विज्ञापनों में भ्रामक दावे करने को लेकर पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट की फटकार समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर/pixabay)

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सुप्रीम कोर्ट ने आधुनिक चिकित्सा (मॉडर्न मेडिसिन) प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई है. लाइव लॉ के अनुसार, मंगलवार को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर याचिका सुनते हुए हुए अदालत ने कंपनी को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि पतंजलि आयुर्वेद के ऐसे सभी झूठे और भ्रामक विज्ञापनों को तुरंत बंद करना होगा. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि अदालत ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगी और हर उस उत्पाद, जिसके बारे में झूठा दावा किया जाता है कि यह एक विशेष बीमारी को ‘ठीक’ कर सकता है, पर 1 करोड़ रुपये जुर्माना लगाने के बारे में सोचेगी. इसके बाद कोर्ट ने निर्देश दिया कि पतंजलि आयुर्वेद भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा और यह भी सुनिश्चित करेगा कि प्रेस में उसके द्वारा हल्के बयान न दिए जाएं. पीठ ने यह भी जोड़ा कि वह इस मुद्दे को ‘एलोपैथी बनाम आयुर्वेद’ नहीं बनाना चाहती बल्कि उसका मकसद भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों की समस्या का असल समाधान ढूंढना है.

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की एक उच्च स्तरीय समिति ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों को शामिल करने की सिफारिश की है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, सामाजिक विज्ञान के लिए स्कूली पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए बनी इस समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर और पद्मश्री से सम्मानित इतिहासकार प्रोफेसर सीआई आइज़ैक ने इस बात पर जोर देते हुए कि कक्षा 7 से 12 तक के छात्रों को रामायण और महाभारत पढ़ाना महत्वपूर्ण है, कहा, ‘हमारा सोचना है कि किशोरावस्था में छात्रों के अंदर अपने राष्ट्र के लिए आत्मसम्मान, देशभक्ति और गौरव का निर्माण होता है. हर साल हजारों छात्र देश छोड़कर दूसरे देशों में नागरिकता चाहते हैं क्योंकि उनमें देशभक्ति की कमी है. इसलिए, उनके लिए अपनी जड़ों को समझना और अपने देश और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम विकसित करना महत्वपूर्ण है.’ समिति द्वारा कक्षा की दीवारों पर संविधान की प्रस्तावना लिखने की भी सिफारिश की गई है. इससे पहले इसी समिति ने सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ लिखने की सिफारिश की थी.

ओडिशा के एक नगर निकाय द्वारा एक श्मशान घाट को ‘केवल ब्राह्मणों के अंतिम संस्कार के लिए’ इस्तेमाल करने देने की खासी आलोचना हो रही है. एनडीटीवी के अनुसार, राज्य की 155 साल पुरानी केंद्रपाड़ा नगर पालिका ने शहर के हज़ारीबाग़ इलाके में एक श्मशान घाट के प्रवेश द्वार पर ‘ब्राह्मण श्मशान घाट’ का साइनबोर्ड भी लगवाया है. स्थानीय सूत्रों के मुताबिक श्मशान का उपयोग लंबे समय से ब्राह्मण जाति के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए किया जाता रहा है, लेकिन हाल ही में सरकारी अनुदान से हुए रेनोवेशन के बाद आधिकारिक साइन बोर्ड लगाया गया था. इसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं और दलित एक्टिविस्ट ने आक्रोश जाहिर किया है. ओडिशा दलित समाज की जिला इकाई के अध्यक्ष नागेंद्र जेना ने कहा कि ऐसा करके सरकारी संस्था देश के कानून तोड़ रही है और जातिगत भेदभाव को बढ़ावा दे रही है.

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राजभवन में ‘जासूसी’ किए जाने का आरोप लगाया है. लाइव मिंट के अनुसार, बोस ने कहा कि उन्हें इस बारे में ‘विश्वसनीय जानकारी’ मिली है और इस मामले को संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष उठाया गया है. हालांकि, बोस ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि इसके पीछे कौन हो सकता है. सितंबर में राज्य पुलिस द्वारा कथित तौर पर बोस की गतिविधियों पर निगरानी रखने के आरोप के बाद राजभवन के कार्यालय और आवासीय अनुभागों में कोलकाता पुलिस की जगह सीआरपीएफ जवानों को तैनात किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने दो सिख वकीलों की हाईकोर्ट जज बनाने की कीजियम की सिफारिश को मंज़ूरी न देने पर केंद्र को फटकार लगाई है. बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए वकील हरमीत सिंह ग्रेवाल और दीपिंदर सिंह नलवा के नामों को मंजूरी देने में सरकार की विफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि  न्यायाधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति के लिए ‘पिक एंड चूज़’ वाले रवैये से शर्मिंदा करने वाले नतीजे सामने आएंगे. ग्रेवाल और नलवा उन पांच वकीलों में शामिल थे, जिनकी सिफारिश कॉलेजियम ने की थी, हालांकि केंद्र सरकार ने तीन अन्य नामों की नियुक्ति को तो अधिसूचित कर दिया, लेकिन ग्रेवाल और नलवा के नामों को मंज़ूरी नहीं दी.

राजस्थान के कोटा शहर में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं से जुड़ी एक याचिका सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी छात्र आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को निशाना नहीं बना सकते. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने निजी कोचिंग संस्थानों के नियमन और उनके न्यूनतम मानकों को निर्धारित करने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं. अदालत ने कहा कि कोचिंग संस्थानों के कारण आत्महत्याएं नहीं हो रही हैं. आत्महत्याएं होती हैं, क्योंकि माता-पिता बच्चों से अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, जिन्हें वह पूरा नहीं कर पाते. इस वर्ष कोटा जिले में 26 छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं.