विनोद अडानी उन भारतीयों में शामिल, जिन्हें 2014-2020 के बीच साइप्रस का गोल्डन पासपोर्ट मिला: रिपोर्ट

‘साइप्रस निवेश कार्यक्रम’ के के नाम से भी जानी जाने वाली ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना 2007 में शुरू की गई थी. इसके तहत आर्थिक रूप से प्रबल व्यक्तियों को साइप्रस की नागरिकता दी गई, जिससे इस देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित हुआ. अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी हिंडनबर्ग रिसर्च की जांच के बाद सुर्खियों में आए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Unsplash)

‘साइप्रस निवेश कार्यक्रम’ के के नाम से भी जानी जाने वाली ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना 2007 में शुरू की गई थी. इसके तहत आर्थिक रूप से प्रबल व्यक्तियों को साइप्रस की नागरिकता दी गई, जिससे इस देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित हुआ. अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी हिंडनबर्ग रिसर्च की जांच के बाद सुर्खियों में आए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Unsplash)

नई दिल्ली: 2014 और 2020 के बीच 66 भारतीय टैक्स हेवन की ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना के तहत तीन महीने से एक साल के भीतर साइप्रस पासपोर्ट प्राप्त करने में कामयाब रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के सहयोग से ‘साइप्रस कॉन्फिडेंशियल’ सीरीज के एक भाग के रूप में अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है.

साइप्रस कॉन्फिडेंशियल अंग्रेजी और ग्रीक भाषा में 3.6 मिलियन दस्तावेजों की एक विश्वव्यापी ऑफशोर जांच है, जो रूसी कुलीन वर्गों सहित वैश्विक अभिजात वर्ग (Global Elites) द्वारा टैक्स हेवन के रूप में साइप्रस में स्थापित कंपनियों का खुलासा करती है.

‘साइप्रस निवेश कार्यक्रम’ के रूप में भी जानी जाने वाली ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना 2007 में शुरू की गई थी. इसने आर्थिक रूप से प्रबल व्यक्तियों को साइप्रस की नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाया, जिससे मध्य पूर्व के इस देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित हुआ.

‘गोल्डन पासपोर्ट’ लेने में कामयाब रहे लोगों में अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी भी शामिल हैं, जो हिंडनबर्ग रिसर्च की जांच में सुर्खियों में आए थे. इनके अलावा बर्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड के अध्यक्ष और संस्थापक पंकज ओसवाल और रियल एस्टेट कारोबारी सुरेंद्र हीरानंदानी भी इस सूची में हैं.

यूरोपीय आयोग की वेबसाइट के अनुसार, साइप्रस ने अपनी ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना को रद्द करते हुए 1 नवंबर, 2020 को नए आवेदन लेना बंद कर दिया था. हालांकि, इसने लंबित आवेदनों पर कार्रवाई जारी रखी. परिणामस्वरूप यूरोपीय आयोग ने 9 जून, 2021 को साइप्रस को एक नोटिस भेजने का निर्णय लिया. तब से साइप्रस ने आवेदनों पर कार्रवाई करना बंद कर दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, कथित दुरुपयोग और आपराधिक आरोपों, संदिग्ध चरित्र वाले लोगों और पीईपी (Politically Exposed Persons/वह व्यक्ति, जो अपनी प्रमुख स्थिति या प्रभाव के कारण रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार में शामिल होने के प्रति अधिक संवेदनशील होता है) को साइप्रस पासपोर्ट प्राप्त करने की अनुमति देने के कारण इस योजना को रद्द कर दिया गया था.

कुल 83 व्यक्तियों के नामों को समीक्षा और संभावित निरस्तीकरण के लिए चिह्नित किया गया था. उनमें से अधिकांश पहले रूस के नागरिक थे और आंकड़ों के अनुसार, अधिकांश को ‘निवेशकों द्वारा गलत बयान’ वाले आवेदनों के लिए चिह्नित किया गया था.

सितंबर 2020 में साइप्रस के अटॉर्नी जनरल जॉर्जियोस सेवविड्स द्वारा नियुक्त और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त अध्यक्ष मायरोन निकोलाटोस की अध्यक्षता में एक आयोग ने इन संभावित निरस्तीकरण (Revocations) की सूची बनाई थी.

हालांकि, साइप्रस सरकार ने अभी तक आधिकारिक तौर पर यह खुलासा नहीं किया है कि जांच के दायरे में आने वाले कितने लोगों की साइप्रस नागरिकता रद्द कर दी गई है.

निरस्तीकरण सूची में केवल एक भारतीय

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साइप्रस पासपोर्ट के प्रस्तावित निरस्तीकरण की सूची में केवल एक भारतीय अनुभव अग्रवाल शामिल हैं. अनुभव एक व्यवसायी हैं, जिसका ‘गोल्डन पासपोर्ट’ 2 नवंबर 2016 को चार महीने के भीतर स्वीकृत किया गया था.

निकोलाटोस आयोग की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि अग्रवाल का नाम नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) घोटाले में आया था और वह नागरिकता के लिए अपने आवेदन में संदिग्ध कंपनियों के साथ अपने संबंधों का उल्लेख करने में विफल रहे थे.

3,600 करोड़ रुपये के एनएसईएल घोटाले में ‘मुख्य आरोपी’ होने के नाते अग्रवाल को अगस्त 2020 में अबू धाबी में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. जून 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया.

भारतीय अधिकारियों के साथ कानूनी मुद्दों के बावजूद अग्रवाल अब बंद हो चुकी योजना के तहत साइप्रस की नागरिकता प्राप्त करने वाले एकमात्र भारतीय नहीं हैं.

तमिलनाडु के व्यवसायी और तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष नेसामणिमारन मुथु, जिन्हें एमजीएम मारन के नाम से जाना जाता है, ने भी 2016 में साइप्रस की नागरिकता हासिल की थी. उनका आवेदन मात्र दो महीने में ही मंजूर हो गया था. 2017 में उनके दोनों बच्चों को भी नागरिकता मिल गई थी.

दिसंबर 2022 में ईडी ने मारन की कंपनी एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड की 200 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की थी.

ईडी ने एक मीडिया विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि उनकी 293 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई है, क्योंकि मारन ने भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी के बिना सिंगापुर में दो कंपनियों में इतना ही विदेशी निवेश किया था.

एजेंसी ने एक आधिकारिक विज्ञप्ति में मारन की साइप्रस नागरिकता का भी उल्लेख किया है.

ईडी ने दावा किया, ‘भारतीय कानूनों की पहुंच से बचने के लिए एमजीएम मारन ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी. इतना ही नहीं यह भी पाया गया कि उन्होंने एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड (उनकी प्रमुख कंपनी) से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आड़ में अपनी संपत्ति को भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की पहुंच से दूर रखने के लिए भारत से विदेशों में स्थानांतरित करना भी शुरू कर दिया था.’

‘साइप्रस कॉन्फिडेंशियल’ जांच के अनुसार, ‘साइप्रस के आंतरिक मंत्रालय ने कहा कि उसने ‘233 व्यक्तियों को नागरिकता न देने का निर्णय लिया है और उनमें से 68 व्यक्ति निवेशक हैं और 165 निवेशकों के परिवार के सदस्य हैं.’

विनोद अडानी

जनवरी 2023 में अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में विनोद अडानी की ऑफशोर होल्डिंग्स का विवरण दिया गया था. हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर ऑफशोर टैक्स हेवन के अनुचित उपयोग का आरोप लगाया था.

बीते 24 जनवरी की हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि विनोद अडानी द्वारा नियंत्रित संस्थाओं को ‘मनी लॉन्ड्रिंग और शेयर-मूल्य में हेरफेर’ के लिए इस्तेमाल किया गया था.

