इज़रायल-फ़िलिस्तीन संघर्ष को बिना किसी धारणा और पूर्वाग्रह के समझना है, तो ज़रूरी है कि धर्म के चश्मे को उतारकर उसके ऐतिहासिक संदर्भ से समझा जाए.
एक औसत भारतीय हिंदू का मोदी दौर में जिस तरह का मानस गढ़ा गया है, उस मानस के हिसाब से देखें तो इजरायल और फिलिस्तीन की लड़ाई में इजरायल की फिलिस्तीनियों के साथ की जा रही बर्बरता इसलिए जायज है क्योंकि इजरायल एक ऐसी कौम से लड़ रहा है जिसमें ज्यादातर आतंकवादी होते है. इजरायल और फिलिस्तीन की लड़ाई में अब तक हजारों लोग मर चुके हैं मगर एक बार कल्पना कीजिए कि अगर इनमें मुसलमानों की मौजूदगी ना होती तो क्या भारतीय मीडिया दुनिया की किसी कोने में मर रहे हजारों लोगों की मौत पर चर्चा करती?
जवाब है कि ऐसा नहीं होता. इन धारणाओं से बाहर निकलने के लिए जरूरी है कि इजरायल फिलिस्तीन विवाद को उसके ऐतिहासिक संदर्भ से समझा जाए. धर्म के चश्मे को उतारकर समझा जाए.
धर्म दर्शन के अध्येता बताते हैं कि यहूदियों और मुसलमानों से ज्यादा बड़ी लड़ाई यहूदियों और ईसाइयों की रही है. जबकि हकीकत यह है कि यहूदी, ईसाई और इस्लाम- इन धर्मों की मूल मान्यताएं तक़रीबन एक सी हैं, और ये एकेश्वरवादी हैं. इन तीनों धर्मों के धार्मिक मान्यताओं के इतिहास को समझ लिया जाए तो यह समझ पाएंगे कि फिलीस्तीन और इजरायल अस्तित्व में कैसे आए? प्रोमिस्ड लैंड की अवधारणा क्या है जिस पर इजरायल के अस्तित्व की बुनियाद टिकी है? और कैसे जब इस्लाम का आगमन हुआ तो इस्लाम धर्म यहूदियों के लिए पनाहगाह बना, एक तरह से इसने यहूदियों को प्रताड़ना से मुक्त करने का काम किया?
यहूदी धर्म की शुरुआत ईसा पूर्व 1800 के आसपास मानी जाती है. ईसाई धर्म की शुरुआत 1 ईस्वी से मानी जाती है और इस्लाम की शुरुआत सातवीं शताब्दी के आसपास दिखती है. इन तीनों धर्म की जड़ें आपस में जुड़ी हुई हैं. इन तीनों धर्म की शुरुआती जड़ें उत्तरी अफ्रीका की मिस्र वाले इलाके से लेकर पश्चिम एशिया में मौजूदा वक्त के इजरायल, सऊदी अरब जॉर्डन, सीरिया जैसे इलाके में मौजूद दिखाई देती है.
यरुसलम एक ऐसा शहर है जो इन तीनों धर्मों के लोगों के मन में बसता है. हजरत इब्राहिम इन तीनों धर्मों में वह पैगंबर हैं, जो केंद्र में हैं. यहीं वह पैगंबर है, जिनसे इन तीनों धर्मों के धार्मिक परंपरा की चेन देखी जा सकती है. इसलिए इन धर्मों को इब्राहीमी धर्म भी कहा जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, हजरत इब्राहिम की कई संतानें थी. उनमें से एक का नाम इस्माइल था. इन्हीं के वंश में कई पीढ़ियों के बाद मोहम्मद पैगंबर का जन्म हुआ जो इस्लाम धर्म के प्रवर्तक बने. हजरत इब्राहिम की एक और संतान का नाम इसाक था. इसाक के बेटे का नाम याकूब था. जिन्हें जैकब और इजरायल भी कहा जाता है. इजरायल का एक अर्थ होता है शासन करना. इन्हीं इजरायल के 12 बेटे थे. इन 12 बेटों ने 12 कबीले बनाए . इन 12 कबीलों को यूनाइटेड किंगडम ऑफ इजरायल कहा जाता था. यहीं से इजरायल शब्द अस्तित्व में आया.
