आंध्र प्रदेश कैबिनेट ने राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण को मंज़ूरी दी

मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल के व्यापक जाति-आधारित सर्वे को मंज़ूरी देने के बाद सरकार ने एक बयान में कहा कि इसका उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों पर विशेष ध्यान देने के साथ आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, आजीविका और जनसंख्या डेटा पर प्राथमिक जानकारी इकट्ठा करना है.

वाईएस जगनमोहन रेड्डी. (फोटो साभार: फेसबुक)

मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल के व्यापक जाति-आधारित सर्वे को मंज़ूरी देने के बाद सरकार ने एक बयान में कहा कि इसका उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों पर विशेष ध्यान देने के साथ आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, आजीविका और जनसंख्या डेटा पर प्राथमिक जानकारी इकट्ठा करना है.

वाईएस जगनमोहन रेड्डी. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को उत्पीड़ित वर्गों के लोगों की सटीक संख्या की पहचान करने के लिए एक व्यापक जाति आधारित सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया ताकि उन्हें सामाजिक-आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बयान में सरकार ने कहा कि कैबिनेट ने एक व्यापक जाति जनगणना को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों पर विशेष ध्यान देने के साथ आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, आजीविका और जनसंख्या डेटा पर प्राथमिक जानकारी इकट्ठा करना है.

कैबिनेट का यह फैसला विपक्षी दलों द्वारा जाति जनगणना के लिए दबाव डालने और विभिन्न जातियों को उनकी आबादी के आधार पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण फॉर्मूले पर फिर से विचार करने के मद्देनजर आया है.

कैबिनेट बैठक के बाद पत्रकारों को जानकारी देते हुए राज्य के सूचना और जनसंपर्क मंत्री सी. श्रीनिवास वेणुगोपाल कृष्ण ने कहा कि कैबिनेट ने प्रस्ताव का समर्थन करने से पहले राज्यभर में जाति-आधारित सर्वेक्षण कराने की जरूरत पर गहन चर्चा की.

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह के व्यापक जाति सर्वेक्षण से उत्पीड़ित वर्गों के जीवन को बेहतर बनाने और उनके सामाजिक सशक्तिकरण को अगले स्तर पर ले जाने में मदद मिलेगी.’

सी. वेणुगोपाल कृष्ण ने कहा कि सर्वेक्षण में लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, रोजगारोन्मुख शिक्षा और समाज में जाति संतुलन जैसे विभिन्न कारकों को ध्यान में रखा जाएगा. उन्होंने कहा, ‘सर्वेक्षण से समाज में कमजोर वर्गों का एक डेटाबेस बनाने में मदद मिलेगी, ताकि सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं और अन्य आर्थिक लाभों का विस्तार कर सके.’

कैबिनेट ने कहा कि सर्वेक्षण से उन लोगों की पहचान करने में भी मदद मिलेगी जो कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में छूट गए थे. मंत्री ने कहा, ‘हम अधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों और मानव संसाधन विकास योजनाओं की योजना बना सकते हैं ताकि समाज में आर्थिक असमानताओं को दूर किया जा सके.’

ज्ञात हो कि इस साल की शुरुआत में बिहार सरकार ने राज्य में प्रत्येक परिवार के सामाजिक आर्थिक डेटा को संकलित करने के लिए एक सर्वेक्षण कराया था. कानूनी चुनौतियों का सामना करने वाले सर्वेक्षण के नतीजों से पता चला कि राज्य में 63% आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) है. जिसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) सबसे बड़ा हिस्सा (36%) है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें पिछड़ा वर्ग 27.13 फीसदी है, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी और सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी है.

बिहार सरकार द्वारा 2 अक्टूबर को अपने जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों की घोषणा के बाद यह एक मुद्दा बन गया है. 2024 के लोकसभा चुनावों में जाति जनगणना एक चुनावी मुद्दा बन सकता है – अन्य राज्यों में भी इसे उठाया गया है. खासकर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में, जहां इस महीने चुनाव होने हैं.

कांग्रेस ने आगामी चुनावों से पहले सर्वेक्षण को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है और विधानसभा चुनाव जीतने पर मध्य प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसे करने का वादा किया है.