साक्षात्कार: मध्य प्रदेश में शिक्षा जगत के बहुचर्चित व्यापमंं घोटाले का खुलासा करने वालों में से एक आरटीआई कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी दशक भर से जारी घोटाले की जांच पर कहते हैं कि केंद्र और राज्य में भाजपा सरकारें होने के चलते सीबीआई दबाव में काम कर रही है. जब कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई, तो उसने भी घोटाले की जांच का चुनावी वादा पूरा नहीं किया.
ग्वालियर: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच भ्रष्टाचार का मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के ख़िलाफ़ विपक्षी दल कांग्रेस कमीशनखोरी और घोटालों का आरोप लगाकर लगातार हमलावर बना हुआ है. हालांकि, मध्य प्रदेश में जब भी घोटालों की बात आती है तो ‘व्यापमंं’ का नाम स्वत: ही ज़हन में उठ खड़ा होता है. कांग्रेस ने भी अपने वचन-पत्र में विशेष तौर पर व्यापमं घोटाले का जिक्र करते हुए कहा है कि इसकी जांच नए सिरे से प्राथमिकता के साथ कराई जाएगी.
इस बीच, देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में शिक्षा जगत का सबसे बड़ा घोटाला ठहराए गए व्यापमं घोटाले की जांच को चलते हुए क़रीब दशक भर का समय हो गया है. पहले जांच स्पेशल टास्क फोर्स के पास थी, फिर मामले में रहस्यमयी परिस्थितियों में हुईं दर्जनों संदिग्ध मौतों के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई. घोटाले में अफसर, अधिकारी और मंत्रियों समेत कई रसूखदारों के नाम भी लिप्त पाए गए, लेकिन वे एक के बाद एक बरी होते गए.
इस बीच, राज्य में सरकार भी बदली, लेकिन कांग्रेस ने भी अपना वह चुनावी वादा नहीं निभाया जिसमें कहा गया था कि सरकार बनने पर एक आयोग गठित करके व्यापमंं घोटाले की जांच कराई जाएगी.
व्यापमंं घोटाले का ख़ुलासा करने वालों में ग्वालियर के आरटीआई कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी भी शामिल थे. द वायर ने आशीष से दशक भर बीतने के बाद आज व्यापमं घोटाले में जांच की स्थिति और न्याय मिलने की संभावना को लेकर बात की:
व्यापमंं घोटाले को सामने आए क़रीब दशक भर का समय हो गया है. आज जांच को कहां पाते हैं? क्या उन लोगों को न्याय मिल सका है जो सीधे तौर पर इससे प्रभावित हुए?
2014 में इस घोटाले की जांच ने तेज रफ्तार पकड़ी थी. 2015 आते-आते ये घोटाला देश ही नहीं, पूरे विश्वपटल पर मध्य प्रदेश के लिए काला धब्बा बन गया. उस पूरे कालखंड में देखेंगे तो सरकार और सरकार में बैठे लोग, चाहे वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या न्यायपालिका में बैठे लोग हों, सभी घोटाले की जांच को दबाने में और घोटाले के संबंध में हो रही त्वरित कार्रवाइयों- जैसे कि घोटालेबाजों को पकड़ने और जेल भेजने की कार्रवाईयां- को रोकने के लिए एक नेक्सस (गठजोड़) बनाकर काम करने लग गए थे. इसके बाद, जुलाई 2015 में पूरा मामला सीबीआई को ट्रांसफर हुआ. सीबीआई घोटाले को दबाने के मकसद से मामले को लंबा खींचकर घोटालेबाजों को बचाने में कामयाब हो गई.
व्यापमंं घोटाले में कई रसूखदारों के नाम सामने आए थे, जिनमें राज्य सरकार के मंत्री और नौकरशाह तक शामिल थे, क्या सीबीआई उन लोगों को न्याय के कटघरे में खड़ाकर सज़ा दिला पाई है?
