मणिपुर के कांगपोकपी ज़िले में 20 नवंबर को हुई हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के दो व्यक्तियों की गोली लगने से मौत हो गई. वहीं, आदिवासी एकता समिति ने कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों पर हमले की निंदा करते ज़िले में ‘आपातकालीन बंद’ की घोषणा की है.
नई दिल्ली: मणिपुर के कांगपोकपी जिले में सोमवार (20 नवंबर) को हुई ताजा हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के दो व्यक्तियों की गोली लगने से मौत हो गई. कुकी-ज़ो समुदाय पर अकारण हमले की निंदा करते हुए कांगपोकपी स्थित आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) ने विरोध के संकेत के रूप में कांगपोकपी जिले में ‘आपातकालीन बंद’ की घोषणा की.
मृतकों की पहचान लुनटिनलाल वैफेई के पुत्र हेनमिनलेन वैफेई और लुनखोंगम हैंगशिंग के पुत्र थांगमिनलुन हैंगशिंग के रूप में की गई है.
आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) ने मीडिया को एक बयान जारी कर बताया कि यह घटना कांगचुप क्षेत्र में हुई थी. कुकी-ज़ो गांव के वालंटियर्स लीलोन वैफेई गांव और खारम वैफेई गांव के बीच सड़क पर गश्त कर रहे थे जिन पर कथित तौर पर राज्य कमांडो की वर्दी पहने हुए मेईतेई विद्रोहियों द्वारा घात लगाकर हमला किया गया. यह मामला कांगचुप क्षेत्र में हुई पिछली घटना से मिलता-जुलता है, जहां 12 सितंबर को भेष बदले हुए मेईतेई उग्रवादियों ने कथित तौर पर तीन वालंटियर्स की हत्या कर दी थी.
बढ़ती हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए सीओटीयू ने सोमवार को एक आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमें कांगपोकपी जिले में बंद की बात की गई.
सीओटीयू के अनुसार, हत्याओं के लिए जिम्मेदार समूह तेंगनौपाल जिले के सीमावर्ती शहर मोरेह में सक्रिय छिपे हुए विद्रोहियों का एक ही समूह है. सीओटीयू ने इस समूह द्वारा किए गए विभिन्न कथित अत्याचारों की सूचना दी, जिसमें चर्च के धन को लूटना, वाहनों को जलाना, महिलाओं और बच्चों को परेशान करना और घरों को ध्वस्त करना शामिल है.
मोरेह में एक हेलीपैड के निर्माण की देखरेख कर रहे मणिपुर पुलिस अधिकारी की मंगलवार, 31 अक्टूबर को संदिग्ध उग्रवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने कहा कि हालिया हिंसा में मारे गए लोग हाल ही में हुई बारिश से क्षतिग्रस्त लमका-कांगपोकपी सड़क की मरम्मत कर रहे थे. अपने दोस्तों को एक निर्दिष्ट स्थान पर छोड़ने के बाद जब वे लीमाखोंग लौटने का प्रयास कर रहे थे, तो उन पर घात लगाकर हमला किया गया, जहां से उन्होंने अपने दोस्तों को छोड़ा था, वहां से केवल 50 मीटर की दूरी पर. चूंकि पीड़ित और उनके दोस्त निहत्थे थे, इसलिए वे अपना बचाव नहीं कर पाए.
मृतकों में से एक हेनमिनलेन वैफेई लीमाखोंग में तैनात 6वीं आईआरबी के कर्मी के रूप में कार्यरत थे.
इस बीच, मणिपुर पुलिस और केंद्रीय बलों ने टेंग्नौपाल, काकचिंग, थौबल और इंफाल पश्चिम जिले में फ्लैग मार्च किया.
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
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