गुजरात हाईकोर्ट ने पीएम मोदी की डिग्री के खुलासे पर अरविंद केजरीवाल की याचिका ख़ारिज की

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के मार्च के फैसले को चुनौती दी थी कि गुजरात विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री की शैक्षणिक डिग्री के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय के लिए केजरीवाल और आप सांसद संजय सिंह के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि के मुक़दमे को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.

अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: ट्विटर/फेसबुक)

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के मार्च के फैसले को चुनौती दी थी कि गुजरात विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री की शैक्षणिक डिग्री के बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय के लिए केजरीवाल और आप सांसद संजय सिंह के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि के मुक़दमे को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.

अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: ट्विटर/फेसबुक)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार (9 नवंबर) को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत के 31 मार्च के फैसले को चुनौती दी गई थी कि गुजरात विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार को कहा कि केजरीवाल द्वारा समीक्षा आवेदन पर आगे बढ़ते हुए मुद्दे का लगातार ढिंढोरा पीटना ‘सार्वजनिक जीवन में अच्छी रुचि को नहीं दर्शाता’.

इस याचिका के खारिज होने के साथ गुजरात विश्वविद्यालय के लिए केजरीवाल और राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.

हाईकोर्ट द्वारा 2016 के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को पलटने के बाद केजरीवाल ने एक समीक्षा याचिका दायर की थी. सीआईसी ने गुजरात विश्वविद्यालय को पीएम मोदी की डिग्री का विवरण प्रदान करने का आदेश दिया था. यह आदेश सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई अधिनियम) के तहत केजरीवाल के एक आवेदन पर पारित किया गया था.

गुजरात विश्वविद्यालय ने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह ने मार्च के फैसले के कुछ दिनों बाद मानहानिकारक बयान दिए थे.

जस्टिस बीरेन वैष्णव की अदालत ने गुरुवार को कहा कि वह विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ‘प्रस्तुतीकरण से सहमत होंगे’ कि जब हाईकोर्ट ने मार्च में विश्वविद्यालय की याचिका को अनुमति दी तो केजरीवाल ‘अपने कानूनी उपाय खो चुके थे’.

अदालत ने कहा, ‘इस समीक्षा आवेदन को इस तरह से आगे बढ़ाकर एक उद्देश्य का पालन करने में अपनी बात जारी रखना सार्वजनिक जीवन में अच्छी रुचि को प्रतिबिंबित नहीं करता है.’

जस्टिस वैष्णव ने आगे कहा, ‘अदालत इस बात से अवगत है कि समीक्षा की मांग करना कानून में उपलब्ध एक उपाय है और हो सकता है, लेकिन समीक्षा आवेदन में इस अदालत के समक्ष उठाए गए आधारों और तर्कों को देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक (केजरीवाल) ने केवल कानूनी सहारा लेने के उद्देश्य से इस उपाय को लागू करने की मांग की है.’

हालांकि, जस्टिस वैष्णव की अदालत ने समीक्षा याचिका खारिज करते हुए कोई जुर्माना नहीं लगाया.

बीते मार्च महीने में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा सीआईसी के आदेश को रद्द करने के बाद केजरीवाल की टिप्पणियों पर मानहानि का मामला दायर किया गया था, जिसमें विश्वविद्यालय से मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए कहा गया था. हाईकोर्ट ने जानकारी मांगने वाले केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था.

अपनी समीक्षा याचिका में केजरीवाल ने पीएम मोदी की डिग्री के मामले पर कायम रहने के लिए अदालत द्वारा उन पर लगाए गए जुर्माने को चुनौती दी थी. हालांकि, समीक्षा में अदालत ने माना कि जुर्माना उचित था, क्योंकि केजरीवाल ने ‘इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए पूरी कार्यवाही को भटकाने की कोशिश की’.

गुरुवार के फैसले का मतलब है कि केजरीवाल को अब 25,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पर्सी कविना ने दलील दी कि मार्च में डिग्री को वेबसाइट पर प्रदर्शित करने का दावा करने वाला अदालत का आदेश तथ्यात्मक रूप से गलत है.

उन्होंने कहा कि जांच करने पर वेबसाइट केवल ‘ओआर’ (ऑफिस रजिस्टर) नामक दस्तावेज दिखाती है, डिग्री नहीं. उनके अनुसार, यह गलत सूचना, जिसके कारण अदालत की टिप्पणी आई कि आवेदक को विवाद समाप्त कर देना चाहिए था, रिकॉर्ड पर एक स्पष्ट त्रुटि है.

केजरीवाल ने यह भी आरोप लगाया कि डिग्री वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं होने के कारण, निर्णय ‘रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि से ग्रस्त है और उन्हें अनुमति देने से न्याय विफल हो जाएगा’.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, इस मामले में गुजरात विश्वविद्यालय ने तर्क दिया था कि आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग हिसाब बराबर करने और विरोधियों पर बचकानी चुटकी लेने के लिए किया जा रहा है. विश्वविद्यालय ने अदालत को यह भी बताया था कि सीआईसी का आदेश प्रधानमंत्री की निजता को भी प्रभावित करता है.

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ‘गैर-जिम्मेदाराना बचकानी जिज्ञासा को सार्वजनिक हित नहीं कहा जा सकता है’.

मेहता ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय ने पहले ही प्रमाण-पत्र सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया है और आरटीआई के तहत किसी तीसरे व्यक्ति को प्रधानमंत्री की विश्वविद्यालय डिग्री की प्रति देने की कोई बाध्यता नहीं है.

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