बड़े मामलों की बात करें, तो व्यापमंं घोटाले के मुख्य सरगना डॉक्टर दीपक यादव, जो पूर्व डीआईजी और वर्तमान भाजपा नेता हरिसिंह यादव के दामाद हैं, का मामला; मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रिश्तेदार और किरार समाज के बड़े नेता माने जाने वाले गुलाब सिंह किरार का मामला; या और भी कई सारे बड़े, रसूखदार और राजनीतिक लोग हैं जिनके नाम इस पूरे मामले में सामने आए. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के रिश्तेदारों का भी नाम सामने आया. भाजपा के दिवंगत दिग्गज नेता शीतला सहाय के दामाद डॉ. बीआर श्रीवास्तव का भी नाम सामने आया.
ऐसे दर्जनों-सैकड़ों बड़े नाम सामने आए, लेकिन जब इन मामलों की जांच सीबीआई को ट्रांसफर हुई तो सीबीआई द्वारा न तो कोई साक्ष्य संकलन किया गया, न कोई तकनीकी विवेचना की गई और न ही ऐसी विवेचना के आधार पर किसी विशेषज्ञ की राय ली गई. मतलब कि बड़े आरोपियों को बचाने के जो भी तरीके हो सकते थे, उन्हे अपनाकर रसूखदारों को बचाने की दिशा में सीबीआई ने काम किया.
व्यापमंं से जुड़े मामलों में समय-समय पर आरोपियों को सज़ा सुनाए जाने की भी ख़बरें आती हैं. जब रसूखदार आरोपी बचे हुए हैं तो सज़ा किन्हें मिल रही है, कौन लोग हैं ये?
जांच एजेंसी के अधिकारी आपसे और हमसे कई गुना अधिक होशियार होते हैं. वह जानते हैं कि सभी मामलों में आरोपी तो बरी नहीं किए जा सकते. इसलिए जिन कुछ मामलों में लोगों को सज़ा हो रही है, उनमें ‘चूज एंड पिक (Choose and Pick) का तरीका अपनाया गया है. जहां आर्थिक-राजनीतिक लाभ जुड़े होते हैं, उन मामलों में आरोपियों को बचाने की दिशा में काम किया जाता है. जहां आर्थिक-राजनीतिक लाभ पूरे नहीं होते, वहां आरोपियों को सज़ा कराई जाती है.’
केंद्रीय जांच एजेंसियों पर ऐसे आरोप लगातार लगते रहे हैं कि वे केंद्र सरकार के इशारे पर काम करती हैं. इस दौरान केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकारें रही हैं, तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि केंद्र की भाजपा सरकार के दबाव में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार को बचाने का काम सीबीआई ने किया है?
निश्चित तौर पर ऐसा ही है. यह तो स्वाभाविक है कि कोई जब किसी के अधीनस्थ होता है तो वह अपने आकाओं के निर्देशों की अवहेलना कर नहीं पाएगा, फिर वह निर्देश चाहे आधिकारिक हों या अनाधिकारिक… और व्यापमंं तो एक ऐसा घोटाला है जिसकी जांच के नाम पर भी मध्य प्रदेश में घोटाला हुआ है. इसका एक उदाहरण यह है कि जब 2013-14 में व्यापमंं घोटाले की शुरुआती जांच चल रही थी, तब घोटाले से जुड़े फर्ज़ी मुन्ना भाइयों (परीक्षार्थियों) की तकनीकी रूप से जांच कराए जाने के लिए सागर की फोरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) में उनके फोटोग्राफ और हस्ताक्षर मिलान के लिए भेजे गए थे. लैब अधिकारियों ने ‘बेनेफिट ऑफ डाउट (संदेह का लाभ)’ के आधार पर कई लोगों को बचा लिया.
तब मैंने अपने स्तर पर विस्तृत जांच करके स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीफ) को शिकायत की. शिकायत पर जांच के दौरान एसटीएफ ने उन फोटोग्राफ-हस्ताक्षर पर गांधीनगर फोरेंसिक लैब से सेकंड ओपिनियन लिया… मैंने भी कुछ मामलों में देश की विभिन्न प्राइवेट लैब में नमूने भेजे… इन सबके निष्कर्ष सागर एफएसएल के निष्कर्षों से उलट थे. सारे निष्कर्ष कहते थे कि मिलान किए गए फोटोग्राफ अलग-अलग व्यक्तियों के हैं और फर्जीवाड़ा हुआ है. एसटीएफ अधिकारियों ने इस बात को माना कि मेरे द्वारा सागर एफएसएल पर लगाए गए ‘व्यापमंं की जांच में भ्रष्टाचार’ के आरोप प्रमाणित होते हैं.
