदालत ने राज्य को दोनों याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा देने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनमें से किसी को भी, विशेष रूप से महिला के माता-पिता या परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान न हो और संबंधित बीट अधिकारी को समय-समय पर उनकी जांच करने के लिए कहा.

अदालत ने आदेश दिया, ‘यदि याचिकाकर्ता पार्टियों के बताए गए स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर चले गए हैं, तो जांच अधिकारी याचिकाकर्ताओं के आवासीय पते पर क्षेत्रीय अधिकारक्षेत्र वाले संबंधित थाने के उक्त एसएचओ को सूचित करेगा, जो वर्तमान आदेश का अक्षरशः अनुपालन करेगा.’

इसमें कहा गया है, ‘याचिकाकर्ताओं को आईओ को अपने वर्तमान आवासीय पते के साथ-साथ कामकाजी पते की भी जानकारी देनी होगी, जो किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को इसका खुलासा नहीं करेगा.’