महाराष्ट्र: गढ़चिरौली में 8 महीने से जारी आदिवासी आंदोलन को जबरन बंद कराया, 21 लोग गिरफ़्तार

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के टोडगट्टा में 70 से अधिक आदिवासी गांवों के लोग सुरजागढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित छह लौह अयस्क खदानों के ख़िलाफ़ पिछले आठ महीनों से शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस द्वारा आंदोलन ख़त्म कराए जाने पर प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है. उन्होंने गिरफ़्तार किए गए लोगों को तत्काल रिहा करने की मांग की.

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पुलिस कार्रवाई के बाद टोडगट्टा का आंदोलन स्थल. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के टोडगट्टा में 70 से अधिक आदिवासी गांवों के लोग सुरजागढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित छह लौह अयस्क खदानों के ख़िलाफ़ पिछले आठ महीनों से शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस द्वारा आंदोलन ख़त्म कराए जाने पर प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है. उन्होंने गिरफ़्तार किए गए लोगों को तत्काल रिहा करने की मांग की.

पुलिस कार्रवाई के बाद टोडगट्टा का आंदोलन स्थल. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: एक पुलिस दल ने 20 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के टोडगट्टा में उस जगह को घेर लिया और नष्ट कर दिया, जहां 70 से अधिक आदिवासी गांवों के प्रदर्शनकारी जिले के सुरजागढ़ क्षेत्र में प्रस्तावित और नीलाम की गई छह लौह अयस्क खदानों के खिलाफ पिछले आठ महीनों से शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे थे.

प्रदर्शनकारियों के अनुसार, पुलिस ने विरोध प्रदर्शन के सभी मुख्य नेताओं को चुनकर अलग कर दिया, उनके सामानों की जबरदस्ती तलाशी ली. इसके बाद आंदोलन के आठ नेताओं को बलपूर्वक हेलीकॉप्टर से ले जाया गया और उनके फोन जब्त कर लिए गए. आठ में मंगेश नरोटी, प्रदीप हेडो, साई कावडो, गिल्लू कावडो, लक्ष्मण जेट्टी, महादु कावडो, निकेश नरोटी और गणेश कोरिया शामिल थे.

पुलिस ने गांव में झोपड़ियां भी तोड़ और जला दीं और कुछ प्रदर्शनकारियों का सामान जब्त कर लिया.

इसके अलावा, सोशल मीडिया पर साझा किए गए आंदोलन स्थल के एक वीडियो में पुलिस अधिकारी लोगों को चुप रहने के लिए डराने-धमकाने और किसी भी वीडियो या कैमरा फुटेज को शूट करने से रोकने के लिए लाठियों का इस्तेमाल करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

मैदान पर मौजूद प्रदर्शनकारियों ने यह भी उल्लेख किया कि क्रूरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया और परिणामस्वरूप उनमें से कई लोगों को चोटें आईं. सिर पर चोट लगने के कारण कुछ लोग बेहोश भी हो गए. आठ नेताओं के अलावा करीब 25 प्रदर्शनकारियों को ट्रकों में भरकर ले जाया गया.

20 नवंबर की देर रात तक हिरासत में लिए गए लोगों की स्थिति या ठिकाने का कोई अता-पता नहीं था. विरोध प्रदर्शन के पीछे लोगों के संगठन दमकोंडवाही बचाओ संघर्ष समिति ने कहा था कि उसे संदेह है कि उन्हें गढ़चिरौली जिला मुख्यालय में ले जाया गया था.

अब यह पुष्टि हो गई है कि आठ नेताओं के साथ-साथ जिन 21 अन्य प्रदर्शनकारियों को उठाया गया था, उन्हें वर्तमान में एटापल्ली पुलिस स्टेशन में रखा गया है और उन सभी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का इस्तेमाल) लगाई गई है.

पुलिस कार्रवाई के बाद टोडगट्टा आंदोलन स्थल. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

प्रदर्शनकारियों ने कहा है कि पुलिस ने गिरफ्तार किए गए सभी 21 लोगों के लिए आठ दिन की हिरासत रिमांड का अनुरोध किया था और यह उसे मिल भी गई. उन्हें चंद्रपुर जेल भेजा जाएगा.

