बिहार सरकार की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि अगर किसी धार्मिक जुलूस में किसी विशेष कारण से तलवार या कोई अन्य हथियार ले जाना ज़रूरी हो तो इसे ले जाने वाले व्यक्ति को प्रशासन से पहले अनुमति लेनी होगी. इसके अलावा माइक और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग केवल भीड़ नियंत्रित करने के लिए किया जाएगा.
नई दिल्ली: बिहार सरकार ने सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए धार्मिक जुलूसों में तलवार, भाले, आग्नेयास्त्र (Firearms), लाठी और अन्य हथियारों के साथ-साथ हाई-डेसीबल वाले माइक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश कुमार सरकार ने गुरुवार (16 नवंबर) को सभी जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को एक आदेश जारी कर निर्णय की जानकारी दी.
विशेष सचिव (गृह विभाग) केएस अनुपम ने पत्र में कहा, ‘ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें माइक्रोफोन या लाउडस्पीकर से ऊंची आवाज में नारे लगाए गए और त्योहारों के समय धार्मिक जुलूसों के दौरान हथियारों के साथ प्रदर्शन किया गया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और गंभीर कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई.’
इस साल की शुरुआत में बिहार में कई सांप्रदायिक दंगे हुए थे.
पत्र में कहा गया है कि सिख धार्मिक समारोहों जैसी विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, जिस दौरान कृपाण (घुमावदार ब्लेड वाले चाकू) की अनुमति होती है, धार्मिक जुलूसों के दौरान हथियार ले जाना शस्त्र अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है.
पत्र में कहा गया है, ‘अगर किसी धार्मिक जुलूस में किसी विशेष कारण से तलवार या कोई अन्य हथियार ले जाना जरूरी हो तो इसे ले जाने वाले व्यक्ति को प्रशासन से अनुमति लेनी होगी.’
इसमें कहा गया है, ‘इसके अलावा प्रत्येक धार्मिक जुलूस की अनुमति देते समय 10 से 25 लोगों से उनके नाम, पते और आधार संख्या के साथ एक शपथ-पत्र लिया जाएगा कि वे कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखेंगे.’
धार्मिक जुलूसों के लिए किसी भी अनुमति में यह शर्त शामिल होगी कि माइक और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग केवल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए किया जाएगा और उनका डेसिबल स्तर किसी भी परिस्थिति में उस विशेष क्षेत्र के लिए दी गई अनुमति की सीमा से ऊपर नहीं जाएगा.
इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध मोबाइल ऐप्स की मदद से डेसीबल स्तर की जांच की जाएगी.
अनुपम ने द टेलीग्राफ को बताया, ‘हम स्कूलों, अस्पतालों, पूजा स्थलों और अन्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए डेसीबल स्तर पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा इरादा अन्य लोगों को परेशान किए बिना और नफरत फैलाए बिना धार्मिक जुलूसों की अनुमति देना है.’
अनुपम ने कहा कि राज्य पुलिस का आतंकवाद रोधी दस्ता कुछ समय से इस तरह के आदेश की मांग कर रहा था.
प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि धार्मिक जुलूसों की तस्वीरें और वीडियो कम से कम तीन महीने तक रिकॉर्ड और संग्रहीत किए जाएं, ताकि उनका उपयोग उल्लंघन करने वालों की पहचान करने और उन पर मामला दर्ज करने के लिए किया जा सके.