इन्हीं 12 बेटे में से एक बेटे का नाम यहूदा या जूडा था. और इसी कबीले में रहने वाले लोगों ने खुद को यहुदा का अनुयायी मानते हुए यहूदी कहकर पुकारना शुरू किया. इन 12 कबीलों में आपस में खूब लड़ाइयां हुई. जूडा के यहूदियों ने मिस्र में शरण लिया. मिस्र में यहूदियों के साथ बुरा बर्ताव होता था, दासों की तरह से व्यवहार किया जाता था. तो यहां से भी इन्हें हटना पड़ा.
यहूदियों में हजरत मूसा का नाम बहुत ज्यादा श्रद्धा से लिया जाता है. यहूदियों की कहानियां बताती हैं कि इन्होंने ही मिस्र से अमानवीय हालात में जिंदगी काट रहे यहूदियों को मिस्र से बाहर निकाला. हजरत मूसा ने 10 कमांडमेंट्स और प्रोमिस्ड लैंड की बात कही. 10 कमांडमेंट्स यहूदी धर्म में पवित्र निर्देश के तौर पर माने जाते हैं और प्रोमिस्ड लैंड का मतलब यह है कि यहूदियों के ईश्वर ने दुनियाभर के यहूदियों को जिस जमीन पर बसाने का वादा किया है वही प्रोमिस्ड लैंड है. अगर भूगोल के हिसाब से देखा जाए, तो मौजूदा समय का इजरायल, थोड़ा मिस्र, थोड़ा-सा जॉर्डन, सीरिया इस प्रोमिस्ड लैंड में शामिल हैं.
ईसा पूर्व 1047 से लेकर 930 के बीच इजरायल किंगडम का इतिहास दिखाई देता है. यह मान्यताओं की बात नहीं है बल्कि यह दर्ज इतिहास है. इसके दक्षिण पश्चिम में जो इलाका मौजूद था उसे फिलिस्तीनिया कहा जाता था. यूनाइटेड किंगडम पर समय बीतने के साथ साथ कई हमले हुए. ईसा पूर्व 63 में रोमन साम्राज्य का हमला यूनाइटेड किंगडम ऑफ इजरायल पर हुआ. यह पूरा इलाका रोमन साम्राज्य के अधीन हो गया. रोमन सा म्राज्य के अधीन यहूदी लोग भी आ गए.
यहीं पर ईसा मसीह का जन्म हुआ था. ईसा मसीह के उपदेशों से लोग बहुत प्रभावित हुए. उनके अनुयायी बढ़ रहे थे. मगर यहूदी धर्म के मठाधीशों को ईसा मसीह बहुत नापसंद थे. ईसा मसीह पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया. ईसा मसीह का मानना था कि सच दुनिया की किसी भी सत्ता से बड़ा होता है भले ही वह राजा ही क्यों ना हो. ईसा मसीह की मौत की कहानी बड़ी लंबी है मगर संक्षेप में यह जानिए कि यहूदियों की पंचायत ने ईसा मसीह को मृत्युदंड देने का फैसला किया. इस पूरी कवायद का सबसे बुरा नतीजा यह हुआ की दुनियाभर के ईसाइयों के मन में इस घटना के घटना के 2,000 साल के बाद भी यह भाव रहता है कि ईसा मसीह को यहूदी समाज ने मारा है.
ईसा मसीह की मृत्यु के बाद रोमन साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के इलाकों में रहने वाले यहूदियों के साथ बहुत ही बुरे संबंध बनने शुरू हुए. यहूदियों को दास बनाया गया. रोमन साम्राज्य ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया. यहूदियों का प्रवेश यरुशलम में बंद कर दिया गया. यहां से भागकर यहूदी दुनियाभर में बिखर गए. रोमन साम्राज्य ने इस इलाके का नाम फिलिस्तीन रखा था. यहां से फिलिस्तीन अस्तित्व ने आया. इसके बाद यहूदी लोग दुनिया में जहां कहीं भी रहते थे, प्रोमिस्ड लैंड की तरफ यानी यरुशलम की दिशा में अपनी पूजा करने लगे. इस भावना के साथ कि कभी न कभी तो वे अपने वतन जरूर लौटेंगे.