इसके बावजूद भी, 2014 से आज 2023 हो गया लेकिन मेरे और अन्य कई लोगों द्वारा की गईं ऐसी सैकड़ों शिकायतें अब तक लंबित हैं. एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई हैं, जबकि जांच के दौरान अगर शिकायत सही पाई जाती है तो तत्काल एफआईआर दर्ज होना चाहिए.
ऐसा हाईप्रोफाइल रसूखदार लोगों को बचाने के लिए हो रहा है. जैसे कि मध्य प्रदेश सरकार में वर्तमान नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह 2009-10 में सांसद हुआ करते थे. जांच अधिकारियों ने उनके सांसद प्रतिनिधि की संलिप्तता का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में करते हुए कहा था कि व्यापमंं घोटाले में सांसद और सांसद प्रतिनिधि भी शामिल थे. 2014 में इस जांच के समय भूपेंद्र सिंह मध्य प्रदेश के गृहमंत्री थे. ऐसे ही कई हाईप्रोफाइल लोगों को बचाने के लिए सीबीआई द्वारा पूरे मामले को लगातार लटकाए रखा गया है.
पहले व्यापमंं घोटाले की जांच एसटीएफ कर रही थी. आपने और अन्य ह्विसिलब्लोअर्स जैसे डॉ. आनंद राय और पारस सकलेचा ने जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की थी. अब सीबीआई की जांच पर भी सवाल उठ रहे हैं तो प्रश्न खड़ा होता है कि इस घोटाले में न्याय कैसे मिलेगा?
किसी भी लड़ाई में जब एक पक्ष कमज़ोर होता है तो निश्चित तौर पर सामने वाला पक्ष मजबूत होकर हावी होता जाएगा. जब 2014-15 में यह लड़ाई अपने चरम पर थी, उस समय कांग्रेसी लोग, ह्विसिलब्लोअर्स, मीडिया सबने एकजुट होकर घोटाले को प्रमुखता से उठाया था. नतीजतन व्यापमंं घोटाले की चर्चा विश्वपटल पर हुई और इसे मध्य प्रदेश पर एक काले धब्बे के रूप में देखा गया. लेकिन कांग्रेस का एजेंडा था, इस घोटाले/भ्रष्टाचार को भुनाकर सरकार बनाना. एजेंडा पूरा होते ही उसने इस घोटाले को नज़रअंदाज कर दिया और कांग्रेस के लोग सत्ता का लाभ उठाकर अपने-अपने निजी एजेंडे पूरे करने में लग गए.
ह्विसिलब्लोअर्स भी अपने-अपने जीवन के काम, व्यस्तताओं या परेशानियों के कारण दूसरे ट्रैक पर चले गए. मैं पहले भी इस मामले में अदालत में लड़ रहा था, आज भी लड़ रहा हूं और आगे भी लड़ता रहूंगा क्योंकि जिस लड़ाई को शुरू किया है उसको अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचाने की अंतिम कोशिश करनी चाहिए, फिर नतीजा जो भी हो वह न्यायपालिका और सिस्टम पर निर्भर करता है, लेकिन न्याय पाने की अपनी कोशिश जारी रखनी चाहिए.
आपका कहना है कि व्यापमंं घोटाले को उठाने वाले लोग धीरे-धीरे अपने निजी जीवन की व्यस्तताओं के चलते इस मुद्दे पर बने नहीं रह सके…
निजी जीवन की व्यस्तताओं के अलावा, सरकार योजनाबद्ध तरीके से इस घोटाले की जांच को लंबा खींच रही है और जो इस घोटाले को उठाने वाले लोग हैं उन्हें अन्य चीजों में उलझाकर, परेशान करके कहीं न कहीं जांच को प्रभावित कर रही है.
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने एक आरोप-पत्र जारी किया था, जिसमें अन्य घोटालों के साथ-साथ व्यापमंं घोटाले का भी जिक्र था. पार्टी ने कहा था कि सरकार बनने पर भाजपा शासन में हुए घोटालों की जांच कराई जाएगी. क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद वादाख़िलाफ़ी की?
