संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के 33 राज्यों ने इंस्टाग्राम और फेसबुक की मूल कंपनी मेटा पर मुक़दमा दायर करते हुए आरोप लगाया है कि मेटा जानबूझकर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के ज़रिये युवाओं को इनकी लत लगा रहा है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं.
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के कई राज्यों ने इंस्टाग्राम और फेसबुक की मूल कंपनी मेटा पर मुकदमा दायर किया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि मेटा अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों की लत लगाने वाली प्रकृति के जरिये युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े संकट को बढ़ा रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले के लिए कोलोराडो और कैलिफोर्निया ने अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में में 33 राज्यों द्वारा दायर एक संयुक्त मुकदमे की अगुवाई की है. उनकी शिकायत में कहा गया है कि मेटा- जो फेसबुक, इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप और मैसेंजर का मालिक है- ने गलत तरीके से बच्चों को फंसाकर और यूजर्स को इसके प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा के बारे में गुमराह करके उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का उल्लंघन किया है.
बताया गया है कि कोलंबिया जिले और आठ अन्य राज्यों ने मंगलवार को समान दावों के साथ मेटा के खिलाफ अलग-अलग मुकदमे दायर किए हैं.
उल्लेखनीय है कि दो साल पहले मेटा की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हौगेन ने ह्विसिलब्लोअर के तौर पर सामने आकर आरोप लगाया गया था कि कंपनी जानबूझकर मुनाफा कमाने के लिए कमजोर युवाओं को शिकार बना रही थी. उन्होंने इंस्टाग्राम के एक आंतरिक अध्ययन का खुलासा किया था जिसमें पाया गया कि ऐप का उपयोग करने वाली कई युवा लड़कियां ‘बॉडी-इमेज’ (वे शारीरिक रूप से कैसे दिखती हैं) से जुड़े मसलों को लेकर अवसाद (डिप्रेशन) और एंग्जायटी का सामना कर रही थीं.
मुक़दमे में क्या कहा गया है?
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केस का व्यापक हिस्सा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन सामने आई जानकारी में ‘लाइक, अलर्ट, और फिल्टर’ का खासतौर पर जिक्र करते हुए कहा गया है कि यह फीचर ‘युवा यूज़र्स में बॉडी डिस्मॉर्फिया को बढ़ाते हैं.’ बॉडी डिस्मॉर्फिया से आशय उस स्थिति से है, जहां कोई व्यक्ति अपने अपीयरेंस यानी रंग-रूप, शारीरिक बनावट में ख़ामियों को तलाशने में बहुत वक़्त बिताता है और ये तथाकथित खामी दूसरों को नजर भी नहीं आती हैं.
शिकायत में कहा गया है, ‘मेटा ने युवाओं और किशोरों को लुभाने, एंगेज करने और अंततः फंसाने के लिए शक्तिशाली और अभूतपूर्व टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है. इसने उन तरीकों को छुपाया है जिनसे ये प्लेटफ़ॉर्म सबसे कमजोर वर्ग: किशोरों और बच्चों का शोषण करते हैं और फायदा उठाते हैं. इसने इन प्लेटफॉर्मों के जरिये देश के युवाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को होने वाले व्यापक नुकसान को नजरअंदाज किया है.
मेटा का इनकार
उधर, मुक़दमे के जवाब में जारी बयान में मेटा की प्रवक्ता लिज़ा क्रेंशॉ ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि वे किशोरों को ऑनलाइन सुरक्षित, सकारात्मक अनुभव देने की ज़िम्मेदारी समझते हैं और किशोरों और उनके परिवारों के लिए पहले ही 30 से अधिक टूल पेश कर चुके हैं.
उन्होंने जोड़ा, ‘हम इस बात से निराश हैं कि किशोरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कई ऐप्स के लिए स्पष्ट, उम्र के अनुरूप मानक बनाने के लिए इस उद्योग की कंपनियों के साथ सक्रिय रूप से काम करने के बजाय अटॉर्नी जनरल ने यह रास्ता चुना है.’
सोशल मीडिया से कैसे प्रभावित होता है मानसिक स्वास्थ्य
प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक सर्वे के नतीजे, जो अप्रैल 2021 में अमेरिका में प्रकाशित हुए थे, के अनुसार, 18से 29 वर्ष के आयुवर्ग के अधिकांश लोगों ने कहा था कि वे इंस्टाग्राम (71 प्रतिशत) या स्नैपचैट (65 प्रतिशत) इस्तेमाल करते हैं. इस आयु वर्ग के आधे प्रतिभागियों ने बताया था कि वे टिकटॉक का उपयोग भी करते हैं.