इस रिपोर्ट, जिसमें संपूर्ण मॉरीशस कॉरपोरेट रजिस्ट्री को डाउनलोड करना और सूचीबद्ध करना शामिल था, ने खुलासा किया था कि विनोद अडानी कई करीबी सहयोगियों के माध्यम से ‘ऑफशोर शेल कंपनियों की एक विशाल श्रृंखला का प्रबंधन करते हैं’, जिन्होंने ‘सामूहिक रूप से सौदों की प्रकृति के आवश्यक प्रकटीकरण के बिना भारतीय अडानी समूह की सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध और निजी संस्थाओं में अरबों डॉलर स्थानांतरित किए हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने विनोद अडानी या करीबी सहयोगियों द्वारा नियंत्रित 38 मॉरीशस शेल कं​पनियों की पहचान की है. इसने उन कंपनियों की भी पहचान की, जिन्हें साइप्रस, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और कई कैरेबियाई द्वीपों में विनोद अडानी द्वारा ‘गुप्त रूप से नियंत्रित’ किया गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, इन शेल कंपनियों की मदद से विनोद अडानी धोखाधड़ी को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘ऑफशोर शेल कंपनियों की एक विशाल श्रृंखला’ के प्रबंधन में प्रमुख व्यक्ति थे. इसमें कहा गया है कि हेराफेरी से अडानी कंपनियों को वित्तीय स्थिति बनाए रखने में मदद मिल रही है.

अडानी समूह ने इन सभी आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.

समूह ने कहा था, ‘यह केवल किसी विशिष्ट कंपनी पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, तथा भारत की विकास गाथा और महत्वाकांक्षाओं पर एक सुनियोजित हमला है.’

अडानी समूह के इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता. भारत एक जीवंत लोकतंत्र और उभरती महाशक्ति है. अडानी समूह ‘व्यवस्थित लूट’ से भारत के भविष्य को रोक रहा है.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद ही अडानी ग्रुप के बिजनेस ऑपरेशंस में ज्यादातर लो-प्रोफाइल रहने वाले विनोद अडानी सुर्खियों में आए.

अडानी समूह ने पहले कहा कि विनोद अडानी ‘किसी भी अडानी सूचीबद्ध संस्थाओं या उनकी सहायक कंपनियों में कोई प्रबंधकीय पद नहीं रखते हैं और उनके दैनिक मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है’.

अडानी समूह ने मार्च महीने में अपने पहले के स्टैंड से पूरी तरह से यू-टर्न लेते हुए स्वीकार किया था कि गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी विभिन्न सूचीबद्ध संस्थाओं के ‘प्रवर्तक (Promoter) समूह’ का हिस्सा हैं.

बाद में समूह की ओर से कहा गया था कि ‘अडानी समूह और विनोद अडानी को एकरूप में देखा जाना चाहिए’.

साइप्रस की ​नागरिकता पाने वाले अन्य भारतीय

साइप्रस की नागरिकता प्राप्त करने वाले अन्य भारतीयों में उद्योगपति पंकज ओसवाल और उनकी पत्नी राधिका ओसवाल शामिल हैं.

पंकज ओसवाल, तरल अमोनियम निर्माता बर्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड के संस्थापक हैं. वह हाल ही में स्विट्जरलैंड में 200 मिलियन डॉलर में दुनिया के सबसे महंगे घरों में से एक खरीदने के लिए खबरों में थे.

रिपोर्ट में साइप्रस में पंकज ओसवाल द्वारा स्थापित कंपनी साइप्रोल लिमिटेड से संबंधित कई दस्तावेज शामिल हैं. साथ ही उनके नागरिकता आवेदन और अंतिम अनुमोदन का विवरण भी शामिल है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ओसवाल ने 28 अप्रैल 2017 को नागरिकता के लिए आवेदन किया था और लगभग एक साल बाद 4 अप्रैल, 2018 को उन्हें इसे प्रदान किया गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, संयोग से एक बार जब पंकज ओसवाल को साइप्रस की नागरिकता मिल गई, तो उन्होंने साइप्रोल लिमिटेड को बंद कर दिया. इसका प्रमाण वह प्राधिकरण है, जिस पर उन्होंने कनेक्टेडस्काई के लिए कंपनी के अंतिम लाभकारी मालिक (यूबीओ) के रूप में 22 मार्च 2019 को कंपनी को साइप्रस रजिस्ट्री से हटाने के लिए हस्ताक्षर किया था.

कनेक्टेडस्काई उन छह वित्तीय सेवा प्रदाताओं में से एक है, जिसकी 270 से अधिक खोजी पत्रकारों ने ‘साइप्रस कॉन्फिडेंशियल’ रिपोर्ट के लिए जांच की है.

अप्रैल 2016 में कर दावों को लेकर इस दंपति को ऑस्ट्रेलिया छोड़ने से अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया था.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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