पुलिस द्वारा दायर हिरासत रिमांड अनुरोध को कार्यकर्ताओं द्वारा ‘अत्यधिक चिंताजनक’ भी बताया गया है, क्योंकि इसमें दावा किया गया है कि गिरफ्तार किए गए लोगों ने पुलिस के साथ मारपीट करने और उन्हें मारने की कोशिश की, उनके पास विस्फोटक थे और उन्हें माओवादियों द्वारा वित्तपोषित किया गया था- कार्यकर्ताओं के मुताबिक, यह सब अफवाह है.

रिमांड अनुरोध में कहा गया है कि पुलिस गिरफ्तार किए गए लोगों से गहन पूछताछ करने का इरादा रखती है ताकि ‘संबंधित घटना में उन्होंने कहां और कैसे साजिश रची, इसका पता लगाया जा सके; प्रासंगिक सबूत हासिल किए जा सकें; माओवादी संगठनों द्वारा प्रदान किए जा रहे समर्थन का खुलासा किया जा सके और विस्फोटक लगाने एवं माओवादी संगठनों के साथ जुड़ाव के गंभीर अपराध के संबंध में आरोपियों के भविष्य के व्यवहार के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सके.

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है. इनका कहना है कि उन्हें गिरफ्तार किए गए लोगों के सकुशल होने को लेकर डर है और उन्होंने मांग की कि उन्हें तत्काल रिहा किया जाए.

पुलिस की सफाई

पुलिस ने यह दावा करते हुए अपने कार्यों को उचित ठहराया है कि माओवादियों से प्रभावित और छले गए आंदोलनकारियों ने महाराष्ट्र के एक विशेष माओवादी विरोधी कमांडो बल ‘सी-60’ की टीम एवं गट्टा के सुरक्षाकर्मियों का रास्ता रोक दिया था, जो टोडगट्टा से होकर वांगेतुरी की ओर जा रहे थे, जहां महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर वांगेतुरी में एक पुलिस थाने का उद्घाटन होना था.

गढ़चिरौली पुलिस ने आगे दावा किया कि कुछ स्थानीय लोगों ने उनसे शिकायत की थी कि उन्हें माओवादियों द्वारा विरोध प्रदर्शन पर बैठने के लिए मजबूर किया जा रहा है और क्योंकि वे माओवादियों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शन से थक गए थे, इसलिए उन्होंने खुद ही प्रदर्शन स्थल पर बनीं झोपड़ियां हटा लीं.

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के तोडगट्टा में विरोध प्रदर्शन. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

हालांकि, हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों और ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अलावा, वीडियो और कैमरा फुटेज हमें कुछ और ही बताते हैं.

इसके अलावा आंदोलन के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में कहा कि टोडगट्टा में लोगों का जमावड़ा शांतिपूर्ण था, जिसका उद्देश्य पूरी तरह से प्रस्तावित खदानों और उनके द्वारा किए गए अवैध दमन का विरोध करना था.

कोऑर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गनाइजेशन की 2018 की एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट, जो गढ़चिरौली में सरकार-प्रायोजित उत्पीड़न की जांच करती है, बताती है कि एटापल्ली में खनन कंपनी, स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सभी एक साथ काम करते हैं.

सितंबर माह में स्क्रॉल डॉट इन ने अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया था.

इसमें कहा गया था, ‘सुरजागढ़ की लाल मिट्टी वाली पहाड़ियों के आसपास एक समानांतर प्रणाली स्थापित की जा रही है जो स्थानीय लोगों के जीवन में कहर बरपा देगी. सुरक्षा शिविर बनाए गए हैं और क्षेत्र में विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस और सुरक्षा बलों की अतिरिक्त बटालियन तैनात की गई हैं. यह सब नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर किया गया, क्योंकि इस क्षेत्र में सशस्त्र प्रतिरोध का इतिहास रहा है.’

प्रदर्शनकारियों ने इस साल जून में न्यूजलॉन्ड्री को बताया था, ‘सरकार ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना जबरदस्ती पुलिस थानों का निर्माण कर रही है.’

खनन का विरोध करने पर सुरक्षा बल लगातार ग्रामीणों को धमकाते हैं, माओवादियों या नक्सलियों से लड़ने के नाम पर उनसे उनका अता-पता पूछते हैं. स्क्रॉल डॉट इन को आंदोलन के नेताओं में से एक मंगेश नरोटी ने बताया था, ‘यह मानसिक उत्पीड़न का एक रूप है, जो दशकों से चल रहा है.’