सातवीं शताब्दी में दुनिया में इस्लाम का आगमन हुआ. 638 ईस्वी में यरुशलम पर रोमन साम्राज्य के कब्जे का अंत हुआ. 638 ईस्वी से इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर का शासन यरुशलम पर शुरू हुआ. इन्होंने यह इजाजत दी कि दुनिया की किसी भी कोने में रहने वाला यहूदी आकर यरुशलम में रह सकता है. मतलब यहूदियों के साथ होने वाली प्रताड़ना का अंत इस्लाम के आगमन के बाद शुरू हुआ.
इस्लाम यहूदियों के लिए पनाह देने वाला धर्म साबित हुआ. 638 ईस्वी से लेकर 1038 ई तक सब कुछ तकरीबन ठीक-ठाक चला रहा. साल 1099 के बाद जब ईसाई और मुसलमान में लड़ाई छिड़ी तब फिर से यहूदियों को प्रताड़ना सहनी पड़ी. इसके बाद इस्लामी शासन रहा और 18वीं शताब्दी तक यहूदियों की हालत ठीक-ठाक रही.
यहूदी दुनिया में जहां कहीं भी थे बहुत ही कम संख्या में थे मगर बहुत बड़े संसाधनों पर कब्जा रखते थे. नफरत के आधार पर पनपी पहचान की राजनीति ने इसे अपने हक में भुनाने की कोशिश की. 1850 के बाद यहूदियों के खिलाफ पूर्वी यूरोप में गजब का पागलपन छिड़ गया. चुन-चुनकर उन्हें मारा जाने लगा. यहूदियों के खिलाफ हो रहे हिंसक बर्ताव के खिलाफ दुनियाभर के यहूदियों को एक करने के लिए जियोनिज्म आंदोलन की शुरुआत हुई. इस आंदोलन का मकसद था कि यहूदियों को एक कर प्रोमिस्ड लैंड पर बसाना. यानी उसी जगह, जहां पहले इजरायल हुआ करता था.
1914 से लेकर 1918 तक पहला विश्व युद्ध चला. तकरीबन यह तय हो गया था कि पहले विश्व युद्ध में इंग्लैंड की जीत होगी. जो लोग जियोनिज्म संगठन चला रहे थे, उन लोगों ने इंग्लैंड के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह एक स्वतंत्र यहूदी राष्ट्र बनाने की घोषणा करें. इस बात को इंग्लैंड ने स्वीकार कर लिया. साल 1917 में इंग्लैंड की तरफ से फॉरेन सेक्रेट्री आर्थर बालफोर ने ब्रिटेन में जियोनिस्ट आंदोलन के सबसे बड़े नेता को एक पत्र लिखकर भेजा और कहा कि इस पत्र को जियोनिस्ट फेडरेशन के मंच पर पढ़ दीजिएगा.
इस पत्र में लिखा था कि कैबिनेट की सहमति के बाद हम इस पक्ष में है कि फिलीस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाया जाना चाहिए. मतलब इंग्लैंड की तरफ से यहूदी लोगों के लिए फिलिस्तीन में स्वतंत्र मुल्क बनाने की इजाजत दे दी गई. हालांकि इस पत्र में लिखा था कि ऐसा करते हुए फिलिस्तीन के गैर यहूदी लोगों के धार्मिक और अन्य अधिकारों पर किसी भी तरह का हमला नहीं होना चाहिए. मगर भविष्य इस हिसाब से नहीं बना बालफोर घोषणा के मुताबिक फिलिस्तीन में एक इजरायली राज्य भविष्य में जाकर बना और गैर यहूदी लोगों के धार्मिक और नागरिक अधिकारों पर जमकर हमला किया गया.
