किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से असल में क्या चाहिए और इसे मांगने का कारण स्पष्ट रूप से लिखित रूप में बताया जाना चाहिए. हालांकि, भारत में पुलिस या एजेंसियों द्वारा ऐसी किसी प्रणाली का पालन नहीं किया जाता है.
नरेंद्र मोदी सरकार चाहती है कि भारतीय नागरिक अपने निजी और प्रोफेशनल जीवन को डिजिटल तरीके से चलाएं, जहां फाइनेंस, टैक्स, स्वास्थ्य और रिसर्च सहित हर तरह का पेशेवर डेटा और सभी तरह की जानकारी डिजिटल उपकरण (डिवाइस) में मौजूद हो. इसके बावजूद जब पुलिस या अन्य एजेंसियां जांच के दौरान आपकी डिवाइस जब्त करती हैं तो शायद ही भारत के कानून में इसके लिए कोई प्रक्रिया या दिशानिर्देश बताए गए हैं.
अधिकांश लोकतंत्र, चाहे अमेरिका में हों या यूरोप में, क़ानूनी वॉरंट के बिना उपकरणों को जब्त करने की अनुमति नहीं देते हैं. न्यायिक वॉरंट पाने के बाद भी पुलिस को, कौन-सी जानकारी और किस तरीके से निकाली जानी है, इससे संबंधित उचित प्रक्रिया का पालन करना होता है. विस्तृत दिशानिर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि प्राइवेसी या निजता की संवैधानिक गारंटी से समझौता न हो. पिछले हफ्ते भारत में याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने शीर्ष अदालत में उपकरणों की जब्ती के लिए दिशानिर्देश पेश किए, जिन्हें संभावित विचार के लिए सरकार को भेजा गया है.
प्रसिद्ध शिक्षाविदों- राम रामास्वामी, माधव प्रसाद, सुजाता पटेल, दीपक मलघाण और मुकुल केसवन ने सरकारी कारिंदों- आमतौर पर पुलिस द्वारा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तलाशी को विनियमित करने के लिए 2021 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान इन याचिकाकर्ताओं ने सुझाव के तौर पर दिशानिर्देशों का एक सेट पेश करते हुए आग्रह किया है कि इसे अदालत द्वारा निर्देश के रूप में जारी किया जाए.
पिछले हफ्ते फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की एक अन्य याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि पत्रकारों के उपकरणों तक एक्सेस की अनियंत्रित शक्ति अस्वीकार्य है, केंद्र से इसी तरह के दिशानिर्देश तैयार करने को कहा था.
उम्मीद है कि सरकार राम रामास्वामी मामले में दिए गए दिशानिर्देशों के मसौदे पर सार्थक प्रतिक्रिया देगी. अंतरिम दिशानिर्देशों में अन्य परिपक्व लोकतांत्रिक देशों में अपनाई जाने वाली उचित प्रक्रिया शामिल हैं, जो भारत सरकार को कुछ मार्गदर्शन दे सकती हैं.
अमेरिका में निजता संरक्षण अधिनियम (प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट) के तहत फर्स्ट अमेंडमेंट एक्टिविटीज़ में शामिल लोगों से संबंधित किसी भी सामग्री की तलाशी या जब्ती पर रोक है. इस एक्टिविटी के तहत पत्रकार, रचनात्मक कलाकार, शिक्षाविदों और वैज्ञानिक शोधकर्ताओं जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित काम संरक्षित हैं. ऐसी सामग्रियों को साक्ष्य के स्रोत के रूप में तलाशी से छूट मिली हुई है.
यूनाइटेड किंगडम (यूके) में पहुंच से बाहर रखी गई, विशेषाधिकार प्राप्त या निजी सामग्री तक पहुंच के लिए बहुत कड़ी शर्तें हैं, इसके एक्सेस की इजाज़त तभी है, जब न्यायिक वॉरंट द्वारा इसे अनिवार्य बताया गया हो.
भारत में याचिकाकर्ता शिक्षाविदों द्वारा पेश दिशानिर्देशों के सेट में यूके और यूएसए के कानूनों को शीर्ष अदालत के समक्ष रखा गया है. इन देशों में न्यायिक वॉरंट के बगैर तलाशी नियम के बजाय अपवाद है लेकिन भारत में हाल इसके बिल्कुल उलट हैं.
किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से असल में क्या चाहिए और इसे मांगने का कारण स्पष्ट रूप से लिखित रूप में बताया जाना चाहिए. हालांकि भारत में पुलिस या एजेंसियों द्वारा ऐसी किसी प्रणाली का पालन नहीं किया जाता है.
