कोयले के आयात पर अडानी समूह की कथित अनियमितताएं फिर सवालों के घेरे में

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अडानी एंटरप्राइजेज और इसकी सहायक कंपनियां अदालती आदेशों के ज़रिये उन दस्तावेज़ों को जारी होने से रोक रही हैं जिनसे अडानी समूह द्वारा भारत में कोयला आयात का अधिक मूल्य लगाने, जिसके चलते उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ी है, की बात सामने आती है.

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गौतम अडानी. (फोटो साभार: Instagram/gautam.adani)

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अडानी एंटरप्राइजेज और इसकी सहायक कंपनियां अदालती आदेशों के ज़रिये उन दस्तावेज़ों को जारी होने से रोक रही हैं जिनसे अडानी समूह द्वारा भारत में कोयला आयात का अधिक मूल्य लगाने, जिसके चलते उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ी है, की बात सामने आती है.

गौतम अडानी. (फोटो साभार: Instagram/gautam.adani)

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अदालत के कागजात का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट में बताया है कि अडानी एंटरप्राइजेज और इसकी सहायक कंपनियों ने ‘उन दस्तावेजों के जारी होने को रोकने के लिए भारत और सिंगापुर में बार-बार कानूनी चुनौतियों से सफलतापूर्वक पार पाया है, जो भारत को अडानी के कोयला आयात की वास्तविक प्रकृति और मूल्य का विवरण देते हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में कोयला आयात में कथित अनियमितताओं का जिक्र होने के बाद से अडानी समूह सवालों के घेरे में है और एक बार फिर से निशाने पर है.

पिछले महीने ‘कोयला आयात के कथित अधिक मूल्यांकन के पर’ लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स की एक विस्तृत जांच ने कोयला आयात के कथित अधिक मूल्य लगाने को ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों और बिजली उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली बढ़ी हुई दरों से जोड़ा था.

9 अक्टूबर की कानूनी फाइलिंग में, जिसको लेकर रॉयटर्स ने शुक्रवार (17 नवंबर) को अपनी रिपोर्ट में बताया है, भारत के राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने ‘भारत के सुप्रीम कोर्ट से निचली अदालत के पिछले आदेश को रद्द करने के लिए कहा है, जिसने अधिकारियों को सिंगापुर से साक्ष्य जुटाने से रोकने की अनुमति अडानी को दी थी.’

समाचार एजेंसी के अनुसार, डीआरआई का कहना है, ‘कंपनी (अधिकारियों के साथ दस्तावेज साझा करने के कदम को) वर्षों से विफल करती रही है.

अडानी समूह ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है और रॉयटर्स से कहा है कि उसने चार साल से अधिक समय पहले मांगे गए विवरण एवं दस्तावेज़ प्रदान करके अधिकारियों के साथ ‘पूरा सहयोग’ किया था और उसके बाद जांचकर्ताओं द्वारा ‘कोई कमी या आपत्ति’ पेश नहीं की गई थी.

रॉयटर्स का कहना है कि भारत में 2024 के (लोकसभा) चुनाव से पहले राजनीतिक विरोधियों ने सरकारी फैसलों में अडानी के प्रति पक्षपात का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन पर दबाव बढ़ा दिया है.

रॉयटर्स ने लिखा है, ‘मोदी और अडानी, जो दोनों गुजरात से हैं, ने अनुचित व्यवहार से इनकार किया है.’

आयात मूल्य अधिक दिखाना = उपभोक्ताओं का बिजली के लिए अधिक भुगतान करना

फाइनेंशियल टाइम्स ने पिछले महीने सीमा शुल्क रिकॉर्ड से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर बताया था कि ‘ऐसा प्रतीत होता है कि अडानी समूह ने बाजार मूल्य से कहीं अधिक कीमत पर अरबों डॉलर का कोयला आयात किया है.’

इसमें कहा गया है कि ‘आंकड़े लंबे समय से चले आ रहे इन आरोपों का समर्थन करते हैं कि देश का सबसे बड़ा निजी कोयला आयातक अडानी ईंधन की लागत बढ़ा रहा है और लाखों भारतीय उपभोक्ताओं एवं व्यवसायों को बिजली के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है.’

2019 और 2021 के बीच के आंकड़ों की जांच से निष्कर्ष निकला कि ‘अडानी ने ताइवान, दुबई और सिंगापुर की ऑफशोर कंपनियों का इस्तेमाल करके 5 अरब डॉलर मूल्य का कोयला आयात किया, जो कई बार बाजार मूल्य से दोगुने से भी अधिक था.’

समाचार रिपोर्ट ने फिर से कोयला आयात के अधिक मूल्य निर्धारण के आरोपों की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो अडानी द्वारा इनकार किए जाने के बावजूद उनका पीछा कर रहे हैं. विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि अडानी समूह ‘आधुनिक भारत के सबसे बड़े घोटाले के पीछे हो सकता है.’

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने ताजा खुलासे का हवाला देते हुए संकेत दिया कि ‘दो वर्षों में 12,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम देश से बाहर भेजी गई होगी.’ कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि यह करोड़ों भारतीयों की जेब से चोरी करना है.

उन्होंने कहा कि फाइनेंशियल टाइम्स के ताजा खुलासे, जिसमें 2019 और 2021 के बीच 3.1 मिलियन टन की मात्रा वाले अडानी के 30 कोयला शिपमेंट की जांच की गई, में पाया गया कि कोयला व्यापार जैसे कम मार्जिन वाले व्यवसाय में भी 52 फीसदी लाभ अर्जित किया गया.

अडानी की कथित कोयला अनियमितताओं पर खबर देने वाले पत्रकारों को गुजरात पुलिस का समन

भाजपा ने लगातार इन आरोपों से इनकार किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीतियों, जिन्होंने हालिया समय में अडानी समूह को किसी भी अन्य समूह की तुलना में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने और भारत में बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को नियंत्रित करने की अनुमति दी है, के बीच कोई व्यक्तिगत मित्रता या संबंध है.

हालांकि, अडानी समूह के कामकाज में अनियमितता के आरोपों पर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों को ‘समन भेजने’ का गुजरात पुलिस का प्रयास कुछ और ही कहानी कहता है.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार (10 नवंबर) को फाइनेंशियल टाइम्स के दो पत्रकारों- बेंजामिन निकोलस ब्रुक पार्किन और क्लो नीना कोर्निश को ‘बलपूर्वक कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की, जिन्हें गुजरात पुलिस ने अडानी समूह के खिलाफ अगस्त में प्रकाशित एक लेख के संबंध मे तलब किया था.’

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट को दो अन्य पत्रकारों रवि नायर और आनंद मंगनाले को अडानी-हिंडनबर्ग विवाद की जांच के सिलसिले में अंतरिम सुरक्षा देनी पड़ी थी.

वहीं, अडानी समूह पर संसद में सवाल उठाने को लेकर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा से जुड़ा विवाद भी सुर्खियों में रहा है, जहां उन पर संसद सदस्यता खोने की तलवार लटक रही है.

द इकोनॉमिस्ट के अनुसार, क्रोनी पूंजीवाद रैंकिंग में भारत शीर्ष दस देशों में से एक है. विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक ने मई 2023 में भारत को 180 देशों में से 161वें स्थान पर रखा था.

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