चुनावी कैंपेन के दौरान कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कई बड़ी-बड़ी बातें कीं. पार्टी के घोषणा-पत्र में एक महत्वपूर्ण बात यह भी शामिल थी कि मध्य प्रदेश में सरकार बनाने पर भाजपा सरकार में हुए घोटालों की जांच के लिए आयोग बनाया जाएगा और समयसीमा में जांच करके घोटालेबाजों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सरकार में आने पर फिर चाहे मुख्यमंत्री कमलनाथ रहे हों या गृहमंत्री या कांग्रेस के अन्य नेता रहे हों, किसी ने भी इस मामले में रुचि नहीं दिखाई. व्यापमंं के ऐसे कई मामले थे जो राज्य सरकार की एसटीएफ के पास लंबित थे, जिनमें न्यायपालिका या अधिकार क्षेत्र की ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी जो कांग्रेस सरकार को कार्रवाई करने से रोकती.
जब इस मामले में हमने कांग्रेसियों से चर्चा की तो सिर्फ आश्वासन मिला. वे सब 15 महीने की सरकार में अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति हेतु दौड़-भाग करते रहे. इस दौरान, फिर चाहे व्यापमंं घोटाले का मुद्दा हो या उस दौरान उठा एक हनी ट्रैप का मुद्दा हो या सिंहस्थ घोटाले की बात हो, कमलनाथ सरकार ने किसी में भी रुचि नहीं दिखाई. सिंहस्थ घोटाले में तो राज्य की विधानसभा के अंदर कांग्रेस ने भाजपा को क्लीनचिट देने का काम किया.
मेरा अनुभव यह रहा है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, राजनीतिक दल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए जनता के बीच जाकर भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हैं, जब सत्ता उन्हें मिल जाती हैं तो भ्रष्टाचार उनके लिए कोई मुद्दा नहीं होता.
वर्तमान में कांग्रेस के वचन-पत्र (घोषणा-पत्र) की बात करें या उसके चुनावी कैंपेन की, पार्टी नेता लगातार भाजपा की शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और घोटालों के आरोप लगा रहे हैं. सरकार बनाने पर एक बार फिर से घोटालों की जांच की बात कर रहे हैं. क्या उनसे उम्मीद रखनी चाहिए कि उनकी सरकार बनने पर भाजपा सरकार के दौरान हुए घोटालों पर कोई कार्रवाई होगी?
उम्मीद ही हमेशा निराशा का कारण बनती है. 2018 में इस बात की उम्मीद थी कि कांग्रेस सरकार में आएगी तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई होगी और भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ जिन मुद्दों को लेकर वे लड़ाई लड़ रहे हैं, उसमें तेजी आएगी. लेकिन ऐसा कुछ देखने में आया नहीं. इसलिए हम अपनी व्यक्तिगत लड़ाई जारी रख सकते हैं, फिर नतीजे चाहे जो भी निकलें. लेकिन, कोई व्यक्ति विशेष मामले में रुचि लेकर कार्रवाई करेगा, ऐसी उम्मीद रखना खुद को धोखे में रखने जैसा है.
व्यापमंं में जब घोटाला सामने आया तो उसका नाम बदलकर ‘प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड’ कर दिया गया. उसके बाद भी शायद तीसरी बार उसका नाम बदला गया. क्या नाम बदलने के बाद उसकी कार्यप्रणाली में कोई सुधार आया है?
मध्य प्रदेश के परिदृश्य में आप इसे ऐसे देखिए कि जैसे कोई चोर हमने चोरी करते हुए पकड़ लिया गया और वह चोर न्यायालय में आकर कहने लगा कि अगली बार चोरी नहीं करूंगा, चोरी के कई मामलों में मेरा नाम घनश्याम था, अब अपना नाम बदलकर भगवान के नाम पर ‘राम’ रख लेता हूं. लेकिन नाम बदलने से वह चोरी नहीं छोड़ता.