पुलिस के पहुंचने से पहले टोडगट्टा विरोध स्थल. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

प्रमुख प्रदर्शनकारियों ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए द वायर को बताया कि सरकार पिछले दो दिनों से क्षेत्र और लोगों की गतिविधियों पर निरंतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए विरोध स्थल पर ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल कर रही है, और इसलिए आंदोलन के सभी नेताओं की सटीक गतिविधियों और नामों को जानती है.

आंदोलन के नेताओं का मानना है कि 20 नवंबर की कार्रवाई समय निर्धारित करके की गई थी, जो पुलिस को यह पता चलने के बाद की गई कि वकील लालसू नोगोटी के साथ-साथ सुशीला नरोती, राकेश आलम, पूनम जेट्टी, वंदू उइके और सेनू हिचामी जैसे कार्यकर्ता नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रेस क्लब में आयोजित एक सार्वजनिक बैठक और संवाददाता सम्मेलन में अपने आंदोलन का प्रतिनिधित्व करने के लिए यात्रा कर रहे होंगे.

गांव की सरपंच पूनम जेट्टी ने प्रश्न किया कि कैसे खनन या पुलिस गतिविधियों पर सवाल उठाने के किसी भी कार्य को ‘नक्सल’ या ‘माओवादी’ करार दिया जा सकता है.

वकील नोगोटी ने कहा कि एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर अक्सर ‘नक्सल-प्रायोजित’ का ठप्पा लगा दिया जाता है, ताकि ग्रामीणों को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले क्रोनी पूंजीवाद के गठजोड़ को छिपाया जा सके.

वर्तमान विरोध

8 अक्टूबर 2023 को स्विट्जरलैंड के जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) के 54वें सत्र में वकील नोगोटी द्वारा टोडगट्टा के विरोध प्रदर्शन और मांगों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठाए जाने के कुछ ही हफ्तों बाद यह क्रूर दमन किया गया है.

4,684 हेक्टेयर में फैली छह प्रस्तावित खदानों को हाल ही में पांच कंपनियों को एक समग्र खनन पट्टे के माध्यम से पट्टे पर दिया गया था.

इन कंपनियों के नाम ओमसाईराम स्टील्स एंड अलॉयज प्राइवेट लिमिटेड, जेएसडब्ल्यू स्टील्स लिमिटेड, सनफ्लैग आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड, यूनिवर्सल इंडस्ट्रियल इक्विपमेंट एंड टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और नेचुरल रिसोर्सेज एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड हैं.

टोडगट्टा का लाल पानी. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

सभी छह खदानें आसपास के आदिवासी गांवों के लोगों को उनकी सामुदायिक वन अधिकार भूमि के हिस्से के रूप में वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत पहले से ही दी गई भूमि पर अतिक्रमण करती हैं. एक स्थानीय अध्ययन के मुताबिक, अगर ये खदानें अस्तित्व में आईं तो कम से कम 40,900 लोग विस्थापित होंगे.

11 मार्च 2023 से सुरजागढ़ और दमकोंडवाही पट्टी/इलाके के ग्रामीण ‘दमकोंडवाही बचाओ संघर्ष समिति’ और ‘सुरजागढ़ पट्टी पारंपरिक गोटुल समिति’ के बैनर तले अनिश्चितकालीन आंदोलन कर रहे हैं. विरोध का नेतृत्व माडिया-गोंड आदिवासी समुदाय द्वारा किया जा रहा है, जो राज्य के तीन विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) में से एक है.

ग्रामीणों का विरोध उनकी जीवन शैली, ज्ञान प्रणालियों पर पढ़ने वाले दुष्प्रभावों और जल, जंगल, जमीन से अवैध बेदखली को लेकर है. साथ ही, वे खनन से उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को लेकर भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

लोगों ने बताया कि इसने जानवरों और पशुधन के स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है, इसलिए आजीविका एवं आय पर गंभीर प्रभाव पड़ा है. 

(अंजली एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और शुभा वन आधारित आंदोलनों के कानूनी पहलुओं पर शोध कर रही हैं)

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