ऑटोमन साम्राज्य 19वीं शताब्दी में बहुत कमजोर हो चला था. उसका हारना तय था और प्रथम विश्व युद्ध में वह इंग्लैंड के हाथों हार गया. 1930 के दशक में जर्मनी में हिटलर आ चुका था. हिटलर यहूदियों पर कहर बनकर टूटा. दुनियाभर से फिलिस्तीन में यहूदियों की इतनी बड़ी आबादी आई कि फिलिस्तीन की जनसांख्यकीय संरचना बदलने लगी. जहां फिलिस्तीन में पहले अरबों की संख्या ज्यादा थी और यहूदियों की संख्या कम थी, वहां संख्या के मामले में यहूदी अरबों के नजदीक आने लागे.
1936 से 39 के दौर में फिलिस्तीन में रहने वाले अरबों यानी मुसलमानों को यह लगने लगा कि उनके ही देश से उन्हें बाहर किया जा रहा है. 1939 से लेकर 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध चला. दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई. फिलिस्तीन में एक स्वतंत्र इजरायल राष्ट्र बनाने को लेकर हिंसक विरोध तेज हो गया. यह पूरा मामला इंग्लैंड से संभाल नहीं रहा था तो इंग्लैंड ने इस मामले को फरवरी 1947 में बिलकुल हाल ही में बने संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंप दिया.
29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा में फिलिस्तीन के बंटवारे की योजना को लेकर के प्रस्ताव रखा गया. प्रस्ताव यह था कि फिलिस्तीन के तीन हिस्से किए जाएंगे. एक फिलीस्तीन राष्ट्र बनेगा एक यहूदी राष्ट्र बनेगा और यरुशलम संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन रहेगा. जानकार बताते हैं कि फिलिस्तीन की भूभाग का जिस तरीके से बंटवारा किया गया, वह बेईमानी से भरा हुआ था.
बंटवारे के समय फिलिस्तीन में यहूदियों की जनसंख्या तकरीबन एक तिहाई थी और फिलिस्तीन के 6% से पर हिस्से पर यहूदियों का कब्जा था. मगर बंटवारे के योजना के तहत फिलिस्तीन के 55% भूभाग पर यहूदियों को अधिकार सौंप दिया गया. इस 55% भूभाग में फिलिस्तीन के महत्वपूर्ण शहर शामिल थे. खेती किसानी के लिहाज महत्वपूर्ण जमीन शामिल थी. जैसा होना था वैसा ही हुआ इस प्रस्ताव को यहूदियों के संगठन ने तो स्वीकार किया मगर अरब देशों ने नहीं.
जैसा कि साफ है कि इस तरह के बंटवारे से कोई देश संतुष्ट नहीं हो सकता है. वह अपने अधिकार के लिए लड़ेगा ही. ठीक ऐसा ही हुआ. 15 मई 1948 को इजरायल ने अपनी आजादी का दिन माना और फिलिस्तीन ने साल 1998 में अपने विनाश का दिन.अरबी भाषा में इसे नकबा कहा जाता है. वह दिन जब फिलिस्तीन के लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ा. अपने देश से ही बेदखल होना पड़ा.
साम्राज्यवादी बंदूक के दम पर फिलिस्तीन की छाती पर इजरायल बसा दिया गया. फिलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से हटा दिया गया. जिस जमीन पर वह सदियों से रहते आ रहे थे उस जमीन से उन्हें बेदखल कर दिया गया. फिलिस्तीनियों को अपने ही जमीन पर किराएदार बना दिया गया. बहुत लंबे समय तक नफरत, प्रताड़ना और अत्याचार के शिकार यहूदी फिलिस्तीनियों खिलाफ अत्याचार करने लगे. यहूदियों ने अपने साथ हुए अत्याचार से कुछ भी नहीं सीखा. अगर इतिहास से वह कुछ सीख पाते तो फिलिस्तीनियों की जमीन से फिलिस्तीनियों को हटाने के लिए लड़ाइयों पर नहीं उतरते.
2,000 साल पहले के इतिहास को आधार बनाकर इंग्लैंड ने जो फिलिस्तीन के साथ किया वह कहीं से भी जायज नहीं था. बेशक 2,000 साल पहले यहूदियों की यरुशलम में बसावट थी मगर वह जगह पिछले 2,000 सालों से फिलिस्तीनियों के भौगोलिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा थी. उस पर यहूदियों को बसाने की इजाजत दे कर दुनियाभर के वैश्विक ताकतों ने बहुत बड़ी गलती की थी.