तो, नाम लगातार बदलने-रखने से कुछ नहीं होता, जब तक सत्ता में बैठे लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक इस देश का और प्रदेश का भविष्य नहीं बदलेगा. मुझे तो लगता है कि इन्हें मध्य प्रदेश का भी नाम बदलकर ‘कैपिटल ऑफ करप्शन स्टेट’ मतलब कि ‘भ्रष्टाचार की राजधानी’ रख देना चाहिए. देश में अगर वर्तमान में मध्य प्रदेश को भ्रष्टाचार की राजधानी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
बीते दिनों मध्य प्रदेश में शिक्षा जगत के और भी घोटाले सामने आए जिन्हें व्यापमंं-2 और व्यापमंं-3 नाम दिया गया, जैसे कि कृषि विस्तार अधिकारी परीक्षा घोटाला, पटवारी भर्ती परीक्षा घोटाला. मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) की बात करें तो लगातार अदालत में इससे जुड़ी याचिकाएं लगती रहती हैं, परीक्षा परिणाम रोक दिए जाते हैं. राज्य में भर्ती परीक्षाओं के साथ आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि भाजपा सरकार युवाओं को रोजगार देने के बड़े-बड़े वादे करती है… पटवारी भर्ती परीक्षा को तो रद्द तक कर दिया गया.
इसकी क्रोनोलॉजी समझें तो यह जनता को बेवकूफ बनाने का माध्यम है. जैसे कि जनता के बाच घोषणा कर कि हम इतनी भर्तियां निकालेंगे. फिर भर्ती निकालीं और बेरोजगार युवाओं को फॉर्म भरवाकर लूटा गया. लाखों-करोड़ों रुपये सरकारी कोष में आ गए और इन्हीं भर्तियों में अभ्यर्थियों को चयन का लालच दिखाकर नेताओं और अधिकारियों रिश्वत भी खा ली. दोनों का फायदा हुआ, सरकारी खजाना और व्यक्तिगत खजाना दोनों भर गए गए.
इसके बाद अगर जांच की बात होती है या कोई मुद्दा ज्वलंत बन जाता है तो मामले को लटका दिया जाता है. नतीजतन, 2018-20 के बाद से राज्य में जितनी भी भर्ती परीक्षाएं हुईं, उनमें आज तक अंतिम परिणाम नहीं आया, कोई नियुक्ति नहीं हुई. लाखों-करोड़ों युवा भर्ती के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपया सरकारी राजकोष में दे चुके हैं और साथ ही भ्रष्टाचार के नाम पर अधिकारियों और नेताओं की जेबों में भर चुके हैं. अंतत: परिणाम यही निकलता है कि बेरोजगार युवा बार-बार ठगा गया है.
हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 50,000 भर्तियों की घोषणा की थी…
वह जनता को ठगने के लिए हैं. भर्तियां निकालकर उन्होंने जनता को बता दिया कि हमने इतनी सारी नौकरियां निकाली हैं, लेकिन कोई भर्ती होता नहीं है. वापस वही भर्तियां अगली घोषणा के लिए खाली होती हैं.
एसटीफ ने व्यापमंं से जुड़े 200 से अधिक मामले सीबीआई को ट्रांसफर किए थे. कुछ साल पहले तक ये स्थिति थी कि सीबीआई ने उनमें से कई पर जांच तक शुरू नहीं की थी. वर्तमान में क्या स्थिति है, क्या सभी ट्रांसफर मामलों पर जांच शुरू हो पाई है?
बहुत सारे मामलों में जांच शुरू हुई, लेकिन बहुत सारे मामलों में जांच के नाम पर एसटीफ से प्राप्त जांच रिपोर्ट को ही जस की तस आगे भेज दिया गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था शून्य (नए सिरे से) से जांच शुरू करना. लेकिन बड़े आरोपियों को बचाने के लिए सैकड़ों मामलों में ऐसा नहीं किया गया. जिन मामलों में कुछ कार्रवाई की भी गई, तो वहां आरोपियों को सजा दिलाने के लिए सीबीआई अधिकारियों और अभियोजन पक्ष द्वारा मामले को अदालत में सही ढंग से नहीं रखा गया.
मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि बड़े मामलों में न्यायालय ने भी अपनी निहित शक्तियों का इस्तेमाल कर न्याय देने का प्रयास नहीं किया. व्यवस्था की मिलीभगत आरोपियों को बचाने का काम रही है. इस गठबंधन में न्यायपालिका, जांच एजेसियां और राजनीतिक लोग शामिल हैं.
व्यापमंं घोटाले में क़रीब आधा सैकड़ा लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले भी सामने आए थे. उनकी जांच भी सीबीआई को सौंपी गई. क्या उन मामलों में कोई निष्कर्ष निकलकर सामने आया है?