ऐसे कई शोध हैं जिनसे पता चला है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल यूजर्स पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. इस साल की शुरुआत में बिहेवियर एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने पाया था कि पैसिव सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल एंग्जायटी, अवसाद और तनाव के बढ़ते स्तर से जुड़ा है.
इस पेपर की एक लेखक ने प्रेस में जारी किए गए बयान में कहा था, ‘यह निष्कर्ष सार्वजनिक कंटेंट शेयरिंग जैसे सक्रिय नॉन-सोशल मीडिया इस्तेमाल के सकारात्मक पहलुओं को बताते हैं, जहां सीधे सामाजिक संपर्क के बगैर यूजर्स को उनके पोस्ट पर लाइक और सकारात्मक कमेंट्स जैसी प्रतिक्रिया मिलती है. दूसरे शब्दों में, सक्रिय नॉन-सोशल मीडिया यूजर्स ऑनलाइन अन्य लोगों के साथ लगातार बने रहने या बातचीत शुरू करने के अतिरिक्त दबाव को महसूस नहीं करते, जो मानसिक तौर पर थका देने वाला हो सकता है.’
फ्रांसिस हौगेन ने इंस्टाग्राम के प्रभाव पर क्या बताया था
अमेरिकी राज्यों द्वारा दायर मुक़दमे में हौगेन का कांग्रेस को दिए गए बयान को उद्धृत किया गया है. 2021 में उन्होंने मेटा की नीतियों को लेकर कुछ आंतरिक दस्तावेज़ उजागर किए थे. इनमें से एक था, इंस्टाग्राम का आंतरिक सर्वे, जो उसने इस ऐप के अमेरिका और ब्रिटेन में किशोरों पर प्रभाव पता लगाने के इरादे से किया था.
सर्वे के निष्कर्षों में से एक ‘बत्तीस प्रतिशत किशोरवय लड़कियों ने कहा था कि जब उन्हें अपने शरीर के बारे में बुरा महसूस होता है, तो इंस्टाग्राम इसे और बदतर बना देता है.’ इसमें यह भी पाया गया था कि किशोर एंग्जायटी और अवसाद की बढ़ती दर के लिए इंस्टाग्राम के इस्तेमाल को भी जिम्मेदार मानते हैं.
सर्वेक्षण के अनुसार, एक प्रेजेंटेशन से यह भी पता चला था कि 13 प्रतिशत ब्रिटिश और छह प्रतिशत अमेरिकी यूज़र्स ने अपनी जान लेने की की इच्छा को इंस्टाग्राम से जोड़ा था.
कैसे शुरू हुआ था विरोध
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, अमेरिकी राज्यों ने कई साल पहले साइबरबुलिंग (cyberbullying) और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर बढ़ती चिंताओं के मद्देनज़र युवाओं पर इंस्टाग्राम के संभावित हानिकारक प्रभावों की जांच शुरू की थी.
2021 की शुरुआत में फेसबुक ने घोषणा की थी कि वह अपने लोकप्रिय इंस्टाग्राम ऐप का एक संस्करण ‘इंस्टाग्राम किड्स’ डेवलप करने की योजना बना रहा है, जिसका लक्ष्य 13 वर्ष से कम उम्र के यूजर्स होंगे.
इस खबर को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और 40 से अधिक राज्यों के अटॉर्नी जनरल के एक समूह ने कंपनी के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को एक पत्र लिखकर इंस्टाग्राम किड्स की योजना ख़ारिज करने का आग्रह करते हुए कहा कि फेसबुक ‘ऐतिहासिक रूप से अपने प्लेटफॉर्मों पर बच्चों की भला करने में असफल रहा है.’
यह चिंताएं उसी साल सितंबर में हौगेन द्वारा बच्चों/युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर किए गए खुलासों के बाद और बढ़ गईं, जहां उन्होंने बताया था कि कंपनी इस बात से वाकिफ़ थी कि उसके प्लेटफॉर्म युवाओं के लिए खतरा थे. इसके बाद फेसबुक ने ऐलान किया था कि यह ‘इंस्टाग्राम किड्स’ को डेवलप करना रोक रहा है.
इसके बाद नवंबर 2021 में कोलोराडो, मैसाच्युसेट्स और न्यू हैम्पशायर के अटॉर्नी जनरल के एक समूह ने युवा लोगों पर इंस्टाग्राम के प्रभाव और संभावित हानिकारक असर की एक संयुक्त जांच करने की घोषणा की थी.