कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लिया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला अधीनस्थ द्वारा लगाए यौन उत्पीड़न के आरोप में सेवा चयन बोर्ड के एक पूर्व कर्मचारी की 50% पेंशन रोकने का आदेश निरस्त किया गया था. कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न करने वाले को क़ानून के चंगुल से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

(इलस्ट्रेशन साभार: pixabay)

सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला अधीनस्थ द्वारा लगाए यौन उत्पीड़न के आरोप में सेवा चयन बोर्ड के एक पूर्व कर्मचारी की 50% पेंशन रोकने का आदेश निरस्त किया गया था. कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न करने वाले को क़ानून के चंगुल से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि कार्यस्थलों पर किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, गौहाटी उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला अधीनस्थ द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप के मामले में सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) के एक पूर्व कर्मचारी की 50 प्रतिशत पेंशन रोकने के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘यौन उत्पीड़न एक व्यापक और गहरी जड़ें जमा चुका मसला है, जिसने दुनियाभर के समाजों को त्रस्त कर दिया है. भारत में यह गंभीर चिंता का विषय रहा है और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए कानूनों का विकास इस समस्या के समाधान के प्रति देश की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है.’

पीठ ने कहा, ‘भारत में यौन उत्पीड़न सदियों से मौजूद है, लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्ध में ही इसे कानूनी मान्यता मिलनी शुरू हुई.’

शीर्ष अदालत ने एसएसबी के सेवानिवृत्त अधिकारी, जो सितंबर 2006 और मई 2012 के बीच असम के रंगिया में क्षेत्र संयोजक के रूप में कार्यरत थे, की पूर्ण पेंशन बहाल करने के हाईकोर्ट के 2019 के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील को मंजूर करते हुए ये टिप्पणियां कीं.

यौन उत्पीड़न के आरोपों पर शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में हमेशा के लिए उनकी 50 प्रतिशत पेंशन को रोकने का जुर्माना आदेश दिया गया था.

जस्टिस पारदीवाला ने पीठ के लिए 104 पेज का फैसला लिखते हुए कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि (केंद्र की) अपील स्वीकार की जानी चाहिए. हाईकोर्ट ने आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित करने में एक गंभीर त्रुटि की. उच्च न्यायालय के 15 मई 2019 को पारित उस निर्णय और आदेश को रद्द किया जाता है.’

हालांकि, अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा अधिकारी पर लगाए गए जुर्माने को बहाल करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्र प्रतिवादी को अब तक भुगतान की गई राशि की किसी भी वसूली को प्रभावित नहीं करेगा.

इसमें कहा गया है, ‘हम यौन उत्पीड़न से संबंधित मुकदमे से निपट रहे हैं. कार्यस्थल पर किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और उत्पीड़न करने वाले को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह पीड़िता को अपमानित और निराश करता है, खासकर तब जब उत्पीड़क को सज़ा नहीं मिलती या उसे अपेक्षाकृत मामूली दंड देकर छोड़ दिया जाता है.’

पीठ ने विशाखा फैसले और यौन उत्पीड़न के मामलों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए परिणामी निर्देशों पर भी विचार किया.

एसएसबी अधिकारी पर उनकी अधीन फील्ड असिस्टेंट के तौर पर काम करने वाली महिला के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था.