सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा- राजनीतिक संबंधों के आधार पर कॉलेजियम का चयन न करें

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि सरकार को इस बात को समझना होगा कि 40% राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं. तो ऐसे लोग हो सकते हैं जो क़ानून अधिकारी के पद पर हों या इन पार्टियों से कुछ संबंध रखते हों.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons)

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि सरकार को इस बात को समझना होगा कि 40% राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं. तो ऐसे लोग हो सकते हैं जो क़ानून अधिकारी के पद पर हों या इन पार्टियों से कुछ संबंध रखते हों.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित लोगों को केवल उनके राजनीतिक संबंधों या अदालत में सरकार के खिलाफ मामला लड़ने के कारण ‘चुनिंदा रूप से नजरअंदाज’ न करें.

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने मंगलवार (7 नवंबर) को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि सरकार को इस बात को समझना होगा कि 40% राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं.

पीठ ने कहा, ‘तो ऐसे लोग हो सकते हैं जो कानून अधिकारी के पद पर हों या इन पार्टियों से कुछ संबंध रखते हों.’

पीठ ने यह भी कहा कि कॉलेजियम ने कुछ ऐसे वकीलों की सिफारिश की थी जो राजनीतिक रूप से सक्रिय न होने के बावजूद सत्तारूढ़ या विपक्षी दलों से संबंध रखते हैं.

जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि किसी आपराधिक वकील की विशेषज्ञता, जिसने सरकार के खिलाफ लोगों का बचाव किया है, उसे किसी के खिलाफ नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने जोड़ा, ‘चुनिंदा तरीके से होने वाला चयन रोका जाना चाहिए.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पीठ ने अटॉर्नी जनरल से यह भी कहा कि वह सरकार से अदालत द्वारा अनुशंसित तबादलों को अधिसूचित करने के लिए कहें, क्योंकि ऐसा करने में विफल रहने से ‘प्रणाली में विसंगति पैदा करती है.’

पीठ एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु और एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय लेने में कथित देरी के लिए केंद्र के खिलाफ अदालती कार्यवाही की अवमानना ​​की मांग की गई थी.

यह कहते हुए कि वकीलों को केवल उनकी राजनीतिक प्राथमिकताओं के आधार पर जजशिप के लिए विचार करने से रोका नहीं जाना चाहिए, अदालत ने जोड़ा, ‘आपके पास शासन की एक प्रणाली है जहां विभिन्न दल अलग-अलग राज्यों पर शासन करते हैं और कुछ वकील जिनके नामों की सिफारिश की जाती है, भले ही वे राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय नहीं हैं… जिनका सरकार या सत्तारूढ़ व्यवस्था के साथ कुछ संबंध हो सकते हैं, लेकिन कॉलेजियम फिर भी इसे मंजूरी देता है.’

जस्टिस कौल ने आगे कहा, ‘यह स्पष्ट है कि यदि कोई कानून अधिकारी पद पर है, तो उसका सत्ताधारी सरकार से कुछ तो संबंध है. लेकिन इसमें कोई गहरा राजनीतिक पहलू नहीं होना चाहिए जो उनके न्यायिक काम को प्रभावित करता हो. … आपको इन कारकों को संतुलित करना होगा… चालीस प्रतिशत राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं. इसलिए ऐसे लोग होंगे जो कानून अधिकारी पदों पर होंगे या जिनका कोई न कोई जुड़ाव होगा.’

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा, राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और गौहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संदीप मेहता को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की है.

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के सुझावों पर केंद्र सरकार के रवैये को लेकर निरंतर विवाद और बयानबाज़ी होती रही है.

2021 में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि अगर केंद्र सरकार को जजशिप के लिए प्रस्तावित किसी नाम पर कोई आपत्ति है तो वह 18 सप्ताह के भीतर कॉलेजियम को इसे वापस भेजने के लिए बाध्य है.

तब से इसने कई कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार की देरी के बारे में बार-बार चिंता जताई है.