तब से लेकर अब तक इजरायल और फिलिस्तीन की चाहत पालने वाले लोगों के बीच अंतहीन संघर्ष चल रहा है. साल 1948 के बाद की कहानी भी बहुत लंबी है. संक्षेप में इतना समझिए कि साल 1948 के बाद से लेकर अब तक हर हफ्ते, महीने छोटी-बड़ी किसी न किसी तरह की हिंसक घटना इजरायल और फिलिस्तीन के विवाद पर लगातार होती रही है. शांति की कई पहल की गईं, मगर उन सब में न्याय का अभाव दिखता है, इसलिए कभी भी शांति स्थापित नहीं हो पाई.
ज्यादातर फिलिस्तीनियों ने आसपास के दूसरे देशों में जाकर शरण ली है और जहां तक इजरायल के भीतर फिलिस्तीन की बात है तो यह गाजा की एक पतली-सी पट्टी और वेस्ट बैंक में सीमित कर दिया गया है. इजरायल का कुल क्षेत्रफल हरियाणा के क्षेत्रफल से आधा है और आबादी हरियाणा की आबादी की एक तिहाई है. इजरायल की कुल आबादी साल 2023 में करीबन 98 लाख के आसपास पहुंच गई तो गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में वाले फिलिस्तीनियों की आबादी तकरीबन 58 लाख है. यानी फिलिस्तीनियों को बेदखल कर बने इजरायल में फिलिस्तीनियों के मुकाबले करीबन दोगुनी आबादी रह रही है.
वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनियों के मुकाबले इजरायल की जीडीपी 26 गुना ज्यादा है और प्रति व्यक्ति आय तकरीबन 15 गुना अधिक है. अक्टूबर 7 को हमास के बर्बरतापूर्ण हमले के बाद छिड़ी लड़ाई के बाद अब तक इजरायल की तकरीबन 1,400 लोग मारे गए हैं और फिलिस्तीन में तकरीबन 10,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसमें से 70% तकरीबन महिलाएं और बच्चे हैं.
इजरायली सेना और शासन जिस रुख के साथ बर्बरतापूर्ण अमानवीय कार्रवाई कर रहे हैं उसे देखते हुए कुछ जानकार इसे फिलिस्तीन इतिहास का दूसरा नकबा बता रहे हैं. अक्टूबर 7 को फिलिस्तीन मकसद को लेकर लड़ रहे हैं हमास ने क्रूर आतंकी हमला किया तो इसके जवाब में इजरायल ने जिस तरह का हमला किया वह बताता है कि आखिरकार क्यों 60 साल बाद इजरायल एक ताकतवर देश तो बन गया मगर फिलिस्तीन के साथ ऐसा समझौता नहीं बन पाया जो शांति के रास्ते पर जाता हो.
इजरायल ने 10 किलोमीटर लंबी और 35 किलोमीटर चौड़ी जमीन यानी गाजा पट्टी पर रहने वाले 20 लाख फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार का अभियान छेड़ रखा है. पूरी दुनिया के ताकतवर मुल्क चुप बैठे हुए हैं या ऐसी बातें कर रहे हैं, जिनमें बेईमानी भरी हुई है.
अंत में इतना समझिए कि फिलिस्तीन और इजरायल की संघर्ष के इतिहास को अगर आप टुकड़ों में समझेंगे तो गलत निष्कर्ष कर पहुंचेंगे. अगर आप बदले की भावना से समझेंगे फिर भी गलत निष्कर्ष पर पहुंचेंगे. अगर आप इतिहास लेकर वर्तमान की यात्रा को मानवता के विकास की क्रम में हुए अनगिनत संघर्ष के चश्मे से देखेंगे तो आपको दिखेगा कि इजरायल से लेकर दुनिया की मजबूत शक्तियों ने इजरायल और फिलिस्तीन के संघर्ष को एक सही समझौते में बदलने के लिए ईमानदारी से कोशिश नहीं की.