उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाले जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि कुछ कर्मचारी कुछ मांगों के पक्ष में प्रदर्शन और हड़ताल का सहारा ले रहे हैं. कर्मचारियों द्वारा कोई भी प्रदर्शन और हड़ताल ‘गंभीर अनुशासनहीनता और कदाचार का काम’ है.
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने ‘सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई’ की चेतावनी देते हुए कर्मचारियों को हड़तालों और प्रदर्शनों से दूर रहने का आदेश दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाले जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा शुक्रवार (3 नवंबर) को जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि ‘कुछ कर्मचारी कुछ मांगों के पक्ष में प्रदर्शन और हड़ताल का सहारा ले रहे हैं.’
जम्मू-कश्मीर सरकारी कर्मचारी (आचरण) नियम, 1971 के नियम 20 (ii) का हवाला देते हुए सर्कुलर में कहा गया है कि कर्मचारियों द्वारा कोई भी प्रदर्शन और हड़ताल ‘गंभीर अनुशासनहीनता और कदाचार का काम’ है.
जीएडी सर्कुलर (सं. GAD-ADM0III/158/2023-09-GAD) में कहा गया है कि प्रशासन ने चेतावनी दी है कि कोई भी कर्मचारी जो उपरोक्त नियम के अनुसार प्रदर्शन और हड़ताल के आयोजन में शामिल पाया जाएगा, उसके खिलाफ ‘सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई’ की जाएगी.
जम्मू-कश्मीर कर्मचारी आचरण नियमों का नियम (ii) सरकारी कर्मचारियों को उनके सेवा मामले या अन्य सरकारी कर्मचारी के सेवा मामले के संबंध में किसी भी प्रकार की हड़ताल आयोजित करने या उसमें भाग लेने से रोकता है.
जीएडी सर्कुलर में कहा गया है, ‘इसलिए, सभी प्रशासनिक सचिवों से अनुरोध है कि वे अपने संबंधित विभाग में कर्मचारियों को ऐसे सभी अनावश्यक प्रदर्शनों और हड़तालों से दूर रहने के लिए ये निर्देश प्रसारित करें: यह गंभीर अनुशासनहीनता और कदाचार का कार्य है.’
यह सर्कुलर ऐसे समय आया है जब जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कथित तौर पर मनमाने आधार पर सैकड़ों कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है, जबकि पिछले चार वर्षों में ‘राज्य की सुरक्षा’ के लिए खतरा होने के आरोप में करीब 50 कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है.
फिलहाल जम्मू-कश्मीर में पांच लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं. संविदा कर्मचारियों की संख्या एक लाख के करीब है जिन्हें विभिन्न विभागों द्वारा स्थायी कर्मचारियों के रोजगार लाभ दिए बिना मौजूदा रिक्तियों पर नियुक्त किया जाता है.
हाल के सप्ताहों और महीनों में केंद्र सरकार के विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों सहित पीड़ित कर्मचारी अपने रोजगार के मामलों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए जम्मू-कश्मीर में सड़कों पर उतर रहे हैं.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मनरेगा और ग्राम रोजगार सेवक जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं के लिए नियुक्त हजारों संविदा कर्मचारियों ने अपने वेतन में वृद्धि और अपने रोजगार को नियमित करने की मांग करते हुए सरकार के खिलाफ सड़कों पर अपना गुस्सा जाहिर किया है.
सोमवार (30 अक्टूबर) को जम्मू और कश्मीर सड़क परिवहन निगम के दर्जनों कर्मचारियों ने नियमित रोजगार लाभ, नियमितीकरण और न्यूनतम वेतन अधिनियम के कार्यान्वयन सहित अपनी मांगों के समाधान की मांग को लेकर श्रीनगर के लाल चौक में प्रेस एन्क्लेव में विरोध प्रदर्शन किया था.
केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने से पहले श्रीनगर का प्रेस एन्क्लेव जनता और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच एक ऐसे बिंदु के तौर पर काम करता था, जहां राजनीतिक दल, व्यापारिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र या कश्मीर के किसी भी हिस्से से कोई भी पीड़ित व्यक्ति प्रेस एन्क्लेव में आता है और वहां विरोध या प्रदर्शन करता था. वहीं क्षेत्र में घूमने वाले मीडियाकर्मी इन्हें अधिकारियों के ध्यान में लाया करते थे.
जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद प्रेस एन्क्लेव में सन्नाटा छा गया क्योंकि अधिकारियों ने घाटीभर में प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की. हालांकि, हाल के महीनों में पत्रकारों के केंद्र रहे इस इलाके, जहां अब जम्मू-कश्मीर की आतंकवाद विरोधी इकाई का कार्यालय भी है, में आयोजित कई विरोध प्रदर्शनों के साथ फिर से हलचल देखी गई है.
2021 में इन खबरों कि सरकार बिजली विभाग का निजीकरण करने और इसे पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ विलय करने की योजना बना रही है, के बीच जम्मू-कश्मीर के बिजली विभाग के हजारों कर्मचारी जम्मू-कश्मीर में हड़ताल पर चले गए थे, जिससे केंद्र शासित प्रदेश अंधेरे में डूब गया था.
बाद में प्रशासन द्वारा यह आश्वासन दिए जाने के बाद कि योजना रोक दी गई है, कर्मचारियों ने हड़ताल समाप्त कर दी.
2021 में आतंकवादियों द्वारा अल्पसंख्यक हिंदुओं और प्रवासी श्रमिकों की लक्षित हत्याओं के बाद हजारों कश्मीरी पंडित कर्मचारी महीनों तक हड़ताल पर चले गए थे, जिसके कारण उनमें से कई को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. लगभग एक वर्ष के बाद हड़ताल समाप्त कर दी गई.