गाज़ा में युद्धविराम पर यूएन प्रस्ताव का मोदी सरकार द्वारा समर्थन न करने की विपक्ष ने निंदा की

संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए प्रस्ताव में गाज़ा में मानवीय आधार पर संघर्ष विराम का आह्वान करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के महत्व पर ज़ोर दिया गया था. इसमें बंधक बनाए गए सभी नागरिकों की बिना शर्त रिहाई और गाज़ा को ज़रूरी रसद सामग्री की निर्बाध आपूर्ति का आग्रह किया था. भारत प्रस्ताव पर वोटिंग में शामिल नहीं हुआ था.

इजरायल और हमास के बीच छिड़े युद्ध की कुछ तस्वीरें. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर वीडियोग्रैब)

संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए प्रस्ताव में गाज़ा में मानवीय आधार पर संघर्ष विराम का आह्वान करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के महत्व पर ज़ोर दिया गया था. इसमें बंधक बनाए गए सभी नागरिकों की बिना शर्त रिहाई और गाज़ा को ज़रूरी रसद सामग्री की निर्बाध आपूर्ति का आग्रह किया था. भारत प्रस्ताव पर वोटिंग में शामिल नहीं हुआ था.

(बाएं से) लालू प्रसाद यादव, प्रियंका गांधी वाड्रा, केसी वेणुगोपाल और सीताराम येचुरी. (फोटो साभार: विकिपीडिया और एक्स)

नई दिल्ली: कई विपक्षी नेताओं ने शनिवार (28 अक्टूबर) को इजरायल-हमास संघर्ष में ‘तत्काल संघर्ष विराम’ के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया है.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने गाजा में युद्धविराम के लिए हुए मतदान से दूर रहने के भारत के फैसले पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘हमारा देश अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर स्थापित हुआ था, ये वो सिद्धांत हैं जिनके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया था. ये सिद्धांत संविधान का आधार बनाते हैं, जो हमारी राष्ट्रीयता को परिभाषित करते हैं. वे भारत के उस नैतिक साहस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य के रूप में इसके कार्यों का मार्गदर्शन किया.’

उन्होंने सोशल साइट एक्स (ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, ‘फिलीस्तीन में मानवता के हर सिद्धांत की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं; लाखों लोगों के लिए भोजन, पानी, चिकित्सा आपूर्ति, संचार और बिजली काट दी गई है और फिलीस्तीन में हजारों महिला-पुरुष और बच्चों का जीवन छीना जा रहा है, इसलिए इस पर कोई रुख अख्तियार न करना और चुपचाप देखते रहना हमारे देश के उन सिद्धांतों के खिलाफ है जिन पर हमारा देश एक राष्ट्र के रूप में हमेशा खड़ा रहा है.’

कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘केवल एक निर्दयी और फासीवादी सरकार ही (ऐसे हालात में युद्धविराम का समर्थन करने से) अनुपस्थित रहेगी.’

उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘जब गाजा के निर्दोष नागरिकों पर हवाई हमले और जमीनी हमले किए जा रहे थे, तो युद्धविराम का समर्थन करना भारत का नैतिक कर्तव्य था.’

उन्होंने कहा, ‘केवल एक निर्दयी और फासीवादी सरकार ही वोटिंग से दूर रहेगी. संयुक्त राष्ट्र में हमारे वोट से वास्तव में शर्म आती है.’

राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी सरकार पर निशाना साधा और कहा, ‘यह पहली बार है, जब भारत ने मानवता, युद्ध विराम और विश्व शांति के विषय पर सबसे आगे रहने के बजाय ढुलमुल रवैया अपनाया. केंद्र सरकार भारत की विदेश नीति के साथ खिलवाड़ बंद करे. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील नीति हमारी विदेश नीति का ध्वज होना चाहिए.’

जहां विपक्षी नेताओं ने इस मसले पर व्यक्तिगत राय रखी है, वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)-सीपीआई ने एक संयुक्त बयान जारी कर तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया है.

‘गाजा में नरसंहारात्मक आक्रामकता को रोकें’ शीर्षक वाले संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘भारी समर्थन के साथ अपनाए गए प्रस्ताव पर भारत का अनुपस्थित रहना यह दिखाता है कि किस हद तक मोदी सरकार के कार्यों द्वारा भारतीय विदेश नीति अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी होने और अमेरिका-इजरायल-भारत संधि को मजबूत करने के रूप में ढाली जा रही है. यह फिलीस्तीन समस्या पर भारत के लंबे समर्थन को निष्फल करता है.’

इस पर सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई महासचिव डी. राजा ने हस्ताक्षर किए हैं.

इसमें कहा गया है, ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा के भारी जनादेश का सम्मान करते हुए तत्काल युद्धविराम होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को फिलीस्तीन की राजधानी पूर्वी यरुशलम के साथ 1967 से पहले की सीमाओं वाले दो-राज्यीय समाधान के लिए सुरक्षा परिषद के आदेश को लागू करने के लिए खुद को फिर से सक्रिय करना होगा.’

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करने के महत्व पर भी जोर दिया गया और सभी बंधक नागरिकों की बिना शर्त रिहाई के साथ-साथ गाजा को आवश्यक रसद सामग्री की निर्बाध आपूर्ति का आग्रह किया गया था.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को 120 सकारात्मक वोट मिले, जबकि इजरायल, अमेरिका, हंगरी और पांच प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों समेत केवल 14 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया. भारत उन 45 देशों में शामिल था – जिनमें से अधिकांश पश्चिमी सैन्य गुट से थे – जिन्होंने शुक्रवार (27 अक्टूबर) दोपहर न्यूयॉर्क में यूएनजीए के आपातकालीन सत्र में मतदान में भाग न लेने का फैसला किया.

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