मार्च 2019 के बाद से विलफुल डिफॉल्टर्स के बकाया क़र्ज़ में सौ करोड़ रुपये रोज़ाना की वृद्धि: रिपोर्ट

जानबूझकर कर्ज़ ने चुकाने के मामले में मार्च 2019 के बाद से प्रति दिन सौ करोड़ रुपये की भारी वृद्धि जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए उस दावे को पूरी तरह खारिज़ करती है, जहां उन्होंने कहा था यूपीए सरकार ने 'घोटालों' से बैंकिंग क्षेत्र को 'बर्बाद' कर दिया और उनकी सरकार ने इसके 'अच्छे वित्तीय स्वास्थ्य' को बहाल किया.

प्रतीकात्मक फोटो: अनस्प्लैश

जानबूझकर कर्ज़ ने चुकाने के मामले में मार्च 2019 के बाद से प्रति दिन सौ करोड़ रुपये की भारी वृद्धि जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए उस दावे को पूरी तरह खारिज़ करती है, जहां उन्होंने कहा था यूपीए सरकार ने ‘घोटालों’ से बैंकिंग क्षेत्र को ‘बर्बाद’ कर दिया और उनकी सरकार ने इसके ‘अच्छे वित्तीय स्वास्थ्य’ को बहाल किया.

प्रतीकात्मक फोटो: अनस्प्लैश

नई दिल्ली: मार्च 2019 से जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टर्स) पर बकाया राशि 100 करोड़ रुपये प्रतिदिन से अधिक की गति से बढ़ी है. इसका मतलब है कि तब से विलफुल डिफॉल्टर्स पर बकाया राशि कम से कम 1.2 ट्रिलियन या 1.2 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई है. बिजनेस स्टेंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में इस संबंध में जानकारी दी है.

जून 2023 तक कुल देय राशि 50 फीसदी से अधिक बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपये हो गई थी.

विलफुल डिफॉल्टर एक विशिष्ट शब्द है जिसका उपयोग उन उधारकर्ताओं के लिए किया जाता है जो कर्ज चुकाने की क्षमता होने के बावजूद भी कर्ज नहीं चुकाते हैं. इसमें छोटे कर्जदार शामिल नहीं होते हैं, जैसे कि संकटग्रस्त किसान.

द हिंदू के मुताबिक, मार्च 2019 के बाद से प्रति दिन 100 करोड़ रुपये की यह भारी वृद्धि 22 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए उस दावे को पूरी तरह खारिज करती है कि पिछली यूपीए सरकार ने ‘घोटालों’ से बैंकिंग क्षेत्र को ‘बर्बाद’ कर दिया था, जबकि उनकी सरकार ने इसके ‘अच्छे वित्तीय स्वास्थ्य’ की बहाली की है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट ट्रांसयूनियन सिबिल के आंकड़ों पर आधारित है. अखबार ने लिखा है कि डेटा को वित्तीय संस्थानों द्वारा अपडेट किया जाता है. आंकड़े नवीनतम उपलब्ध संख्याओं को दर्शाते हैं.

आगे कहा गया है, ‘यह राशि और भी अधिक हो सकती है क्योंकि कम से कम एक राष्ट्रीयकृत बैंक और एक निजी क्षेत्र के बैंक ने अभी तक जून के आंकड़े नहीं दिए हैं. कम से कम चार तिमाहियों से लगातार कुल राशि 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक बनी हुई है.’

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में प्रस्ताव दिया है कि ऋण के गैर-निष्पादित संपत्ति बनने के छह माह के भीतर जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों को विलफुल डिफॉल्टर्स घोषित किया जाना चाहिए. केंद्रीय बैंक ने अक्टूबर के अंत तक प्रस्ताव पर सार्वजनिक टिप्पणियां मांगी हैं.

निजी क्षेत्र के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों ने ऐसे ऋणों (जो वापस नहीं किए जा रहे हैं) में उनकी हिस्सेदारी में थोड़ी वृद्धि देखी है, लेकिन चिंता की बात यह है कि सार्वजनिक बैंकों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है.

जून 2023 में विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा न चुकाए गए कर्ज में उनकी हिस्सेदारी 77.5 फीसदी थी.

जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों पर दस राष्ट्रीयकृत बैंकों का 1.5 लाख करोड़ रुपये और बकाया है, जिसमें से भारतीय स्टेट बैंक के 80,000 करोड़ रुपये (जून माह तक) शामिल हैं. निजी क्षेत्र के बैंकों का बकाया कुल मिलाकर 53,500 करोड़ रुपये है.

‘सूट बूट की सरकार’ और भाईचारे का आरोप

केंद्र सरकार तब से दबाव में है जब से आरटीआई के जवाबों, संसदीय प्रश्नों और बैंक आंकड़ों से बड़े कर्जदारों पर भारी मात्रा में सार्वजनिक धन बकाया होने का खुलासा हुआ है.

क्रोनी कैपिटलिज्म इंडेक्स में भारत के खराब प्रदर्शन ने ‘सूट-बूट की सरकार‘ के विपक्षी अभियान को मजबूती दी है, जिसका अर्थ पूंजीपतियों की सरकार है.

द इकोनॉमिस्ट के ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ इंडेक्स में भारत 10वें नंबर पर है. सूचकांक के अनुसार, 2013 के बाद से भारत में ‘क्रोनी-पूंजीवादी क्षेत्रों’ की संपत्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद के 5% से बढ़कर 8% हो गई है.

इस साल के मानसून सत्र में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड द्वारा राज्यसभा में एक लिखित जवाब ने उस समय हंगामा खड़ा कर दिया जब उन्होंने खुलासा किया कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों के दौरान 10,57,326 करोड़ रुपये की कुल राशि बट्टे खाते में डाल दी है.

उन्होंने कहा था कि शीर्ष दस विलफुल डिफॉल्टर पर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के 40,825 करोड़ रुपये बकाया हैं.

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार, भारत के शीर्ष 50 ऋण बकाएदारों पर बैंकों और वित्तीय संस्थानों का 87,295 करोड़ रुपये बकाया है.

भगोड़े घोषित कारोबारी मेहुल चोकसी की गीतांजलि जेम्स सबसे बड़ी विलफुल डिफॉल्टर है, जिस पर बैंकों का 8,738 करोड़ रुपये बकाया है.

इस महीने बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जानबूझकर कर्ज न चुकाने के मामले बढ़ रहे हैं, क्योंकि बैंकों ने वित्त वर्ष 2023 में 9.26 लाख करोड़ रुपये की वसूली के लिए 36,150 एनपीए खातों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है.

सार्वजनिक धन को लेकर पहले भी इस सरकार अंगुली उठ चुकी हैं जब हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट के बाद अडानी समूह को लेकर विवाद छिड़ गया था. आरोप लगाए गए थे कि अडानी के शेयरों में 60 फीसदी की गिरावट के बावजूद भी एलआईसी से इसके शेयर खरीदने के लिए कहा गया था. एलआईसी ने आरोपों से इनकार किया था. अडानी समूह भी लगातार सभी आरोपों से इनकार करता रहा है.

राज्यवार: महाराष्ट्र और दिल्ली

रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2019 के बाद से महाराष्ट्र में जानबूझकर कर्ज न चुकाने के मामलों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई है.

महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात और तमिलनाडु जानबूझकर कर्ज ने चुकाने के मामले में शीर्ष पांच राज्य हैं. (पिछले वित्तीय वर्ष के अंत तक) कुल राशि का 70 फीसदी से अधिक इन्हीं राज्यों से है.

इस दौरान कुल बकाया राशि 60 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 1.3 लाख करोड़ रुपये हो गई.