शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को उनके द्वारा की गयी कार्रवाई के बारे में बताने के लिए 6 हफ़्ते समय दिया है.
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज गुजरात सरकार को यह बताने के लिए छह सप्ताह का समय दिया कि वर्ष 2002 के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में दोषी ठहराये गये पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गयी है या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की एक पीठ ने राज्य सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस आग्रह पर विचार किया कि मामले में संबंधित अधिकारियों को निर्देश के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए.
पीठ ने मामले की सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में निर्धारित की है. पीठ ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि बिलकिस बानो को दिये जाने वाले मुआवजे को बढ़ाये जाने संबंधी एक अलग याचिका पर सुनवाई अगले सप्ताह होगी.
ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने 23 अक्तूबर को भी राज्य सरकार को यह बताने के लिए समय दिया था कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में दोषी ठहराये गये पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गयी है या नहीं.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले में चार मई को 12 लोगों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था जबकि पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों समेत सात लोगों को बरी किये जाने के फैसले को खारिज कर दिया था.
बिलकिस बानो से मार्च 2002 में सामूहिक बलात्कार किया गया और उस समय वह गर्भवती थी. उसे गोधरा ट्रेन जलाए जाने की घटना के बाद के घटनाक्रम में अपने परिवार के सात सदस्यों को खोया था
पीठ ने भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 218 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करने और सबूतों से छेड़छाड़ धारा 201 पर पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों समेत सात लोगों को दोषी ठहराया था.
दोषी पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों में नरपत सिंह, इदरीस अब्दुल सैयद, बीकाभाई पटेल, रामसिंह भाभोर, सोमभाई गोरी, अरूण कुमार प्रसाद डॉक्टर और संगीता कुमार प्रसाद डॉक्टर शामिल हैं.
एक विशेष अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा दी थी. इसके बाद इन लोगों ने खुद को दोषी ठहराये जाने को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया और निचली अदालत के फैसले को खारिज किये जाने का आग्रह किया.
सीबीआई ने भी उच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर इस आधार पर तीन दोषियों को मौत की सजा दिये जाने का आग्रह किया कि वे इस मामले में मुख्य अपराधी हैं.
इस मामले की अहमदाबाद में शुरू हुई थी लेकिन बिलकिस बानो के गवाहों को नुकसान पहुंचाये जाने और सबूतों से छेड़छाड़ किये जाने की आशंका जताये जाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले को अगस्त 2004 में मुम्बई स्थानांतरित कर दिया था.