सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री लाइक करना अपराध नहीं, शेयर करना है: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के एक व्यक्ति मोहम्मद इमरान क़ाज़ी के ख़िलाफ़ आईटी अधिनियम की धारा 67 और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की. यह केस इमरान द्वारा एक ग़ैर-क़ानूनी जमावड़े के लिए की गई अन्य व्यक्ति की पोस्ट लाइक करने पर दर्ज किया गया था.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के एक व्यक्ति मोहम्मद इमरान क़ाज़ी के ख़िलाफ़ आईटी अधिनियम की धारा 67 और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की. यह केस इमरान द्वारा एक ग़ैर-क़ानूनी जमावड़े के लिए की गई अन्य व्यक्ति की पोस्ट लाइक करने पर दर्ज किया गया था.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में माना कि सोशल मीडिया पर किसी आपत्तिजनक पोस्ट को लाइक करना कोई अपराध नहीं है, हालांकि, ऐसी सामग्री को साझा करने या दोबारा पोस्ट करने पर दंडात्मक परिणाम भुगतने होंगे.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने बुधवार को अपनी टिप्पणियों में कहा कि इस तरह के पोस्ट को साझा करना सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 67 के तहत ‘प्रसार’ (transmission) माना जाएगा और दंडनीय होगा.

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने आगरा के मोहम्मद इमरान काजी के खिलाफ आईटी अधिनियम की धारा 67 और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.

गैरकानूनी जमावड़े के लिए किसी अन्य व्यक्ति की पोस्ट को लाइक करने के कारण मोहम्मद इमरान काजी पर मुकदमा चल रहा था.

न्यायाधीश ने कहा, ‘मुझे ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली जो आवेदक को किसी आपत्तिजनक पोस्ट से जोड़ सके, क्योंकि आवेदक के फेसबुक और वॉट्सऐप एकाउंट पर कोई आपत्तिजनक पोस्ट उपलब्ध नहीं है. इसलिए, उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है.’

उन्होंने कहा कि यद्यपि आईटी अधिनियम के तहत आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करना एक अपराध है, वर्तमान मामले में आवेदक ने गैरकानूनी जमावड़े के लिए एक फरहान उस्मान की पोस्ट को लाइक किया है, लेकिन किसी पोस्ट को लाइक करना पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करने के बराबर नहीं होगा, इसलिए, केवल किसी पोस्ट को लाइक करने पर आईटी एक्ट की धारा 67 नहीं लगेगी.’

अदालत ने कहा, ‘वैसे भी आईटी अधिनियम की धारा 67 आपत्तिजनक सामग्री के लिए है, न कि भड़काऊ सामग्री के लिए.’

याचिकाकर्ता मोहम्मद इमरान काज़मी के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था और सोशल मीडिया पर ‘भड़काऊ’ संदेशों को लाइक करने के लिए उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप बिना अनुमति के जुलूस में शामिल होने के लिए मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोग इकट्ठा हुए थे.

सीजेएम, आगरा की अदालत ने आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए 30 जून, 2023 को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया.

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