जिन लोगों की मौत हुई, उनके परिवारों ने एक समय बाद केस को फॉलो करना छोड़ दिया. सीबीआई ने भी इन मामलों को लटकाए रखा और आज तक कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला. पत्रकार अक्षय सिंह की ही बात करें, तो वह अपनी मौत से कुछ क्षण पहले तक मेरे संपर्क में थे और बिल्कुल फिट थे. उनकी मौत 101 फीसदी हत्या थी. लेकिन आज तक उस हत्या का कौन और कैसे दोषी है, साबित नहीं किया जा सका.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. डीके साकल्ले ने अपने ही घर में खुद पर केरोसिन डालकर जान दे दी थी. जरा सोचिए कि इतने जानकार आदमी को ऐसी दर्दनाक मौत चुनने की क्या जरूरत, कई सारे ज़हर और तकनीकों की उन्हें जानकारी रही होगी, वह खुद को एक झटके में खत्म कर सकते थे. वहीं, उनका घर केजुअल्टी विभाग से 100 मीटर की दूरी पर था, जबकि 90 फीसदी तक जला हुआ व्यक्ति भी अस्पताल पहुंच जाता है और उसके बयान भी हो जाते हैं. यहां तो 100 मीटर की दूरी थी बस.
गौरतलब है कि कोई व्यक्ति खुद को आग लगाता है तो आग लगने के बा यहां-वहां दौड़ता-भागता है. घर में आसपास कई जगह आग लगती है. ऐसा कुछ नहीं पाया गया. क्या यह संदिग्ध परिस्थितियों में मौत नहीं दिखाता? लेकिन सीबीआई को ये सब नहीं दिखता.
ऐसी ख़बरें सामने आई थीं कि व्यापमंं घोटाले में रसूखदारों से जुड़े मामले सीबीआई हारती गई और उसने या सरकार ने इन मामलों में आगे कोई अपील भी नहीं की. इन बातों में कितनी सच्चाई है?
यह बात सौ फीसदी सच है. ऐसे एक नहीं अनेक मामले हैं. हाल ही में डॉ. दीपक यादव से जुड़ा केस सीबीआई हारी है. यह केस वह अपनी गलतियों, जांच अधिकारियों की जानबूझकर की गई लापरवाही और कोताही की वजह से हारी, वरना दस्तावेजों के आधार पर वह केस 100 फीसदी साबित होता था. उस मामले में सीबीआई अधिकारियों ने अब तक अपील करने की ज़हमत नहीं उठाई है. ऐसे एक नहीं, कई बड़े मामलों में सीबीआई कभी अपील नहीं करती. छोटे मामलों में अपील का दिखावा करके ड्रामा किया जाता है.
पता चला है कि आपने हाल ही में व्यापमंं से जुड़े मामले को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है. वह क्या मामला है?
वह मैं समय आने पर सार्वजनिक करूंगा, लेकिन अभी बता दूं कि उन मामलों से दस्तावेज के आधार पर एक बात समझ में आ जाएगी कि व्यापमंं घोटाले में राज्य सरकार की एजेंसियां, जैसे सागर एफएसएल हो या एसटीएफ हो या एसआईटी हो, या फिर सीबीआई हो, सभी ने आरोपियों को बचाने का काम किया है. जबकि, उनकी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी दोषियों को सजा दिलाकर पीड़ितों को न्याय दिलाने की थी.
आप व्यापमंं का मुद्दा उठाने के बाद से ही लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सहयोगियों पर इस घोटाले में लिप्त होने का आरोप लगाते रहे हैं. आज घोटाले की जांच को दशक भर बीत चुका है, क्या आज भी आप अपने इन आरोपों पर कायम हैं?
मैं इस बात पर सौ फीसदी कायम हूं कि व्यापमंं घोटाले में राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वर्तमान नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह, गुलाब सिंह किरार, शीतला सहाय के दामाद डॉ. बीआर श्रीवास्तव जैसे एक नहीं, सैकड़ों नाम हैं जो राजनीतिक रसूखदार और नौकरशाह हैं, जिनके प्रभाव के कारण इस घोटाले की जांच को लगातार दबाया गया है.