हाल ही में, ऑनलाइन मीडिया प्लेटफ़ॉर्म न्यूज़क्लिक से जुड़े 90 पत्रकारों के मामले में पुलिस ने अंतरिम दिशानिर्देशों में प्रस्तावित किसी भी प्रक्रिया का पालन किए बिना, मनमाने ढंग से लगभग 250 डिवाइस (कुछ मामलों में, एक व्यक्ति से तीन या अधिक डिवाइस) जब्त किए हैं.
असल में न्यूज़क्लिक मामले के मुख्य आरोपी भी अब तक उनके ख़िलाफ़ लगे उन विशिष्ट आरोपों जानने की मांग कर रहे हैं, जिनके लिए उन पर कठोर यूएपीए लगाया गया है. मामले की शिकायत में इसके बारे में स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है.
इस मामले में जिन पत्रकारों के उपकरण जब्त किए गए हैं उनमें से अधिकांश फ्रीलांसर हैं और उन्हें यह नहीं बताया गया है कि उनके डिवाइस से पुलिस को असल में क्या चाहिए. उनका निजी डेटा और जिंदगीभर का काम अब पुलिस के पास है. न्यूज़क्लिक का केस एक बानगी है, जो उपकरणों की जब्ती के लिए उचित प्रक्रिया स्थापित करने की मांग के बारे में बताता है.
राम रामास्वामी मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश दिशानिर्देशों के अनुसार, जब्त किए गए उपकरण की पहले इसके मालिक/सरकारी एजेंट (पुलिस या जांच एजेंसी) की उपस्थिति में एक स्वतंत्र प्राधिकारी द्वारा जांच की जानी चाहिए, और सभी विशेषाधिकार प्राप्त, निजी और प्रोफेशनल सामग्री की पहचानकर उसे अलग किया जाना चाहिए, संरक्षित किया जाना चाहिए और तुरंत लौटा देना चाहिए. केवल जांच से सीधे संबंधित सामग्री ही ली जाए- उसकी तीन प्रतियां (copies) बनें- एक उपकरण मालिक के लिए, एक को स्वतंत्र प्राधिकारी के पास सीलबंद छोड़ दिया जाए और तीसरी को जांच के लिए ले जाया जाए. साथ ही, हर चरण पर हैश वैल्यू नोट की जाए. (हैश वैल्यू से यह मालूम चलता है कि जब्ती के समय डिवाइस में कितना डेटा था, ताकि यह पता चल सके कि बाद में इसके साथ छेड़छाड़ की गई है या नहीं.)
आखिर में, अंतरिम दिशानिर्देश यह बुनियादी बिंदु है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से अवैध रूप से जब्त की गई सामग्री को किसी भी अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. ये विचार किसी सभ्य लोकतंत्र के लिए बिल्कुल बुनियादी बात है, जो नागरिकों को मौलिक संवैधानिक गारंटी देते हैं.
यह उम्मीद करना पूरी तरह से उचित है कि राम रामास्वामी मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन द्वारा सुझाए गए अंतरिम दिशानिर्देशों से कुछ ठोस सामने आएगा.
सरकार-प्रायोजित स्पायवेयर अटैक के जरिये मोबाइल फोन तक रिमोट एक्सेस (दूर से पहुंच) से संबंधित मामलों में न्यायिक वॉरंट की अनिवार्य कानूनी जरूरत अलग मसला है. यहां भी, डिवाइस पर सभी तरह के निजी डेटा को अवैध रूप से एक्सेस किया जाता है और फोन की हर गतिविधि, जिसमें फोन इस्तेमाल न होने पर भी उस व्यक्ति की बातचीत सुन सकना भी शामिल है, को टैप किया जाता है.
बीते दिनों एप्पल द्वारा भारत के कुछ विपक्षी नेताओं और पत्रकारों को उनके आईफोन पर संभावित ‘सरकार प्रायोजित’ स्पायवेयर हमले के बारे में जारी हालिया अलर्ट के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर (जिन्हें अलर्ट मिला था) ने कानूनी प्रक्रियाओं जैसे कि नागरिकों के मोबाइल फोन तक पहुंच से पहले न्यायिक आदेश लेने की जरूरत का मुद्दा उठाया था. यह मुद्दा पेगासस विवाद के दौरान भी सामने आया था जब यह तर्क दिया गया था कि मौजूदा कानून मोबाइल फोन पर स्पायवेयर अटैक, जिससे डिवाइस में उपलब्ध सारा डेटा उजागर किया जा सकता है, की अनुमति नहीं देते हैं.
चाहे उपकरणों को जब्त करने की बात हो या सैन्य स्पायवेयर के इस्तेमाल से डिवाइस तक रिमोट एक्सेस की, देश में सार्थक कानूनी प्रावधानों की तत्काल जरूरत है. अन्यथा, संवैधानिक मूल्य के रूप में निजता या प्राइवेसी शब्द का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा.
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