चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों की गुमनाम फंडिंग की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग पास चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए गए दान का विवरण होना चाहिए. इसे अदालत में अपने पास रखें. हम उचित समय पर इस पर गौर कर सकते हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार (31 अक्टूबर) को कहा कि वह चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिले चंदे के विवरण की जांच करेगा.
2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किए गए चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों की गुमनाम फंडिंग की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनाव आयोग से 12 अप्रैल 2019 के शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश के अनुसार, राजनीतिक दलों के चुनावी बॉन्ड फंडिंग का विवरण तैयार रखने के लिए कहा है.
2019 के आदेश में कहा गया था, ‘उचित अंतरिम निर्देश यह होगा कि उन सभी राजनीतिक दलों को, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान प्राप्त किया है, प्रत्येक बॉन्ड के संबंध में दानदाताओं का विस्तृत विवरण सीलबंद कवर में भारत के चुनाव आयोग को जमा करना होगा. इसमें ऐसे प्रत्येक बॉन्ड की राशि और इससे प्राप्त क्रेडिट का पूरा विवरण यानी उस बैंक खाते का विवरण जिसमें राशि जमा की गई है और ऐसे प्रत्येक क्रेडिट की तारीख का ब्योरा हो.’
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा ने कहा कि राजनीतिक दलों ने केवल 2019 के लिए विवरण जमा किया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में 12 अप्रैल 2019 तक विवरण का खुलासा करने के लिए कहा था.
पीठ ने इससे असहमति जताई और कहा कि अंतरिम आदेश एक सतत परमादेश था और अंतरिम आदेश में अगला पैराग्राफ चुनावी बॉन्ड के लिए था, जो 12 अप्रैल 2019 तक जारी किए गए थे.
सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने शर्मा से कहा, ‘अंतरिम आदेश के अनुसार आपके (चुनाव आयोग) पास चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए गए दान का विवरण होना चाहिए. इसे अदालत में अपने पास रखें. हम उचित समय पर इस पर गौर कर सकते हैं.’
सुनवाई के दौरान चुनाव सुधार के लिए काम करने वाले एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राजनीतिक दलों, लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था को मिलने वाली फंडिंग की पारदर्शिता पर उनके हानिकारक प्रभाव के बारे में चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों की चेतावनियों की अनदेखी करते हुए सरकार द्वारा चुनावी बॉन्ड जारी किए गए थे.
भूषण ने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड ने विदेशी संस्थाओं, बड़ी संस्थाओं, अज्ञात संस्थाओं और बेनामी कंपनियों को शेल कंपनियों के माध्यम से बेहिसाब काले धन को आगे बढ़ाने की अनुमति देकर असीमित गुमनाम दान को वैध बना दिया है. चुनावी बॉन्ड के उद्भव के साथ अवैध धन को चुनावी प्रक्रिया में काफी आसानी से प्रवेश करने में सक्षम बनाया गया है. सत्तासीन सरकार और कॉरपोरेट दिग्गजों के बीच पारस्परिक संबंधों के कारण बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार यानी साठगांठ वाले पूंजीवाद (Crony Capitalism) को बढ़ावा मिल रहा है.’
उन्होंने कहा कि छह साल में 31 पार्टियों को 16,438 करोड़ रुपये चंदा मिला है. भूषण ने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड (55.9 प्रतिशत) से 9,188 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जिनमें से 4,615 करोड़ रुपये कॉरपोरेट क्षेत्र (28.1 प्रतिशत) और 2,635 करोड़ रुपये अन्य स्रोतों (16 प्रतिशत) से थे.’
उन्होंने कहा कि 2018 और 2022 के बीच चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान 7.5 गुना बढ़ गया है और भाजपा को देश में खरीदे गए सभी चुनावी बॉन्ड का 74.7 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जिसकी राशि 5,272 करोड़ रुपये है.
भूषण ने तर्क दिया कि जब नागरिकों को पार्टियों के वित्तपोषण के स्रोत के बारे में पता नहीं होता है, तो यह जानने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है और यह एक साफ-सुथरी पार्टी से संबंधित ईमानदार उम्मीदवार को चुनने के उनके अधिकार को खत्म कर देता है.
उन्होंने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं, कॉरपोरेट्स के बीच किसी काम के बदले में दिए जाने वाले लाभ की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं और चुनावों में समान अवसर को बिगाड़ रहे हैं.’